प्रशांत किशोर के समक्ष बड़ी चुनौतियां

Edited By ,Updated: 26 Oct, 2024 05:31 AM

big challenges before prashant kishore

बिहार की अशांत राजनीति में प्रशांत किशोर ने एक कंकड़ फैंक कर इसे थोड़ा और अशांत कर दिया है।  चौतरफा हमले शुरू हो गए हैं। बहरहाल, ये हमले राजनीतिक रस्म भी है और अनिवार्यता भी क्योंकि सत्ता लोहे का पिंजरा (आयरन लॉ ऑफ ओलिगार्की) होता है, जिसमें...

बिहार की अशांत राजनीति में प्रशांत किशोर ने एक कंकड़ फैंक कर इसे थोड़ा और अशांत कर दिया है। चौतरफा हमले शुरू हो गए हैं। बहरहाल, ये हमले राजनीतिक रस्म भी है और अनिवार्यता भी क्योंकि सत्ता लोहे का पिंजरा (आयरन लॉ ऑफ ओलिगार्की) होता है, जिसमें बाहरियों का प्रवेश निषिद्ध माना जाता है। बाहरी मतलब, जिसके मां-बाप, चाचा, मामा आदि राजनीति में न हों।

ऐसा कोई शख्स जब राजनीति के इस लौह पिंजरे में घुसने की कोशिश करता है, तब ऐसे हमले स्वाभाविक हैं। अब, प्रशांत किशोर इन हमलों को, आलोचनाओं को कैसे लेते हैं, देखने वाली बात होगी। फिलहाल, हम यहां उनके समक्ष उन चुनौतियों की संक्षेप में बात करेंगे, जिससे पार पाकर ही वह लोहे के इस पिंजरे को तोड़ सकेंगे। 

जाति का जाल-बिहार या कमोबेश उत्तर भारत की राजनीति में जाति का जलवा कुछ उसी तरह का है कि आधी रोटी खाएंगे, एटम बम बनाएंगे। मतलब, जाति के लिए विकास (राज्य या खुद का) को त्यागने में यहां सैकेंड भी नहीं लगते। इस स्थिति में प्रशांत किशोर की खुद की जाति एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, यह ऐसी चुनौती भी नहीं है, जिसे तोड़ा न जा सके। लेकिन, वे इसे कैसे तोड़ेंगे, यह महत्वपूर्ण है। सिर्फ विकास-विकास की रट लगाने भर से कम नहीं चलने वाला, क्योंकि ऐसा कौन सा नेता है जो कहता है कि हम बिहार का ‘विनाश’ करना चाहते हैं। 

आधी आबादी की नाराजगी-शराबबंदी को लेकर प्रशांत किशोर ने खुलेआम कह दिया है कि उनकी सरकार बनी तो पहली बैठक में शराबबंदी हटाएंगे और उससे होने वाली कमाई से शिक्षा पर खर्च करेंगे। सुझाव बहुत अच्छा है। नीयत भी अच्छी लगती है। लेकिन, राजनीतिक रूप से नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को बिहार की आधी आबादी के सैंटीमैंट से जोड़ दिया है और बहुत गहराई से जोड़ दिया है, जिसका फायदा रह-रह कर उन्हें चुनाव में मिलता भी है। 

वैचारिक अस्पष्टता-यह सवाल बड़ा स्टीरियोटाइप लगता है लेकिन है बहुत महत्वपूर्ण और दीर्घकालिक असर वाला भी, क्योंकि आप लाख विकास करें, एक मोड़ ऐसा आता है जहां आपको कुछ निर्णय लेने होते हैं, जिसके लिए आपके पास एक वैचारिक आधार होना चाहिए। मसलन, आरक्षण हो या पूंजी का विषय, आप किधर जाएंगे, कैसे जाएंगे। आप लैफ्ट हैं,  राइट हैं, सैंटर हैं, सैंटर टू राइट हैं या सैंटर टू लैफ्ट हैं। तो, आपको यह साफ करना होगा, सीना ठोक कर बोलना होगा कि हम ये हैं।

एरोगेंस-हम सी.एम. और विधायक बनाते हैं। चुनाव जितवाना हमें आता है। लोकतंत्र में एरोगेंस के लिए कोई जगह नहीं होती। कुछ दिन, कुछ साल यह एरोगेंस चल भी जाए, तो लंबी रेस के घोड़े को विनम्र होना ही चाहिए। स्वयं प्रशांत किशोर में एरोगेंस बहुत अधिक है, ऐसा मैंने कई बार महसूस किया है। संभव है कि मेरी समझ या फीङ्क्षलग गलत हो लेकिन एक आम अवधारणा यही है। 

टिकट वितरण-एक नजर जब टिकट वितरण पर दौड़ाता हूं, तो पाता हूं कि इनकी पार्टी में विविध किस्म के लोगों ने एंट्री ली है। आई.ए.एस.-आई.पी.एस. छोडि़ए, कर्पूरी ठाकुर जी की पोती, पवन वर्मा, देवेन्द्र यादव जैसे लोग जहां एक तरफ हैं, वहीं वकील, डाक्टर, शिक्षाविद् भी हैं। लेकिन, अद्भुत रूप से इनकी पार्टी में बड़ी संख्या में बिहार के नव-धनाढ्यों ने भी एंट्री ली है। 

विकास का ब्लू प्रिंट-इस मसले पर उनका कहना है कि उनकी एक बड़ी और खरी टीम इस पर काम कर रही है। पहले  विकास का ब्लू प्रिंट पार्टी की स्थापना दिवस पर ही आना था लेकिन अब संभवत: अगले साल मार्च तक ही आ पाएगा। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि उनकी राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यही है, जिसे आने में, सार्वजनिक करने में और प्रचारित-प्रसारित करने में सर्वाधिक समय लग रहा है। कायदे से यह काम सबसे पहले होना चाहिए था और इसे बिहार के लोगों के दिलो-दिमाग में बिठा देना चाहिए था। इसमें देरी का अर्थ है कि लोग इसे जब तक समझेंगे, इस पर विचार करेंगे, इस पर बहसबाजी होगी, तब तक चुनाव का वक्त आ जाएगा। फिर, वह दीर्घकालिक विकास मॉडल  या तात्कालिक राहत देने वाले उपाय लेकर आते हैं, यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा। 

सी.एम. फेस-2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का काम प्रशांत किशोर देख रहे थे। पार्टी दफ्तर में 10 गारंटी कार्यक्रम लांच होना था। मंच पर सिर्फ एक कुर्सी लगाई गई थी। मैंने जानकारी ली तो कहा गया कि यह प्रशांत किशोर का आइडिया है कि मंच पर अकेले सिर्फ केजरीवाल होंगे। रणनीतिक रूप से यह ठीक भी था, क्योंकि अब लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारतीय चुनाव भी व्यक्ति केन्द्रित, फेस सैंटर्ड हो गए हैं। फिर चाहे मोदी जी हों, योगी जी हों, नीतीश कुमार हों या कोई अन्य। ऐसे में, बिहार में जन सुराज की तरफ से सी.एम. फेस कौन प्रोजैक्ट होगा, कब तक होगा, यह बड़ा सवाल है। प्रशांत किशोर यह कहकर नहीं बच सकते कि विधायक सी.एम. को चुनेंगे। यह सब बकवास की बातें हैं। 

संघर्ष का अभाव-बिहार में हाल के दिनों में अपराध की वीभत्स घटनाएं घटीं। एक दलित मासूम के साथ वीभत्स और क्रूर कृत्य हुआ। हत्याओं का दौर जारी है, लेकिन प्रशांत किशोर इन जगहों पर नहीं दिखते। वह खुद कहते हैं, मैं सोशल मीडिया से दूर रहता हूं। तो, उनसे बेहतर तो पप्पू यादव हैं, जो हर किसी के सुख-दुख में शरीक होते हैं। आखिर आप तभी बिहार के लोगों के सुख-दुख में शामिल होंगे, जब आपकी पार्टी सरकार बना लेगी? ये कौन-सी शर्त है?-शशि शेखर
 

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!