औरंगजेब की विरासत एक जटिल और विवादित अध्याय

Edited By ,Updated: 24 Oct, 2024 06:30 AM

aurangzeb s legacy is a complex and controversial chapter

औरंगजेब की छवि भारत के समकालीन राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में गहराई से समाई हुई है, जो ऐतिहासिक स्मृति, मिथक और आधुनिक राजनीतिक बयानबाजी का मिश्रण दर्शाती है। उनका नाम अक्सर चुनावी अभियानों और सार्वजनिक बहसों में सामने आता है, जो उनके शासनकाल...

औरंगजेब की छवि भारत के समकालीन राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में गहराई से समाई हुई है, जो ऐतिहासिक स्मृति, मिथक और आधुनिक राजनीतिक बयानबाजी का मिश्रण दर्शाती है। उनका नाम अक्सर चुनावी अभियानों और सार्वजनिक बहसों में सामने आता है, जो उनके शासनकाल के सदियों बाद भी भावनाओं और विवादों को जन्म देता है। जब नेता औरंगजेब के संदर्भ में एक-दूसरे की आलोचना करते हैं, तो यह दर्शाता है कि उनकी विरासत राष्ट्रीय राजनीति को कैसे आकार दे रही है। आधुनिक आख्यान में, औरंगजेब को अक्सर एक क्रूर तानाशाह के रूप में दर्शाया जाता है -एक ऐसा व्यक्ति जिसकी तुलना हिटलर या चरमपंथी विचारधाराओं जैसे असहिष्णुता के कुख्यात प्रतीकों से की जाती है। यह धारणा उसे ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करती है जिसने अपना जीवन हिंदू धर्म को खत्म करने और हिंदुओं पर अत्याचार करने के लिए समर्पित कर दिया। नतीजतन, एक प्रचलित धारणा है कि समकालीन भारतीय मुसलमान किसी न किसी तरह से वंश या विचारधारा से मुगल सम्राट की विरासत से जुड़े हुए हैं, जिस पर भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को नुकसान पहुंचाने का आरोप है। 

यह दृष्टिकोण वी.एस. नायपॉल की भारत की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत एक ‘घायल सभ्यता’ है, जिसने सदियों तक विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा गुलामी झेली है, जिसमें मुस्लिम शासक भी शामिल हैं, जिन्होंने कथित तौर पर देश के गौरवशाली अतीत को नष्ट कर दिया। फिर भी, मुस्लिम विजेताओं द्वारा जानबूझकर, व्यवस्थित विनाश में विश्वास एक सतत ऐतिहासिक स्मृति नहीं है और न ही पूरी तरह से सत्यापित ऐतिहासिक अभिलेखों पर आधारित है। इसके बजाय, यह गहरे भावनात्मक और सांस्कृतिक घावों को दर्शाता है, जो अक्सर वर्तमान मुस्लिम विरोधी भावनाओं से प्रेरित होते हैं। ऐतिहासिक रूप से, औरंगजेब आखिरी महत्वपूर्ण मुगल शासक था, जिसने लगभग 5 दशकों तक भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्से पर शासन किया। उसके शासनकाल में अपने पिता शाहजहां को कैद करना, उसकी कथित रूढि़वादिता और दक्षिण को मुगल साम्राज्य में एकीकृत करने में असमर्थता जैसे विवाद रहे। 

औरंगजेब पर बहस का केंद्र उसकी प्रेरणाओं और नीतियों का सवाल है। सर जदुनाथ सरकार जैसे कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि उसका प्राथमिक उद्देश्य शरिया कानून लागू करके और आबादी का धर्मांतरण करके भारत में एक इस्लामिक राज स्थापित करना था। पाकिस्तानी इतिहासकार इश्तियाक हुसैन कुरैशी का दावा है कि औरंगजेब की नीतियों का उद्देश्य मुस्लिम प्रभुत्व को बनाए रखना और साम्राज्य की एकता बनाए रखना था। इसमें धार्मिक बहुलवाद को हतोत्साहित करना शामिल था जो राज्य में मुस्लिम आधिपत्य को कमजोर कर सकता था, जहां वे रक्षा और प्रशासन के लिए जिम्मेदार थे। हालांकि, औरंगजेब की हरकतें हमेशा इस्लामी राज्य को लागू करने के विचार के अनुरूप नहीं थीं। उदाहरण के लिए, जबकि उसने बनारस में विश्वनाथ मंदिर सहित कुछ हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया था, मंदिर विनाश के व्यापक, व्यवस्थित अभियान के दावे का समर्थन करने वाले बहुत कम सबूत हैं। वृंदावन के कई मंदिरों को शाही संरक्षण प्राप्त होता रहा। 

कुछ मंदिरों का विनाश धार्मिक कारणों से प्रेरित होने की तुलना में राजनीति से प्रेरित अधिक प्रतीत होता है, जो अक्सर स्थानीय विद्रोहियों या विद्रोही शासकों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाइयों से जुड़ा होता है। 1679 में औरगंजेब द्वारा जजिया को फिर से लागू करना, जो गैर-मुसलमानों पर लगाया जाने वाला कर था, उसकी नीतियों की व्याख्या को और जटिल बनाता है। जबकि सरकार जैसे कुछ विद्वान इसे हिंदुओं पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने के प्रयास के रूप में देखते हैं। अन्य लोग तर्क देते हैं कि कर का उद्देश्य रूढि़वादी मुस्लिम गुटों से समर्थन जुटाने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में था। शासन के 2 दशकों के बाद इसे फिर से लागू करना यह दर्शाता है कि यह केवल धार्मिक उत्साह से प्रेरित प्राथमिकता नहीं थी, बल्कि संघर्ष के समय, विशेष रूप से राजपूतों और मराठों के खिलाफ सत्ता को मजबूत करने के उद्देश्य से एक उपाय था। 

कुरैशी का तर्क है कि औरंगजेब ने अकबर की अधिक उदार नीतियों के कारण हुए नुकसान को दूर करने का प्रयास किया, जिसने हिंदुओं को प्रशासनिक भूमिकाओं में एकीकृत किया था। विडंबना यह है कि औरंगजेब के शासनकाल के दौरान सरकारी सेवा में हिंदुओं की संख्या में वृद्धि हुई, जो धार्मिक असहिष्णुता के लिए सम्राट की प्रतिष्ठा के बावजूद 1689 तक 33 प्रतिशत तक पहुंच गई। डा. आर.पी. त्रिपाठी औरंगजेब के कार्यों को मुख्य रूप से राजनीति से प्रेरित मानते हैं, जिसका उद्देश्य एक विविध और विशाल साम्राज्य में सत्ता को मजबूत करना था। उसकी नीतियां, हालांकि कभी-कभी कठोर होती थीं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे हिंदुओं के प्रति गहरी दुश्मनी से पैदा हुई हों। औरंगजेब के शासनकाल को उस समय के सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिशीलता के व्यापक संदर्भ में बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। जबकि उसके रूढि़वादी झुकाव और सत्तावादी प्रवृत्तियों ने उसकी कुछ नीतियों को आकार दिया, उसके कार्यों ने एक खंडित और अशांत उपमहाद्वीप पर शासन करने की चुनौतियों को भी प्रतिबिंबित किया। इस प्रकार, औरंगजेब की विरासत भारतीय इतिहास में एक जटिल और विवादित अध्याय बनी हुई है।-निहारिका द्विवेदी

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!