लेन-देन वाली सरकार के प्रति जागरूक हो जाइए

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2024 05:15 AM

be aware of the transactional government

सामान्य जीवन स्थितियों में हम पाते हैं कि बहुत से मनुष्य अपने व्यवहार में लेन-देन वाले होते हैं। 2 मनुष्यों या 2 मानव समूहों के बीच लेन-देन वाला रिश्ता क्या होता है? यह ‘तुम मुझ पर एक एहसान करो और मैं तुम पर एक एहसान करूंगा’ जैसा होता है।

सामान्य जीवन स्थितियों में हम पाते हैं कि बहुत से मनुष्य अपने व्यवहार में लेन-देन वाले होते हैं। 2 मनुष्यों या 2 मानव समूहों के बीच लेन-देन वाला रिश्ता क्या होता है? यह ‘तुम मुझ पर एक एहसान करो और मैं तुम पर एक एहसान करूंगा’ जैसा होता है। बोलचाल की भाषा में, इसे ‘क्विड प्रो क्वो’ कहा जाता है। आधिकारिक निर्णयों के लिए रिश्वत लेन-देन वाली होती है। लीक हुए प्रश्नपत्रों के लिए पैसे का लेन-देन  होता है। मोदी सरकार ने सरकारी एहसानों के लिए चुनावी बॉन्ड के द्वारा लेन-देन वाले व्यवहार को उच्च स्तर पर पहुंचा दिया। चुनावी बॉन्ड योजना का आधार सभी को समझ में आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने, सही ढंग से लेकिन देर से, पूरी योजना को रद्द कर दिया, लेकिन योजना के पीछे की मंशा पर टिप्पणी करने में संयम बनाए रखा। 

कुर्सी बचाओ : 23 जुलाई, 2024 को, एन.डी.ए. सरकार ने लेन-देन वाले व्यवहार को एक नए, उच्च स्तर पर पहुंचा दिया। 2024-25 के बजट के पीछे मुख्य प्रेरणा ‘सरकार को कैसे बचाया जाए’ थी। यह एक कुर्सी बचाओ बजट था। बजट की लेखिका, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना काम बेबाकी से किया। बजट के बाद उनके और सचिवों के बजट प्रस्तावों के स्पष्टीकरण ने 2 सहयोगियों का समर्थन जीतने के लिए किए गए क्रूर प्रयास को उजागर कर दिया। 16 वोट (तेदेपा) और 12 वोट (जद-यू) के बदले में, दोनों राज्यों को बिहार में औद्योगिक नोड्स, कनैक्टिविटी परियोजनाओं और बिजली संयंत्रों के विकास के लिए और पोलावरम सिंचाई परियोजना, औद्योगिक गलियारों और आंध्र प्रदेश में पिछड़े क्षेत्रों के लिए अनुदान के लिए समर्थन मिला। 

सबसे अजीब आश्वासन यह था कि बाहरी सहायता को ‘तेजी से’ या ‘व्यवस्थित’ किया जाएगा, जो कि एक वादा है। तीनों (केंद्र सरकार, बिहार और आंध्र प्रदेश) के बीच हुए बड़े सौदे मेंं, 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ मतदान करने वाले राज्य हार गए। संबंधित राज्यों के सांसदों के अनुसार जिन राज्यों के साथ धोखा हुआ वे हैं पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र,पंजाब, और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली। राज्यों के अलावा युवाओं को धोखा दिया गया। भारत के अधिकांश लोगों को कमतर आंका गया। सबसे ज्यादा मार युवाओं पर पड़ी। बेरोजगारी चरम पर है और युवा हताश हैं। सी.एम.आई.ई. के अनुसार, जून 2024 में अखिल भारतीय बेरोजगारी दर 9.2 प्रतिशत थी। स्नातकों में यह लगभग 40 प्रतिशत है। पीरियोडॉक लेबर फोर्स सर्वे से पता चला है कि केवल 20.9 प्रतिशत नियोजित लोगों को नियमित वेतन मिलता है और विडंबना यह है कि सबसे कम शिक्षित लोग सबसे कम बेरोजगार हैं। 

बजट भाषण में रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ई.एल.आई.) योजना का वादा किया गया था, जिसके तहत नियोक्ताओं को मौद्रिक प्रोत्साहन देकर 290 लाख लोगों को नौकरी दी जाएगी और 5 साल की अवधि में 20 लाख युवाओं को कौशल प्रदान किया जाएगा और केवल 500 कंपनियों में 1 करोड़ लोगों को इंटर्नशिप प्रदान की जाएगी। विशाल संख्याएं चुनाव के बाद के एक और विशाल जुमले की ओर इशारा करती हैं। इस सौदे में केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित निकायों में 30 लाख रिक्तियों के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। यह भी संभव है कि बहुचर्चित उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पी.एल.आई.) योजना, जिस पर कई हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन नौकरियों के मामले में कोई मापनीय परिणाम नहीं मिला है। बकाया शिक्षा ऋण के संबंध में ऋण माफी की सार्वभौमिक मांग का कोई संदर्भ नहीं था जिसने छात्रों और उनके परिवारों को निराशा के कगार पर पहुंचा दिया है। अग्निपथ योजना के भाग्य का भी कोई संदर्भ नहीं था, जिसने एक सैनिक और दूसरे के बीच भेदभाव किया। 

गरीबों को छला गया : लोगों का दूसरा बड़ा वर्ग जो छला हुआ महसूस करता है, वह गरीब है। जाहिर है, वित्त मंत्री नीति आयोग के सी.ई.ओ. के विचार से सहमत हैं। अपनी सांस थाम लें क्योंकि भारत में गरीबों की संख्या जनसंख्या के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। सरकार के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) ने देश में वर्तमान/नाममात्र मूल्यों पर मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (रूक्कष्टश्व) को मापा था। ग्रामीण क्षेत्रों में औसत   रूक्कष्टश्व 3,094 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 4,963 रुपए था जिसका अर्थ है कि भारत के 71 करोड़ लोग प्रतिदिन 100-150 रुपए या उससे कम पर जीवन यापन करते हैं। यदि हम अंश दर अंश नीचे जाएं, तो तस्वीर और भी निराशाजनक हो जाती है। सबसे निचले 20 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 70-100 रुपए और सबसे निचले 10 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 60-90 रुपए पर जीवन-यापन करते हैं। वे गरीब हैं या नहीं इस बात को हम नहीं जानते? 

वित्त मंत्री ने लोगों को ‘राहत’ दी 
उन्होंने मौजूदा मुद्रास्फीति को ‘कम, स्थिर और 4 प्रतिशत के लक्ष्य की ओर अग्रसर’ बताया;
-उन्होंने नई कर व्यवस्था में शामिल होने वाले वेतनभोगी कर्मचारी और पैंशनभोगियों को ‘आयकर में 17,500 रुपए तक’ की राहत दी। आबादी के निचले 50 प्रतिशत में 71 करोड़ लोग न तो वेतनभोगी कर्मचारी हैं और न ही सरकारी पैंशनभोगी, और वित्त मंत्री उनके बारे में कुछ नहीं सोच पाए। वे भी जी.एस.टी. जैसे अप्रत्यक्ष करों के रूप में कर देते हैं। लगभग 30 करोड़ दैनिक/अस्थायी मजदूर हैं और पिछले 6 वर्षों में वास्तविक रूप से उनकी मजदूरी स्थिर रही है। ऐसे तरीके हैं जिनसे गरीबों को राहत दी जा सकती है। हर तरह के रोजगार (मनरेगा के तहत काम सहित) के लिए न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाकर 400 रुपए प्रतिदिन किया जा सकता है।

मनरेगा के लिए धन के आबंटन में वृद्धि के साथ, काम के औसत दिनों की संख्या वर्तमान में प्रति वर्ष लगभग 50 दिनों से बढ़कर वादा किए गए 100 दिनों के करीब हो सकती है और मुद्रास्फीति के मुद्दे से अधिक गंभीरता से निपटा जा सकता है। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को याद रखना चाहिए कि युवाओं और गरीबों के साथ-साथ अन्य नागरिकों के हाथ में एक शक्तिशाली हथियार है - वोट। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने जून 2024 में 13 उप-चुनावों में करारी शिकस्त दी। महाराष्ट्र हरियाणा और झारखंड में चुनाव नजदीक हैं और उसके बाद 2025 में और चुनाव होंगे। युवा और गरीब यह नहीं भूलेंगे कि 23 जुलाई, 2024 को उनके साथ धोखा हुआ था।-पी. चिदम्बरम

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