Edited By ,Updated: 26 Nov, 2024 05:31 AM
अमरीका की यह खासियत है कि यदि उसके हितों पर जरा भी आंच आ जाए तो वह दुनिया के किसी भी मुल्क के खिलाफ कैसी भी कूटनीति रच सकता है। मानवाधिकार और पर्यावरण सहित तमाम ऐसे मुद्दों पर अमरीका की दोहरी नीति इसका प्रमाण रही है।
अमरीका की यह खासियत है कि यदि उसके हितों पर जरा भी आंच आ जाए तो वह दुनिया के किसी भी मुल्क के खिलाफ कैसी भी कूटनीति रच सकता है। मानवाधिकार और पर्यावरण सहित तमाम ऐसे मुद्दों पर अमरीका की दोहरी नीति इसका प्रमाण रही है। उद्योगपति गौतम अदाणी के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करके अमरीका ने एक बार फिर भारत की बांह मरोडऩे का प्रयास किया है। अमरीका की तकलीफ यह है कि भारत आंख बंद करके उसका अनुयायी नहीं बन रहा है। भारत विश्व में अपनी अलग ताकत बनाने में क्यों जुटा हुआ है। भारत ग्लोबल साऊथ के लीडर के तौर पर कैसे उभर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था कैसे दिनों-दिन मजबूत होती जा रही है। भारत के उन देशों से रिश्ते क्यों हैं, जिन्हें अमरीका नापसंद करता है। ये चंद सवाल हैं जोकि अमरीका को परेशान किए हुए हैं। इसी वजह से अमरीका गाहे-बगाहे भारत को दोस्ती की आड़ में दबाने की कोशिश करने से बाज नहीं आता।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यूरोप की यात्रा के दौरान साफ शब्दों में अमरीका और यूरोपीय देशों को बता दिया था कि जो मुद्दे इनके हैं, वे जरूरी नहीं कि भारत के भी हों। भारत का दुनिया को देखने का अपना नजरिया है। अमरीका को भारत के रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध भी नागवार गुजरते हैं। भारत कच्चा तेल रूस से खरीद कर यूरोप और अमरीका को आपूर्ति करता है। रूस की तरह ईरान पर भी अमरीका ने मनमाने प्रतिबंध लगा रखे हैं। जबकि भारत और ईरान के दोस्ताना ताल्लुक हैं।
यह भी अमरीका को पसंद नहीं है। अमरीका किसी न किसी बहाने भारत को दबाव में लाने की फिराक में रहता है। गौतम अदाणी पर भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करके अमरीका ने ऐसा ही प्रयास किया है। अमरीका चाहता है कि भारत चीन के खिलाफ उसका मजबूत सहयोगी बने। जबकि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है। भारत अपने नुकसान-फायदे के हिसाब से तय करता है कि किस देश से कैसे रिश्ते रखने हैं। इसके विपरीत अमरीका उम्मीद करता है कि भारत उसकी हर बात का अक्षरश: पालन करे।
अमरीका चीन को रूस की तरह अपना दुश्मन मानता है। जबकि भारत चीन से अपने रिश्ते लगातार सुधार रहा है। अमरीका इस बात से खीझ रहा है कि भारत और चीन के रिश्तों में जमी बर्फ क्यों पिघल रही है। गलवान घाटी में चीन से हुई सशस्त्र झड़प के बाद रिश्तों में आई खटास कुछ हद तक मिठास में बदल गई है। दोनों देशों ने गलतफहमी को काफी हद तक दूर कर लिया है। समझौते की पालना के तहत दोनों देशों की सेनाएं लद्दाख से न सिर्फ पीछे हट गई हैं, बल्कि सीमा पर संयुक्त सेनाएं गश्त कर रही हैं, ताकि गलवान घाटी की तरह सशस्त्र संघर्ष के हालात पैदा नहीं हों। दोनों देश लंबे अर्से से एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने से भी परहेज बरतते हुए द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने पर बल दे रहे हैं। भारत के चीन के साथ सुधरते रिश्ते और रूस से मजबूत होते द्विपक्षीय संबंध अमरीका को फूटी आंख भी नहीं सुहा रहे हैं। इन रिश्तों से तिलमिलाए अमरीका ने नया पैंतरा अपनाते हुए भारत को बदनाम करने के लिए अदाणी को मोहरा बनाया है। अमरीका का यदि बस चले तो पाकिस्तान को भी भारत के खिलाफ उकसाए। अमरीका ने आतंकवाद के नाम पर जो हथियार पाकिस्तान को दिए थे, उनका इस्तेमाल पाक आतंकी जम्मू-कश्मीर में कर रहे हैं।
घरेलू आतंकवाद झेल रहे पाकिस्तान ने अब तक एक बार भी एफ 16 को आतंकी संगठनों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया। हालांकि पाकिस्तान बलूचों को आतंकी संगठन बता रहा है, वे अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी से अमरीका की बदनियति साबित होती है। भारत के विरोध को दरकिनार करते हुए अमरीका ने इन विमानों के रख-रखाव के लिए करोड़ों डालर की मदद पाकिस्तान को दी। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के खिलाफ अमरीकी कार्रवाई से भारत अलग रहा। भारत ने अपनी नेवी के बूते समुद्री लुटेरों के खिलाफ कार्रवाई को अंजाम दिया। भारतीय नेवी ने कई बार कार्रवाई करके मालवाहक समुद्री जहाजों की सुरक्षा की। भारत द्वारा अपने बलबूते की गई यह कार्रवाई अमरीका को रास नहीं आई। कुछ दिनों पहले अमरीका ने भारत की कुछ कंपनियों पर मनमाना एकतरफा प्रतिबंध लगा दिया था। आरोप यह लगाया कि करीब 2 दर्जन भारतीय कंपनियां रूस को आई.टी. सपोर्ट कर रही हैं जिसका इस्तेमाल रूस यूक्रेन युद्ध में कर रहा है। हालांकि इन कंपनियों का अमरीका में कोई कारोबार नहीं है। अमरीका की दूसरे देशों के मामले में दखल देने की आदत है।
इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ अप्रासंगिक हो चुका है। अमरीका अपने को विश्व की नम्बर एक सुपर पावर मानता है। शीत युद्ध के बाद हालात बदल चुके हैं। भारत, ब्राजील जैसे देश भी सुपर पावर बनने की दिशा में अग्रसर हैं। यही वजह है कि भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दिए जाने की दावेदारी पुरजोर तरीके से जता रहा है। आतंकी पन्नू की कथित हत्या की साजिश में भारत की एजैंसियों के शामिल होने के आरोप लगाना अमरीका की दोस्ती की कलई खोलने के लिए पर्याप्त है। यह निश्चित है कि भारत की विश्व में तरक्की और ग्लोबल साऊथ लीडर के तौर पर उभरने को अमरीका पचा नहीं पा रहा है। अदाणी के मामले में की गई दुर्भावनावश जैसी कार्रवाइयों को अमरीका आगे भी जारी रखेगा। भारत को इससे सावधान रहने की जरूरत है।-योगेन्द्र योगी