क्या हम तेजी से जंगल राज की ओर बढ़ रहे

Edited By ,Updated: 27 Aug, 2024 06:33 AM

are we rapidly heading towards jungle raj

देश में आए दिन हो रही भयावह घटनाओं से ऐसा लगता है कि हम तेजी से जंगल राज की ओर बढ़ रहे हैं। महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं ने मानवीय मूल्यों के पैरोकारों को झकझोर कर रख दिया है। क्या देश के हुक्मरान गुंडों के गिरोह द्वारा एक प्रशिक्षु डॉक्टर की...

देश में आए दिन हो रही भयावह घटनाओं से ऐसा लगता है कि हम तेजी से जंगल राज की ओर बढ़ रहे हैं। महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं ने मानवीय मूल्यों के पैरोकारों को झकझोर कर रख दिया है। क्या देश के हुक्मरान गुंडों के गिरोह द्वारा एक प्रशिक्षु डॉक्टर की नृशंस हत्या को ‘महिला सशक्तिकरण’ कहते हैं? इस भयानक घटना की भयावहता का वर्णन करने के लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं हैं। क्या संबंधित राज्य की पुलिस, जहां की मुख्यमंत्री भी एक महिला है, इतनी अक्षम और आपराधिक मानसिकता वाली हो गई है कि वह हत्यारों और बलात्कारियों के गिरोह को गिरफ्तार नहीं कर पा रही है? 

क्या यह दिल दहला देने वाला मामला सरकार और पुलिस की अक्षमता के कारण है? इस घटना के विरोध में हजारों गुस्साए लोगों के जोशीले नारों की गूंज अभी देशभर में कम नहीं हुई कि 3 और जगहों पर लड़कियों के साथ ऐसा ही हुआ।टी.एम.सी., भाजपा और कांग्रेस यानी केंद्र और अलग-अलग राज्यों में सत्तारूढ़ सभी पार्टियों की नाक के नीचे अपराधियों की तूती बोलने की शर्मनाक घटना लगभग एक जैसी ही है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब महिलाओं के साथ क्रूरता की कोई घटना न होती हो। ऐसे मामलों में अक्सर पीड़िताएं और उनके माता-पिता शर्मिंदगी के डर से पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते। 

दरअसल, इस बर्बर घटना के पीछे महिलाओं को पुरुष के यौन सुख का साधन मात्र मानने का प्रतिगामी दर्शन, पुरुष प्रधान समाज में महिला विरोधी मानसिकता और सत्ताधारी दलों द्वारा पुलिस-प्रशासनिक मशीनरी का राजनीतिकरण जिम्मेदार है। संबंधित अधिकारी ऐसे निंदनीय मामलों में आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए तत्परता दिखाने की बजाय अपने राजनीतिक आकाओं और वरिष्ठों के आदेशों का इंतजार करते हैं। ऐसी किसी भी दुखद घटना के बाद सरकारी तंत्र दोषियों को पकडऩे के लिए हरकत में नहीं आता, जब तक कि लोग सड़कों पर नहीं उतर आते। 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मीडिया बलात्कार की घटनाओं को तो पूरी ताकत से लोगों के सामने लाता है, लेकिन बलात्कारियों को मिलने वाली सजा के बारे में चुप रहता है।’’ उनका यह तथ्यहीन बयान झूठ से भरा है। क्या इलैक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने पिछले साल 15 अगस्त को गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा जेल में बंद बिलकिस बानो और उनके परिवार के हत्यारों और बलात्कारियों को उनकी सजा पूरी होने से पहले रिहा करने की खबर सही ढंग से दिखाई थी? 

ओलिम्पियन पदक विजेता महिला पहलवान कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह द्वारा किए गए यौन उत्पीडऩ के विरोध में महीनों तक दिल्ली की सड़कों पर बैठी रहीं। क्या मेनस्ट्रीम मीडिया ने देश का नाम रोशन करने वाली इन बेटियों की कथित हकीकत की खबर को सही संदर्भ में पेश किया? केंद्र सरकार के पक्षपातपूर्ण और दमनकारी व्यवहार के कारण उपरोक्त घटनाएं विभिन्न टी.वी. चैनलों पर होने वाली बहसों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं बन सकीं। लोग अक्सर ‘गोदी मीडिया’ की पक्षपातपूर्ण कार्य पद्धति के बारे में शिकायत करते देखे जाते हैं। यह अब कोई रहस्य नहीं रह गया है कि मीडिया का एक वर्ग सरकार के प्रभाव में सच बोलने की हिम्मत नहीं करता। लोगों की आर्थिक स्थिति भी सरकार के दावों के उलट है। दावा है कि, ‘युवा अब रोजगार के पीछे नहीं भागेंगे, बल्कि रोजगार खुद चलकर उनके दर पर आएगा।’ जी हां, यह पूरी तरह से झूठ और मनगढ़ंत है। लोग बेरोजगारी से त्रस्त हैं और महंगाई ने सभी हदें पार कर दी हैं। 

चिकित्सा उपचार बड़ी संख्या में लोगों के नियंत्रण से बाहर का मुद्दा बन गया है। आम लोग अपने बच्चों को शिक्षित करने में असमर्थ हैं। जब पूंजी को चंद हाथों में केंद्रित करने की प्रक्रिया पूरी गति पकड़ लेती है तो अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ती खाई बड़े खतरों का सूचक बन जाती है। बंगलादेश में तख्तापलट का मूल कारण सत्ता का अत्यधिक केंद्रीयकरण, कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और भुखमरी है। इसी स्थिति में बंगलादेश के असामाजिक और अराजक तत्वों द्वारा देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हिंसक हमलों का बेहद निंदनीय और खतरनाक दृश्य भी सभी ने देखा है, हालांकि यह भी सच है कि ये हमले कुछ शरारती तत्वों द्वारा किए गए हैं। भारत को लेकर कई मनगढ़ंत खबरें भी फैलाई गई हैं। मोदी सरकार के नंगे संरक्षण के तहत आर.एस.एस. तीसरी बार पहले की तुलना में बहुत कमजोर स्थिति में स्थापित हुआ था। विचारधारा के मुताबिक देशभर में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अब भी जानलेवा हमले किए जा रहे हैं। केंद्रीय एजैंसियों का घोर दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को खुला बढ़ावा भी कम होने की बजाय बढ़ा है। 

‘संघ लोक  सेवा आयोग’ की जगह आर.एस.एस. की इच्छा से लोक सेवकों को मनमर्जी से भर्ती करने का हाल ही में रद्द किया गया निर्णय भारत की धर्मनिरपेक्ष संरचना और संविधान पर सीधा हमला है। प्रधानमंत्री का समाज के विभिन्न वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों से संबंधित कानूनों को ‘सांप्रदायिक’ बताकर ‘समान नागरिक संहिता’ की वकालत करते हुए ऐसे कानून को ‘धर्मनिरपेक्ष ’ कहना सरासर छल और धोखा है। इस बयान से भारतीय समाज में एक बड़ी सांप्रदायिक रेखा खींच दी गई है। यह सोच भारत की भौगोलिक अखंडता और अस्तित्व के मूल आधार ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत के विपरीत है, जिसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि विभिन्न राष्ट्रीयताओं, धर्मों, बोली जाने वाली भाषाओं और अपने स्वयं के रीति-रिवाजों और परंपराओं के लोग अपने तरीके से रह सकें। 

दुनिया के साम्राज्यवादी भारत को ललचाने वाली नजरों से देख रहे हैं, लेकिन हमारे शासक उनके इस जाल में बड़े अपराध भाव से बंधे हुए हैं। निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण पर आधारित नव-उदारवादी आर्थिक नीतियां विदेशी लुटेरों को 140 करोड़ लोगों के विशाल भारतीय बाजार, इसके बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों और कुशल श्रम की बेतहाशा लूट की गारंटी देती हुई प्रतीत होती हैं।-मंगत राम पासला

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