भागवत का बयान देश की एकता-अखंडता के लिए महत्वपूर्ण

Edited By ,Updated: 26 Dec, 2024 06:31 AM

bhagwat s statement is important for the unity and integrity of the country

भारत विश्व में तेजी से उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति बनने की तरफ कदम बढ़ा रहा है। भारत को 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। अर्थव्यवस्था के अलावा भारत ग्लोबल साऊथ के नेतृत्व के तौर पर तेजी से उभर रहा है।

भारत विश्व में तेजी से उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति बनने की तरफ कदम बढ़ा रहा है। भारत को 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। अर्थव्यवस्था के अलावा भारत ग्लोबल साऊथ के नेतृत्व के तौर पर तेजी से उभर रहा है। खाड़ी के मुस्लिम देश भारत के महत्व और भविष्य की जरूरतों के हिसाब से द्विपक्षीय रिश्तों को स्वीकार कर रहे हैं। यही वजह है कि भारत की इस ताकत को स्वीकारते हुए कुवैत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सर्वोच्च कुवैती सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से सम्मानित किया है। यह किसी देश द्वारा पी.एम. मोदी को दिया गया 20वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मान है।

‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर कुवैत का एक नाइटहुड ऑर्डर है। इस मौके पर पी.एम. मोदी ने अरबी भाषा में प्रकाशित रामायण और महाभारत की कृति कुवैैतियों को सौंपी। इसका अनुवाद और प्रकाशन भी कुवैती मुसलमान ने किया है। 
भारत इस दृष्टि से विश्व को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक सॉफ्ट पावर से अवगत करा रहा है। ऐसे में देश में चल रहे मंदिर-मस्जिद के ऐतिहासिक विवाद क्या भारत की इस तरक्की की रफ्तार में ब्रेक लगाने का काम नहीं करेंगे। इससे देश का सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा। पूर्व में इसी तरह के सांप्रदायिक विवादों की भारत ने जान-माल के नुकसान और वैश्विक निवेश को लेकर संशय के कारण बड़ी कीमत चुकाई है। 

इसी आशंका के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने धार्मिक स्थलों पर गड़े मुर्दे उखाडऩे को लेकर गहरी नाराजगी जाहिर की है। भागवत को अंदाजा है कि ऐसे विवाद से भारत की छवि को नुकसान होगा। इससे कहीं न कहीं प्रगति पर भी असर पड़ेगा। यही वजह है कि संघ की धार्मिक कट्टर छवि के बावजूद भागवत ने ऐसे मुद्दे उठाने वालों को तगड़ी लताड़ लगाई है। भागवत ने पुणे में ङ्क्षहदू सेवा महोत्सव के उद्घाटन के दौरान कहा कि कहीं मंदिर-मस्जिद के रोज नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं।

भागवत के भाषण की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि इस वक्त देश में संभल, मथुरा, काशी जैसी कई जगहों की मस्जिदों के प्राचीन समय में मंदिर होने के दावे किए गए हैं। इनके सर्वे की मांग हो रही है और कुछ मामले अदालतों में लंबित हैं। भागवत ने कहा कि हमारे यहां हमारी ही बातें सही, बाकी सब गलत, यह नहीं चलेगा। अलग-अलग मुद्दे रहे तब भी हम सब मिलजुल कर रहेंगे। हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ न हो इस बात का ख्याल रखेंगे। जितनी श्रद्धा मेरी अपनी खुद की बातों में है, उतनी श्रद्धा मेरी दूसरों की बातों में भी रहनी चाहिए।

भागवत ने यह भी कहा कि रामकृष्ण मिशन में आज भी 25 दिसंबर (बड़ा दिन) मनाई जाती है क्योंकि यह हम कर सकते हैं, क्योंकि हम हिंदू हैं और हम दुनिया में सब के साथ मिलजुल कर रह रहे हैं। यह सौहार्द अगर दुनिया को चाहिए तो उन्हें अपने देश में यह मॉडल लाना होगा। आर.एस.एस. प्रमुख ने किसी विशेष विवाद का जिक्र नहीं किया। उन्होंने कहा कि बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए हैं और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आए। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है।’’ इस व्यवस्था में लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो सरकार चलाते हैं। आधिपत्य के दिन चले गए हैं। मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन इसी तरह की दृढ़ता से जाना जाता था। हालांकि उनके वंशज बहादुर शाह जफर ने 1857 में गौहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था। 

गौरतलब है कि राजस्थान के अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़े विवाद और संभल में एक मस्जिद से जुड़े ऐसे विवादित मुद्दों ने जोर पकड़ लिया। अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे मंदिर का दावा करने वाली याचिका को हाल ही में स्वीकार कर लिया। कुछ ही दिन पहले उत्तर प्रदेश के संभल की शाही जामा मस्जिद के बारे में भी इसी तरह का दावा किया गया और जिला अदालत ने मामले में सर्वे का आदेश दिया। सर्वे के दिन ही संभल में हिंसा भी भड़की, जिसमें पुलिस ने 4 लोगों की मौत की पुष्टि की। आर.एस.एस. प्रमुख भागवत का यह बयान सभी को पच नहीं रहा है। दरअसल इस बयान ने हिन्दुत्व के नेतृत्व का विवाद पैदा कर दिया है।  तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि मैं मोहन भागवत के बयान से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मोहन भागवत हमारे नहीं बल्कि हम उनके अनुशासक हैं।

वहीं, उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मोहन भागवत पर राजनीतिक रूप से सुविधाजनक रुख अपनाने का आरोप लगाया। सरस्वती ने कहा, ‘‘जब उन्हें सत्ता चाहिए थी, तब वे मंदिरों के बारे में बोलते रहे। अब जब उनके पास सत्ता है तो वह मंदिरों की तलाश न करने की सलाह दे रहे हैं।’’ अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि मंदिर और मस्जिद का संघर्ष एक सांप्रदायिक मुद्दा है और जिस तरह से ये मुद्दे उठ रहे हैं, कुछ लोग नेता बनते जा रहे हैं। अगर नेता बनना ही इसका मकसद है तो इस तरह का संघर्ष उचित नहीं है।  कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? यहां सब बराबर हैं।

उन्होंने उम्मीद जताई है कि बाकी संघ परिवार भागवत के बयान पर ध्यान देगा। कांग्रेस के ही एक और सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत को यह रचनात्मक सलाह उन लोगों को देनी चाहिए जो संविधान का अपमान कर रहे हैं ताकि देश में शांति और समृद्धि बनी रहे। आर.एस.एस. प्रमुख का बयान ऐसे समय आया है जब सोशल मीडिया पर मंदिर-मस्जिद के जहरीले बयानों की बाढ़ आई हुई है। भागवत ने वक्त की नजाकत को समझते हुए सही बयान दिया है। इससे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति कायम रहेगी। ऐसे विवादित मुद्दों की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने के लिए सांप्रदायिक एकता में दरार डालने वाले कतिपय तत्वों के हौसले पस्त होंगे।-योगेन्द्र योगी
 

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