Edited By ,Updated: 13 Feb, 2025 05:37 AM
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सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के बीच दुश्मनी और जातीय हिंसा में उनकी मिलीभगत पर सुप्रीम कोर्ट के अभियोग की छाया का सामना करते हुए, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन इससे पहले उन्होंने...
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के बीच दुश्मनी और जातीय हिंसा में उनकी मिलीभगत पर सुप्रीम कोर्ट के अभियोग की छाया का सामना करते हुए, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन इससे पहले उन्होंने पूर्वोत्तर राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। मई 2023 में मैतेई-कुकी जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से यह छोटा राज्य 21 महीने से जल रहा था। हालांकि दोनों समुदाय दशकों से एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं, लेकिन तत्काल उकसावे की वजह राज्य सरकार को मैतेई के लिए आरक्षण पर विचार करने के लिए उच्च न्यायालय का निर्देश था, जिसने पुराने घावों को उजागर कर दिया। तब से राज्य में उथल-पुथल मची हुई है, जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, कई और घायल हुए हैं और हजारों लोग 350 से ज्यादा राहत शिविरों में तड़प रहे हैं। कई बार बंदूकों और मोर्टार से सशस्त्र झड़पों की घटनाएं हुई हैं, जिनमें से ज्यादातर विभिन्न समूहों द्वारा पुलिस शस्त्रागार से लूटी गई थीं। लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद का 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा अभी भी बरामद किया जाना है।
अधिकांश शैक्षणिक संस्थान बंद होने और आर्थिक गतिविधि के ठप्प होने से सामान्य जीवन ठहर गया था। राज्य के कई हिस्सों में कफ्र्यू लगा हुआ है। फिर भी केंद्र सरकार ने आंखें मूंद लीं और मैतेर्ई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मुख्यमंत्री को हटाने से इंकार कर दिया, जिन्होंने कुकी और अन्य आदिवासी समुदायों का विश्वास खो दिया था।
सबसे चौंकाने वाली बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अडिय़ल रवैया था, जिन्होंने विपक्ष और यहां तक कि मीडिया की जोरदार मांग के बावजूद राज्य का दौरा करने से इंकार कर दिया। वे परीक्षा की तैयारी से लेकर आॢटफिशियल इंटैलीजैंस के भविष्य तक किसी भी विषय पर बोलने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन मणिपुर में जो कुछ हो रहा था, उस पर चिंता व्यक्त करने से बचते रहे। यह समझ से परे है कि केंद्र ने लगभग 2 साल तक तनाव को क्यों बढऩे दिया। और अब राज्य एक और संकट का सामना कर रहा है जो बीरेन सिंह के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर है। जाहिर है कि पार्टी के विधायक, जो दोनों समुदायों में से किसी एक से ताल्लुक रखते हैं, इस बात पर विभाजित हैं कि नया मुख्यमंत्री कौन होगा।
शायद संकट से भरे बीरेन सिंह के कार्यकाल के दौरान उत्तराधिकारी को तैयार करने का कोई प्रयास नहीं किया गया, जिन्हें एक दिन जाना ही था। एक महत्वपूर्ण सीमावर्ती राज्य की ऐसी उपेक्षा अक्षम्य है। यह तथ्य कि उत्तर पूर्व में भाजपा नेताओं और उसके गठबंधन सहयोगियों के बीच भी गहरी नाराजगी पनप रही थी। पिछले साल भाजपा की सहयोगी मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली नैशनल पीपुल्स पार्टी ने बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने को उचित ठहराते हुए संगमा ने कहा था ,‘‘सही समय पर निर्णय नहीं लिए गए और स्थिति बदतर हो गई है...लोग मर रहे हैं और उन्हें पीड़ित देखना दुखद है...चीजें अलग तरीके से की जा सकती थीं, जैसे कि गार्ड को बदलना।’’
विडंबना यह है कि मणिपुर भाजपा प्रमुख और राज्य से पार्टी के एक सांसद ने भी राज्य सरकार के कामकाज की आलोचना की थी। एक और कारण जो बीरेन सिंह को पद छोडऩे के लिए मजबूर कर सकता था, वह था राज्य विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव हारने की संभावना, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ विधायकों द्वारा सरकार के खिलाफ मतदान करने की संभावना थी। मोदी सरकार, जो गैर-भाजपा दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के खिलाफ आक्रामक रही है, मणिपुर में अपनी खुद की अक्षम सरकार के साथ नर्मी से पेश आ रही है। इस दावे में कुछ सच्चाई हो सकती है कि म्यांमार और चीन इस समस्या को बढ़ावा दे सकते हैं, लेकिन यह राज्य की ओर से हिंसा को रोकने में पूरी तरह विफल होने का कोई बहाना नहीं है।
बल प्रयोग या बीरेन सिंह जैसे अक्षम नेताओं को थोपने से 2 युद्धरत समुदायों के बीच विश्वास बहाल नहीं हो सकता। पिछले 21 महीनों में दोनों समुदायों के नेतृत्व को बातचीत की मेज पर लाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया है। वास्तव में, इस मुद्दे से निपटने का यही एकमात्र तरीका है। मैतेई और कुकी के बीच खोए हुए विश्वास को बहाल करना महत्वपूर्ण है। यह एक दुर्लभ उदाहरण होना चाहिए जहां केंद्रीय शासन लागू करने का मीडिया सहित समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा स्वागत किया जाएगा। भाजपा, जो पूरे देश में जीत की होड़ में है, को शांतिपूर्ण मणिपुर के लिए कुछ बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए और झूठी प्रतिष्ठा पर खड़ा नहीं होना चाहिए।-विपिन पब्बी