क्या केवल कोचिंग सैंटर ही जिम्मेदार हैं

Edited By ,Updated: 02 Aug, 2024 05:26 AM

are only coaching centres responsible

देश की राजधानी दिल्ली में कोचिंग सैंटर में हुए हादसे ने सभी को हिला दिया है। जिसे देखो वह कोचिंग सैंटर के संचालकों पर ऊंगली उठा रहा है। जबकि ऐसे हादसों में केवल उनकी गलती नहीं होती।

देश की राजधानी दिल्ली में कोचिंग सैंटर में हुए हादसे ने सभी को हिला दिया है। जिसे देखो वह कोचिंग सैंटर के संचालकों पर ऊंगली उठा रहा है। जबकि ऐसे हादसों में केवल उनकी गलती नहीं होती। यह बात जग-जाहिर है कि हर एक कोचिंग सैंटर के साथ एक संगठित क्षेत्र जुड़ा होता है। फिर वह चाहे वहां पढऩे वाले विद्यार्थियों के रहने के लिए होस्टल व्यवस्था हो, भोजन व्यवस्था वाले हों, किताब की दुकानें हों या अन्य संबंधित व्यवस्था प्रदान करने वाले हों। परंतु जब भी कभी कोई हादसा होता है तो केवल कोचिंग सैंटर को ही कटघरे में क्यों लाया जाता है? क्या कोचिंग सैंटर चलाने की अनुमति प्रदान करने वाली एजैंसियां इसकी जिम्मेदार नहीं हैं? 

दिल्ली के राजेंद्र नगर में हुए राओ’का आई.ए.एस. स्टडी सैंटर के हादसे के बाद से ही देश भर में कोचिंग सैंटर चलाने वाली कई नामी संस्थाएं सवालों के घेरे में आ गई हैं। इन पर आरोप है कि ये नियम और कानून के अनुसार अपने कोचिंग सैंटर नहीं चलाते। एक-एक कक्षा में क्षमता से ज्यादा विद्यार्थी भर्ती कर लेते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में देश के कोने-कोने से आए हुए विद्याॢथयों को छोटे-छोटे पिंजरों में रहने को मजबूर होना पड़ता है। दिल्ली के रिहायशी इलाकों की तंग गलियों में भी क्षमता से अधिक लोग दिखाई देते हैं। ऐसे में कोचिंग सैंटर और उनसे जुड़े अन्य उद्योग, जैसे कि ‘पेइंग गैस्ट’, होस्टल, किताब घर, छोटे-छोटे ढाबे आदि नियम और कानून की परवाह किए बिना अधिक से अधिक विद्याॢथयों की सेवा में लग जाते हैं। 

यहां सवाल उठता है कि क्या ये सब रातों-रात हो जाता है? क्या स्थानीय पुलिस, नगर निगम आदि सोते रहते हैं? क्या इन सभी को कोई टोकता नहीं है? सबसे पहले बात करें पुलिस की। एक पुलिस अधिकारी से बात करने पर पता चला कि जैसे ही कोई अपने रिहायशी मकान में या नगर निगम द्वारा मान्यता प्राप्त दुकान में कुछ भी छेड़छाड़ करता है, तो पुलिस की जिम्मेदारी केवल नगर निगम को इत्तेलाह देने की होती है। इस इत्तेलाह की जानकारी पुलिस को अपने रोजनामचे में भी करनी चाहिए।

पुलिस के अनुसार यदि इत्तेलाह देने के बावजूद नगर निगम अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते तो पुलिस उसी हिसाब से रोजनामचे में एंट्री कर देती है। जब तक कि किसी भी तरह की कानून-व्यवस्था की समस्या न हो पुलिस अपनी सीमित जिम्मेदारी निभाती है। परंतु क्या ऐसा वास्तव में जमीनी स्तर पर होता है? अब बात करें नगर निगम की। क्या पुलिस द्वारा इत्तेलाह किए जाने पर निगम के अधिकारी ‘उचित कानूनी कार्रवाई’ करते हैं या देश भर के नगर निगमों में व्याप्त भ्रष्टाचार के मकड़ जाल का हिस्सा बन वे भी अनदेखी कर देते हैं। यदि कभी कार्रवाई करनी भी पड़े तो केवल औपचारिकता निभा कर छोटा-मोटा हथौड़ा चला देते हैं। परंतु वास्तविकता कुछ और ही है। करीब 30 वर्षों से एक निजी कोचिंग सैंटर चलाने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे जो बताया वह हतप्रभ करने वाली जानकारी है।

उनके अनुसार जब भी और जहां भी एक कोचिंग सैंटर खुलता है वहां एक पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है। इस तंत्र का हिस्सा हर वह व्यक्ति होता है जो कोचिंग सैंटर के चलने के हर पहलू का ध्यान रखता है।भारत जैसे देश में जहां किसी भी क्षेत्र में अगर कोई कामयाब हो जाता है तो उस दिशा में भेड़-चाल शुरू हो जाती है। हमारे देश में विभिन्न एजैंसियों के अधिकारियों पर लापरवाही करने पर कड़ी सजा का प्रावधान क्यों नहीं है, जिससे सबक लेकर अन्य अधिकारी ऐसी गलती न करें? इस हादसे की यदि एक निष्पक्ष जांच हो तो सभी तथ्य सामने आ जाएंगे। यदि ऐसा होता है तो बरसों से चले आ रहे इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बने अधिकारी और नेताओं का भी भंडाफोड़ हो सकता है।

गौरतलब है कि देश की शिक्षा व्यवस्था में ऐसी क्या कमी है कि विद्यार्थियों को एक्स्ट्रा कोचिंग लेनी पड़ती है? स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम को ऐसा क्यों नहीं बनाया जाता कि जिस भी विद्यार्थी को सिविल सेवाओं या अन्य किसी विशेष सेवा में जाना हो तो उसे उसी के कॉलेज में वह शिक्षा मिले? यदि एक्स्ट्रा  कोचिंग जरूरी हो तो भी तमाम कोचिंग सैंटर को मौजूदा स्कूल और कॉलेजों में ही क्यों न चलाया जाए? यदि ऐसा किया जाए तो कोचिंग सैंटर चलाने वालों को भी एक व्यवस्थित जगह मिल जाएगी और विद्याॢथयों को भी एक खुले वातावरण में पढऩे का मौका मिलेगा।

मौजूदा कोचिंग सैंटर में जहां प्रति कक्षा लगभग 500 विद्यार्थी बैठते हैं उस पर भी रोक लगेगी। अच्छे व काबिल शिक्षकों को भी रोजगार मिलेगा। यदि अतिरिक्त शिक्षक भर्ती न किए जा सकें तो आजकल के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक नियंत्रित ढंग से उसी बिल्डिंग में वीडियो कांफ्रैसिंग के माध्यम से विभिन्न कक्षाओं को एक साथ चलाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो स्कूल/कॉलेज की छुट्टी होने पर दूसरी शिफ्ट में कोचिंग सैंटर चलाए जा सकते हैं। इससे स्कूल/कॉलेजों को किराए के रूप में अतिरिक्त आय भी मिलेगी और कोचिंग सैंटर वालों को सस्ते दर पर जमा-जमाया कोङ्क्षचग सैंटर भी मिल जाएगा।

यदि ऐसे हादसों को रोकना है तो देश में नियम बनाने की जरूरत है जहां नियमों के तहत ही कोचिंग सैंटर चल पाएं मन माने तरीके से नहीं। जिस तरह एक बड़ा अस्पताल, होटल या मॉल खुलता है तो उसे तमाम विभागों से अनुमति लेना अनिवार्य होता है। उसी तरह यदि सरकार चाहे तो कोचिंग सैंटर के इस तंत्र को नियंत्रित कर सकती है। ऐसे में यदि कोचिंग सैंटर और संबंधित एजैंसियां पारदर्शिता से अपना कर्तव्य निभाएं तो ऐसे हादसों पर काफी हद तक रोक लग सकेगी। -रजनीश कपूर

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!