भागवत बहुत कम बोलते हैं, लेकिन दिन और अवसर का चयन शानदार होता है

Edited By ,Updated: 20 Oct, 2024 04:43 AM

bhagwat speaks very little but his choice of day and occasion is brilliant

सरसंघचालक प्रमुख मोहन भागवत को समय का अद्भुत ज्ञान है। वे बहुत कम बोलते हैं, लेकिन दिन और अवसर का उनका चयन शानदार होता है। उनके शब्दों का चयन भी शानदार है, हालांकि मैंने उन्हें केवल अंग्रेजी अनुवाद में पढ़ा है। कई लोग उनके विचारों से पूरी तरह असहमत...

सरसंघचालक प्रमुख मोहन भागवत को समय का अद्भुत ज्ञान है। वे बहुत कम बोलते हैं, लेकिन दिन और अवसर का उनका चयन शानदार होता है। उनके शब्दों का चयन भी शानदार है, हालांकि मैंने उन्हें केवल अंग्रेजी अनुवाद में पढ़ा है। कई लोग उनके विचारों से पूरी तरह असहमत हैं और मैं हमेशा असहमत हूं , लेकिन कोई भी इस बात से सहमत नहीं हो सकता कि भागवत के भाषण ध्यान आकर्षित करते हैं, खासकर 2014 के बाद। उनके शब्दों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के आधिकारिक शब्दों के रूप में लिया जाता है। ऐसा संगठन की प्रकृति और संरचना के साथ-साथ सरसंघचालक, प्रमुख के रूप में उनकी स्थिति के कारण है। ऐसा माना जाता है कि आर.एस.एस. में प्रमुख के पास पूर्ण अधिकार होता है। इसलिए, भागवत के भाषणों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और हाल ही में, उन्हें गंभीरता से लिया गया है। 

ठंडी हवा : लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के कुछ समय बाद, जून 2024 में, भागवत ने एक भाषण दिया, जिसमें उनका मुख्य उद्बोधन था ‘अहंकार त्यागो, विनम्रता का अभ्यास करो’। यह लोकसभा चुनाव के बाद उनका पहला सार्वजनिक संबोधन था और उन्होंने कहा-झूठ और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने वाले चुनावी भाषणों ने उस शालीनता का उल्लंघन किया है जिसका पालन पार्टियों से अपेक्षित है। 

आपका प्रतिद्वंद्वी कोई विरोधी नहीं है, वह केवल एक विरोधी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। प्रतिद्वंद्वी की बजाय उन्हें विपक्ष कहें, विपक्ष की राय पर भी विचार किया जाना चाहिए, और एक सच्चा सेवक मर्यादा बनाए रखता है। उसके पास यह कहने का अहंकार नहीं होता कि ‘मैंने यह काम किया’। इस भाषण की व्यापक रूप से व्याख्या पी.एम. मोदी और उनके चुनाव अभियान की ओर इशारा करते हुए की गई। अगला उल्लेखनीय भाषण जुलाई में था जिसमें श्री भागवत ने कहा था कि एक आदमी सुपरमैन बनना चाहता है, फिर देव, और फिर भगवान। यह स्पष्ट रूप से मोदी के इस दावे की अस्वीकृति थी कि उनका जन्म ‘जैविक रूप से’ नहीं हुआ था। यदि मोदी ने गर्भाधान, गर्भधारण और प्रसव से इंकार किया, तो क्या वे खुद को ‘सृजन’ कह रहे थे? और क्या भागवत यह संकेत दे रहे थे कि मोदी ने शायद कोई सीमा लांघी है? 

शीत लहर : तीसरा भाषण विजयदशमी के दिन, 12 अक्तूबर 2024 को आर.एस.एस. के 100वें वर्ष में प्रवेश करने पर था। मैंने रिपोर्ट किए गए पाठ को अंग्रेजी में पढ़ा है। मुझे निराशा हुई, लेकिन आश्चर्य नहीं हुआ, कि भागवत ने आर.एस.एस. के स्थापित वैचारिक पदों पर वापसी की। उनके भाषण में धर्म, संस्कृति, व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र, शुभता और धार्मिकता की जीत और आत्म-गौरव जैसे शब्द तथा वाक्यांश भरे पड़े थे। उन्होंने हमास और इसराईल के बीच संघर्ष का उल्लेख किया, लेकिन 43,000 मौतों का कोई उल्लेख नहीं किया; जम्मू-कश्मीर में चुनावों का उल्लेख किया, लेकिन नई सरकार को अपनी शुभकामनाएं नहीं दीं और मणिपुर के बारे में उन्होंने केवल इतना कहा कि वह ‘अशांत’ है। भागवत के भाषण का बाकी हिस्सा ठेठ मोदी-भाषण था। कैसे भारत एक राष्ट्र के रूप में मजबूत हुआ है, कैसे दुनिया हमारे सार्वभौमिक भाईचारे की भावना को स्वीकार कर रही है, और कैसे भारत की छवि, शक्ति, प्रसिद्धि और विश्व मंच पर स्थिति लगातार सुधर रही है। और भी बहुत कुछ था। देश को अस्थिर करने की कोशिशें जोर पकड़ रही हैं, उदार होने का दावा करने वाले देश दूसरे देशों पर हमला करने या उनकी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को अवैध या ङ्क्षहसक तरीकों से उखाड़ फैंकने में संकोच नहीं करते, झूठ के आधार पर भारत की छवि को बदनाम करने की जानबूझकर कोशिश करते हैं, आदि। 

मोहन भागवत ने इन गंभीर आरोपों का कोई सबूत नहीं दिया। बांग्लादेश का जिक्र करते हुए, वे पूरे जोश में थे और उन्होंने ‘ङ्क्षहदू समुदाय पर अकारण क्रूर अत्याचार’, ‘हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर लटकने वाली खतरे की तलवार’ और ‘बांग्लादेश से भारत में अवैध घुसपैठ और इसके कारण होने वाले जनसंख्या असंतुलन’ की ओर इशारा किया। अंत में, मोदी की तरह भाषण देते हुए उन्होंने कहा, ‘दुनिया भर के हिंदू समुदाय को यह सबक सीखना चाहिए कि असंगठित और कमजोर होना दुष्टों द्वारा अत्याचार को आमंत्रित करने के समान है’। 

देखने वाले की नजर : विशेष रूप से भाषण में ‘हिंदू’ शब्द के स्थान पर ‘मुस्लिम’ शब्द रखें, और ऐसा लगेगा कि वक्ता हर सांप्रदायिक संघर्ष को उचित ठहरा रहा था। भागवत के हर विचार और शब्द का इस्तेमाल भारत में मुसलमानों और दलितों, संयुक्त राज्य अमरीका में अश्वेतों, विश्व युद्ध-पूर्व जर्मनी में यहूदियों, अपने ही देश में फिलिस्तीनियों, बहुसंख्यकों द्वारा भयभीत हर अल्पसंख्यक और हर जगह महिलाओं की दुर्दशा का वर्णन करने के लिए किया जा सकता है। हमलावर कौन है और पीड़ित कौन है, यह देखने वाले की नजर में है। भागवत ‘शहरी नक्सल’ और ‘टुकड़े-टुकड़े गिरोह’ को भूल गए।

उन्होंने ‘अरब स्प्रिंग’ और ‘पड़ोसी बंगलादेश में हाल ही में जो हुआ’ का उल्लेख किया, और ‘भारत के चारों ओर इसी तरह के बुरे प्रयासों’ के खिलाफ चेतावनी दी। मोदी के कथनों और कार्यों को नियंत्रित करने वाला कोई न होने के कारण, वे अपने अधिकार का उपयोग करने, विपक्षी दलों को गाली देने और अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित महसूस करेंगे, जिसके कारण मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, असमानता, क्रोनी पूंजीवाद, सामाजिक उत्पीडऩ, सांप्रदायिक संघर्ष और अन्याय हुआ है। मोदी-भाषण और मोदी-कार्यों के लिए खुद को तैयार रखें।-पी. चिदम्बरम

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