Edited By ,Updated: 29 Dec, 2024 06:10 AM
आज के युद्ध के बदलते परिदृश्य में, पारंपरिक सैन्य रणनीतियों और उन्नत तकनीक के बीच की रेखाएं तेजी से धुंधली होती जा रही हैं। आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) और अन्य उभरती हुई तकनीकों का उदय संघर्ष के साधनों, रणनीति और नैतिक विचारों में क्रांति ला रहा...
आज के युद्ध के बदलते परिदृश्य में, पारंपरिक सैन्य रणनीतियों और उन्नत तकनीक के बीच की रेखाएं तेजी से धुंधली होती जा रही हैं। आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) और अन्य उभरती हुई तकनीकों का उदय संघर्ष के साधनों, रणनीति और नैतिक विचारों में क्रांति ला रहा है। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण यूक्रेन द्वारा रूसी हवाई ठिकानों को निशाना बनाने के लिए कम लागत वाले कार्डबोर्ड ड्रोन की तैनाती है, जो दर्शाता है कि कैसे युद्ध के मैदान को नवाचार फिर से परिभाषित कर रहा है। जबकि ए.आई. सैन्य संदर्भों में निगरानी निर्णय लेने और परिचालन दक्षता को बढ़ाता है। यह महत्वपूर्ण नैतिक दुविधाओं और अस्तित्व संबंधी ङ्क्षचताओं को भी सामने लाता है।
ए.आई. और उभरती हुई तकनीकों का उदय: आधुनिक युद्ध में स्वायत्त हथियार प्रणालियों (ए.डब्ल्यू.एस.) का एकीकरण युद्ध में एक गहन परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है। मानव रहित हवाई वाहन (यू.ए.वी.) और ए.आई.-संचालित ग्राऊंड रोबोट सहित ये प्रणालियां मानवीय हस्तक्षेप के बिना लक्ष्यों की पहचान और उन पर हमला कर सकती हैं। उन्नत सैंसर और ए.आई.एल्गोरिदम से लैस, ए.डब्ल्यू.एस. वास्तविक समय में निर्णय लेने की क्षमता और निगरानी को बढ़ाता है और साथ ही मानव कर्मियों के लिए जोखिम को कम करते हुए सटीक हमले करता है। मार्च 2020 में लीबिया में एक भयावह उदाहरण देखने को मिला, जहां कामिकेज ड्रोन ने स्वायत्त रूप से ट्रकों के काफिले को निशाना बनाया और नष्ट कर दिया। प्रभाव पर विस्फोट करने के लिए डिजाइन किए गए इन ड्रोनों ने मानव आदेशों के बिना हमले को अंजाम दिया, जो ऐसी तकनीकों की नैतिक जटिलताओं को रेखांकित करता है। ड्रोन तकनीक का झुंड एक और गेम-चेंजर है।
ए.आई. का उपयोग करके, कई ड्रोन रक्षा को खत्म करने या खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए सहजता से समन्वय कर सकते हैं। रूसी हवाई क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचाने के लिए यूक्रेन द्वारा सस्ते कार्ड बोर्ड ड्रोन का उपयोग कम लागत वाले, सुलभ सैन्य नवाचारों की विध्वंसक शक्ति को उजागर करता है। गाजा में ऑपरेशन के दौरान इसराईल द्वारा ‘लैवेंडर’ ए.आई. सिस्टम की तैनाती ने विशाल डाटा का विश्लेषण लक्ष्यों की पहचान और समन्वित हमलों को अंजाम देने की इसकी क्षमता का प्रदर्शन किया। इसे ‘पहला ए.आई. युद्ध’ कहा जाता है, इसने संघर्ष क्षेत्रों में मशीन-संचालित निर्णय लेने के एक नए युग को चिह्नित किया। प्रौद्योगिकी का प्रभाव साइबर युद्ध तक भी फैला हुआ है।
अत्याधुनिक उपकरण अभूतपूर्व गति से खतरों का पता लगाते हैं और उन्हें बेअसर करते हैं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की रक्षा करते हैं। पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण और मशीन लॄनग भी रसद, कमांड निर्णयों और दुश्मन की रणनीतियों की प्रत्याशा को नया रूप दे रहे हैं। जैसे-जैसे ये प्रौद्योगिकियां अधिक सुलभ होती जा रही हैं, वे विषमता की बाधा को कम करके, छोटे राज्यों, अर्ध-राज्य और गैर-राज्य अभिनेताओं को सशक्त बनाकर खेल के मैदान को समतल कर रही हैं, जबकि स्थापित शक्ति के आदर्शों को चुनौती दे रही हैं। विश्व के कई देश इस दौड़ में ए.आई. संचालित सैन्य प्रणालियों में भारी निवेश कर रहे हैं।
चीन का लक्ष्य 2030 तक ए.आई. उन्नति के लिए 150 बिलियन डालर आबंटित करना है, जबकि रूस ने 2021 और 2023 के बीच 181 मिलियन डालर का निवेश किया है। संयुक्त राज्य अमरीका में, ए.आई. से संबंधित संघीय अनुबंधों का मूल्य अगस्त 2022 में 355 मिलियन डालर से बढ़कर अगस्त 2023 तक 4.6 बिलियन डालर हो गया। यूनाइटेड किंगडम ने यूक्रेन की सहायता के लिए ड्रोन और राडार के लिए अतिरिक्त 155 मिलियन डालर देने का वादा किया और सऊदी अरब ने 40 बिलियन डालर ए.आई. निवेश कोष की योजना का अनावरण किया। तुलनात्मक रूप से भारत सैन्य उपयोग के लिए ए.आई. में मात्र 50-60 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश कर रहा है।
तुलनात्मक रूप से चीन 30 गुना अधिक खर्च कर रहा है। सैन्य मामलों में क्रांति के मामले में ड्रोन तकनीक सबसे आगे है। पैंटागन का अनुमान है कि 2035 तक, अमरीकी वायु सेना का 70 प्रतिशत हिस्सा दूर से संचालित विमानों से बना होगा। इसराईल ने गाजा सहित निगरानी और सटीक हमलों के लिए हथियारबंद ड्रोन का उपयोग किया है। 2014 से कुछ पारंपरिक हथियारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के तहत चल रही चर्चाओं के बावजूद, एल.ए.डब्ल्यू.एस. के लिए बाध्यकारी नियम अभी भी मायावी बने हुए हैं। अमरीकी रक्षा विभाग अपने ए.आई. सिद्धांतों में जवाबदेही, समानता और विश्वसनीयता पर जोर देता है।
यूरोपीय संघ मानवीय निगरानी और नैतिक सुरक्षा उपायों की वकालत करता है, जबकि भारत का भरोसेमंद कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ई.टी.ए.आई.) फ्रेमवर्क पारदर्शिता और निर्भरता को प्राथमिकता देता है। हालांकि, एक एकीकृत अंतर्राष्ट्रीय मानक की कमी इन तकनीकों की नैतिक तैनाती सुनिश्चित करने के प्रयासों को जटिल बनाती है। नीति से परे, स्वायत्त प्रणालियों के अंतर्निहित जोखिम चिंताजनक हैं। इस नए युग को जिम्मेदारी से चलाने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है। पारदर्शी नीतियां, बाध्यकारी समझौते और मजबूत नैतिक ढांचे यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि ए.आई. अराजकता के उत्प्रेरक के बजाय एक स्थिर बल के रूप में कार्य करे।-मनीष तिवारी (वकील, सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री)