भगत सिंह का अपने दादा से पहला पत्र व्यवहार

Edited By ,Updated: 23 Mar, 2025 06:23 AM

bhagat singh s first correspondence with his grandfather

भगत  सिंह का अपने दादा स. अर्जन सिंह से पत्र-व्यवहार उसी दिन से शुरू हो गया था जब वे 5वीं कक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए गांव से आकर लाहौर स्थित घर पर रहने लगे। नि:संदेह दादा जी भी उसके दु:ख को समझते थे और उसके पत्रों का उत्तर देने में...

भगत सिंह का अपने दादा स. अर्जन सिंह से पत्र-व्यवहार उसी दिन से शुरू हो गया था जब वे 5वीं कक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए गांव से आकर लाहौर स्थित घर पर रहने लगे। नि:संदेह दादा जी भी उसके दु:ख को समझते थे और उसके पत्रों का उत्तर देने में देर नहीं करते थे। वे हर पत्र में उनका हाल-चाल पूछते थे और उनकी पढ़ाई के बारे में जानकारी लेते थे। गांव में रहते हुए स. अर्जन सिंह इस प्रतिभाशाली बालक के मार्गदर्शक और मित्र थे। वह उनसे हर छोटी-बड़ी बात की जानकारी लेते थे और कभी-कभी उनके साथ बाल्यावस्था वाले खेल भी खेलने लगते थे। 

जब वह छोटा था, तो वह अपनी मीठी और तोतली जुबान के कारण अपनी चाचियों का प्रिय बन गया। सभी उन्हें ‘भागां वाला’ कहते थे क्योंकि उनके जन्म के कुछ दिन बाद ही आंदोलनकारियों की रिहाई शुरू हो गई थी। नवंबर 1907 में स.अजीत सिंह का वनवास टूट गया और स. किशन सिंह और स्वर्ण सिंह भी जमानत पर जेल से रिहा हो गए। उनके देखते ही देखते स.अर्जन सिंह का घर फिर से खुशियों से महकने लगा था। बाल भगत सिंह 4 साल के थे जब उनका दाखिला उनके गांव बंगा, जिला लायलपुर में एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में हुआ था। वहां उन्होंने 1917 में प्राइमरी पास की। उस समय, परिवार में उनकी देखभाल के लिए कई लोग थे। दादा-दादी, माता-पिता और चाची। छोटी आयु में भगत सिंह अपने चाचा स्वर्ण सिंह, अजीत सिंह व भाई जगत सिंह से भी बहुत प्यार करते थे। लेकिन अपने चाचा स्वर्ण सिंह और भाई जगत सिंह की जल्दी मृत्यु हो जाने के कारण वे उनसे थोड़े समय के लिए ही मिल पाए।

स. अर्जन सिंह के परिवार पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था क्योंकि यह उस समय अस्पृश्यता उन्मूलन, लड़कियों की शिक्षा और सामाजिक कल्याण की बात करता था। इसीलिए ग्राम बंगा जिला लायलपुर में प्राइमरी स्कूल पास करने के बाद भगत सिंह को आर्य समाज द्वारा संचालित दयानंद एंग्लो वैदिक (डी.ए.वी.) स्कूल लाहौर में दाखिला दिया गया (डी.ए.वी.) स्कूलों में उर्दू के साथ-साथ हिंदी और संस्कृत भी पढ़ाई जाती थी, लेकिन पंजाबी नहीं। लाहौर में दाखिला लेने के कारण10 वर्षीय बालक भगत सिंह को अपने बड़े परिवार से बिछुडऩा पड़ा और नवांकोट बस्ती, लाहौर आना पड़ा।  किशन सिंह पहले से ही राजनीतिक गतिविधियां कर रहे थे, हालांकि यह जगह काफी खुली थी और वहां एक बगीचा भी था। कभी-कभी वह अपनी मां के साथ गांव जाते थे लेकिन जल्द ही उन्हें गांव की याद सताने लग जाती थी। वह 1918 की बरसात का मौसम था जब स. किशन सिंह के 11वें वर्ष में पहुंचे बेटे भगत सिंह एक वर्ष से अधिक समय के लिए गांव आए थे, लेकिन फिर भी वे शहर के वातावरण में पूरी तरह से नहीं डूबे। वह गर्मियों की छुट्टियों का इंतजार कर रहा था ताकि गांव जाकर अपने दोस्तों के साथ खेतों में खेल सके। 

भगत सिंह के दादा उस समय अपने पैतृक गांव खटकड़कलां जिला जालंधर (अब जिला भगत सिंह नगर) पहुंचे थे। खटकड़ कलां में भी उनके बीच जमीन-जायदाद, करीबी रिश्ते और भाईचारा था। किन्हीं बिंदुओं पर अर्जन सिंह को भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए गांव खटकड़ कलां छोड़कर लायलपुर जाना पड़ा। उन्हें सरकार द्वारा वन भूमि को कृषि योग्य बनाने की योजना के तहत लायलपुर जिले में एक मुरब्बा भूमि आबंटित कराई गई थी। इस कारण वे ऐसे समय में अपने से अलग होने के दर्द और दूर के दोस्तों और रिश्तेदारों के दिलों में उमडऩे वाले प्यार से भली-भांति परिचित थे। वे अक्सर भगत सिंह की भावनाओं को उनके स्थान पर रखकर महसूस करते थे और उनका दिल जीतने के लिए पत्र लिखते थे। उनके उत्साहवर्धक शब्दों से भगत सिंह का हृदय द्रवित हो गया।

जुलाई, 1918 के मध्य में भगत सिंह के दादा स. अर्जन सिंह का लिखा एक पत्र मिला, इसे पढऩे के बाद वह अपने दादा को पढ़ाई में अपने प्रदर्शन के बारे में बताना चाहते थे लेकिन समस्या यह थी कि उनकी फस्र्ट मिडिल क्लास (छठी कक्षा) की परीक्षा का परिणाम नहीं आया था। 21जुलाई को जब उन्हें अपने कुछ पेपरों के नतीजे मिले तो अगले ही दिन वे पत्र के माध्यम से दादाजी को यह खुशखबरी देने बैठ गए। उनका पत्र इस प्रकार था:

प्रिय दादाजी, नमस्कार
प्रार्थना पत्र यह है कि आपका पत्र मुझे मिला, उसे पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। परीक्षा (परिणाम) की बात यह है कि हम आपको पहले नहीं लिख सके क्योंकि हमें सूचित नहीं किया गया था। अब हमें अंग्रेजी और संस्कृत का रिजल्ट बताया गया है। मैं इनमें पास हो गया हूं।
मुझे संस्कृत में 150 में से 110 अंक मिले। अंग्रेजी में 150 में से 68 अंक हैं। जो 150 में से 50 अंक प्राप्त करता है  उत्तीर्ण होता है। मैं 68 अंक के साथ पास हो गया हूं। किसी बात की चिंता मत करो। बाकी नतीजे अभी घोषित नहीं हुए हैं। 8 अगस्त को पहली छुट्टी होगी। आप कब आ रहे हैं। लिखने का कष्ट करें। आपका अपना-भगत सिंह, फस्र्ट मिडिल क्लास। 

पत्र के पाठ से स्पष्ट है कि बाल भगत सिंह की प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में होने के बावजूद वे तेजी से नए विषयों में महारत हासिल कर रहे थे। उन्होंने इस साल पहली बार अंग्रेजी और संस्कृत विषयों की पढ़ाई की, जिसमें वे अपने प्रदर्शन से खुश थे। उनकी मेहनत रंग लाई थी और वह जल्द से जल्द इस सफलता का श्रेय अपने दादा को देना चाहते थे। उन्हें आशा थी कि जब यह पत्र दादाजी को मिलेगा तो उन्हें बहुत दुख होगा  क्योंकि उनके दादाजी को हमेशा यह चिंता सताती रहती थी कि कहीं बाल भगत सिंह शहर जाकर उदास न हो जाएस कहीं उनका मन पढ़ाई से न हट जाए। इसलिए अपने आधे-अधूरे लेकिन अच्छे परिणाम की खबर के साथ, वह दादाजी को बिल्कुल चिंता न करने  के लिए लिखना नहीं भूले थे। 
भगत सिंह द्वारा अपने दादाजी को लिखा गया यह खूबसूरत पत्र दादा-पोते के पवित्र पारिवारिक रिश्ते को गर्मजोशी और स्नेह से भरकर हरा-भरा, रोचक और आकर्षक बनाए रखने का एक उत्कृष्ट प्रयास है।-एडवोकेट, सरबजीत सिंह विर्क
 

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