Edited By ,Updated: 19 Feb, 2025 05:48 AM
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एक नया राजा दुनिया के तख्त पर बैठा है। बदतमीज है, बदनीयत है, बदनाम भी है। लेकिन है तो राजा। चारों तरफ अफरा-तफरी मची है। राजा की तुनकमिजाजी से हर कोई घबराया हुआ है कि पता नहीं कब क्या आफत आ जाए। पहले इसकी होड़ थी कि राजा किसको ताजपोशी पर बुलाते हैं।...
एक नया राजा दुनिया के तख्त पर बैठा है। बदतमीज है, बदनीयत है, बदनाम भी है। लेकिन है तो राजा। चारों तरफ अफरा-तफरी मची है। राजा की तुनकमिजाजी से हर कोई घबराया हुआ है कि पता नहीं कब क्या आफत आ जाए। पहले इसकी होड़ थी कि राजा किसको ताजपोशी पर बुलाते हैं। अब राजा किसे, कब और कैसे दर्शन देते हैं, इसकी। क्या सूबेदार और क्या प्रजा, सब लाइन लगाए खड़े हैं। इसी लाइन में कहीं हमारे प्रधानमंत्री भी हैं। सिर्फ नरेंद्र मोदी नहीं, भारत के प्रधानमंत्री। उस देश के प्रधानमंत्री, जिसने कभी दुनिया में हर किस्म के साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी, तीसरी दुनिया को संगठित करने की हिम्मत दिखाई थी। लेकिन जिसने पिछले कई दशकों में धीरे-धीरे इन सब बातों को छोड़कर ताकतवर से ताकतवर की शर्तों पर समझौते करने सीख लिए हैं।
नया राजा अंट-शंट बोल रहा है - ग्रीनलैंड को खरीदना, कनाडा को अमरीका का प्रांत बनाना, गाकाा पर अमरीकी कब्ज़ा या फिर दक्षिण अफ्रीका में गोरों के हक में वहां की सरकार को धमकाना। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री को इससे क्या लेना-देना। हमें अपनी डील की चिंता है। प्रधानमंत्री के पीछे खड़े हैं उनके दरबारी - मंत्री, संतरी और उनकी गोदी में बैठा मीडिया। हमारे विदेश मंत्री भी हैं जो अमरीका में डेरा डालकर बैठे थे ताकि किसी तरह राजा की ताजपोशी पर हमारे प्रधानमंत्री को न्यौता ही मिल जाए। नहीं मिला, किरकिरी हुई सो अलग। लेकिन उसके बदले एक दिन के दौरे का सांत्वना पुरस्कार मिल गया। दरबार को प्रचार का मौका मिल गया। गांव में जमींदार का मुंहलगा होने की अफवाह फैलते और फैलाते देर नहीं लगती - ‘ठाकुर साहब ने ख़ुद आगे बुलाया। कहा तुम तो घर के आदमी हो, लाइन में क्यों खड़े हो? जानते हो, हाथ पकड़ कर कुर्सी पर बैठाया बाबूजी ने!’ फाइलों, अखबारों, टी.वी. और व्हाट्सऐप का पेट भरने के लिए काफी सामग्री थी। अमरीका वालों को हमारे नेता की कमजोरी पता थी - फोटो अच्छी होनी चाहिए, फिर चाहे जेब काट लो या गला।
गला काटने की नौबत नहीं आई। जरूरत भी नहीं थी। अमरीका को हमारी गरज है, चीन पर नजर रखने के लिए। उन्हें हमारे सस्ते इंजीनियर चाहिएं और हमारा बाजार भी, लेकिन सब कुछ अपनी शर्त पर। इसकी घोषणा अमरीकी प्रशासन ने डंके की चोट पर कर दी। प्रधानमंत्री के दौरे से पहले अमरीका ने वो सब किया, जो राजनयिक शराफत में वर्जित है। उन्हीं दिनों हथकड़ी डाल, पगड़ी उतार भारत के अवैध आप्रवासियों को बैरंग भारत वापस भेजा। जिस दिन प्रधानमंत्री अमरीका पहुंचे उसी दिन ट्रम्प ने बदले के टैरिफ की धमकी दी। इशारा साफ था - साहब का मूड खराब है, इस बार बात सख्ती से होगी। बात क्या हुई, कैसे हुई, इसका राज तो बाद में कभी खुलेगा। हम तो बस मुलाकात के बाद जारी संयुक्त औपचारिक वक्तव्य और दोनों पक्षों द्वारा दिए बयानों का शब्दार्थ और भावार्थ ही समझ सकते हैं। शब्दार्थ देखें तो सब कुछ चंगा सी। जैसा विदेश नीति के चाशनी से लिपटे बयानों में हमेशा होता है। भारत और अमरीका ने व्यापार, विनिवेश, सुरक्षा, ऊर्जा, तकनीक, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और जन सहयोग के क्षेत्रों में अपने संबंध प्रगाढ़ करने का एक बार फिर संकल्प लिया। दोनों देशों ने अगले कुछ महीने में एक नए व्यापार समझौते की घोषणा की, ताकि आपसी व्यापार दोगुने से ज्यादा बढ़ जाए। दोनों पक्षों ने गैरकानूनी आप्रवास को जड़ से उखाडऩे और किसी भी आपराधिक गतिविधि को रोकने में सहयोग का वादा किया। आदि, आदि।
भावार्थ का खुलासा करने पर इन मीठे शब्दों के पीछे हुई सौदेबाजी का अनुमान लगाया जा सकता है। अमरीका ने भारतीय आयात पर भारी शुल्क लगाने की धमकी दी। भारत ने इसके लिए कुछ टाइम मांगा। सौदेबाजी के बाद तय हुआ कि भारत बड़े पैमाने पर अमरीका से हथियार और गैस खरीदेगा। छमाही में एक समझौता होगा। यह भी संभव है कि अमरीका इस समझौते के दायरे में कृषि पदार्थों को लाने की कोशिश करेगा, जिसकी गाज भारत के किसानों पर पड़ सकती है। मतलब, शर्त अमरीका की मानी गई लेकिन भारत को कुछ वक्त की मोहलत मिल गई। बयान में अमरीका द्वारा भारत से गए गैर कानूनी आप्रवासियों के साथ हो रहे बर्ताव का जिक्र तक नहीं है। साफ है कि भारत सरकार ने चुपचाप स्वीकार कर लिया है कि अमरीका 2 से 5 लाख के बीच ऐसे तमाम लोगों को जैसे मर्जी भारत भेज सकता है। आपराधिक गतिविधि को रोकने में सहयोग करने वाले जुमले का अर्थ यह है कि आगे से भारत की सुरक्षा एजैंसियां अमरीका में घुस कर कोई बेजा हरकत नहीं करेंगी। इस सवाल पर हम कनाडा से भले ही पंगा ले लें, अमरीका के सामने चुपचाप बैठेंगे। यहां भी अमरीका की मानी गई।
भावार्थ से आगे जाकर छुपे अर्थ ढूंढने हों तो आधिकारिक बयान की बजाय प्रैस कांफ्रैंस को देखना चाहिए। अमरीका ने एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री को मीडिया के सामने पेश होने पर मजबूर किया, जिससे वह अपने देश में पिछले 10 साल से बचते रहे हैं। प्रैस कांफ्रैंस में भारत से गए गोदी पत्रकारों ने भले ही चापलूसी कर भारत के मीडिया को बेइज्जत किया, लेकिन अमरीकी पत्रकारों ने सीधा पूछा कि क्या अडानी को अमरीका में भ्रष्टाचार के मुकद्दमे से बरी करने पर कोई डील हुई। प्रधानमंत्री ने जैसे-तैसे बात को संभाल लिया, लेकिन दाल में कुछ काला है, यह सारी दुनिया को दिख गया। उधर ट्रम्प ने वह बात कह दी जिसका किसी बयान में कोई जिक्र न था - उन्होंने खुलासा कर दिया कि भारत द्वारा अमरीका का एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदा जाएगा। मजे की बात यह है कि सरकार ने ऐसी किसी खरीद की शुरुआत भी नहीं की है। यह विमान भारतीय वायु सेना की जरूरत के अनुरूप नहीं है और खुद एलन मस्क इस विमान को रद्दी घोषित कर चुके हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प रियल एस्टेट का धंधा करते हैं और हर मामले में डील करने के लिए प्रसिद्ध हैं। तो क्या वाशिंगटन में भी एक गुप्त डील हो गई है? डील अमरीका सरकार और भारत सरकार के बीच हुई है या फिर ट्रम्प और अडानी के बीच या फिर मोदी और मस्क के बीच? फिलहाल हमारे पास इनका जवाब नहीं है। और जिनके पास है, वे गुनगुना रहे हैं - ‘ये दुनिया वाले पूछेंगे, मुलाकात हुई, क्या बात हुई, ये बात किसी से न कहना’!-योगेन्द्र यादव