भाजपा फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो गई

Edited By ,Updated: 11 Oct, 2024 05:10 AM

bjp is back on its feet again

हाल ही में घोषित हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक ही सीख मिलती है कि इस बार सभी जानकार राजनीतिक विश्लेषकों ने बड़े अंतर से गलत अनुमान लगाया है। इन पंडितों ने पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को भारी जीत दिलाई थी।

हाल ही में घोषित हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक ही सीख मिलती है कि इस बार सभी जानकार राजनीतिक विश्लेषकों ने बड़े अंतर से गलत अनुमान लगाया है। इन पंडितों ने पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को भारी जीत दिलाई थी। वे गलत साबित हुए। इस बार उन्हें यकीन था कि कांग्रेस हरियाणा में जीत दर्ज करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए आर.एस.एस. कार्यकत्र्ताओं ने कड़ी मेहनत की। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के इस दावे को गलत साबित कर दिया कि पार्टी को उनके गुरु की मदद की जरूरत नहीं है। मतों के प्रतिशत के मामले में कांग्रेस ने भाजपा के प्रदर्शन की बराबरी की और 40 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि भाजपा को 41 प्रतिशत वोट मिले। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का प्रदर्शन बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं रहा। वहां जीत का श्रेय पिता-पुत्र अब्दुल्ला परिवार को जाता है। 

कांग्रेस-एन.सी.पी. गठबंधन द्वारा जीती गई 48 सीटों में से 42 पर नैशनल कांफ्रैंस ने कब्जा कर लिया। भाजपा ने 29 सीटें जीतीं, ये सभी जम्मू क्षेत्र से हैं, जिसे वह राज्य में अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में दावा कर सकती है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा कहीं ज्यादा अनुशासित पार्टी है। कांग्रेस हमेशा से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अलग-अलग दावेदारों की आकांक्षाओं से उत्पन्न आंतरिक गुटीय युद्धों से पीड़ित रही है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रतिस्पर्धी महत्वाकांक्षाएं मौजूद हैं। विपक्ष को खत्म करने की अपनी बेचैनी में भाजपा ने अन्य पार्टियों से कई दलबदलुओं को शामिल किया है। यह ऐसा करना जारी रखती है। इन दलबदलुओं में से अधिकांश असंतुष्ट कांग्रेसी हैं। एक बड़ा हिस्सा इसलिए दलबदलू हो गया क्योंकि वे प्रवर्तन या जांच एजैंसियों के अवांछित ध्यान से डरते थे। 

हरियाणा में भाजपा की जीत की यात्रा का एक पहलू मेरे जैसे गैर-राजनीतिक नागरिकों को परेशान करता है। भाजपा ने महिलाओं की सुरक्षा और मानवीय प्रयासों के अधिकांश क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर उन्हें शामिल करने के लिए खुले तौर पर अपना समर्थन घोषित किया है। फिर भी, जब वह बलात्कार के दोषियों को अनुचित अवधि के लिए, विशेष रूप से चुनावों के दौरान पैरोल पर रिहा करती है, तो वह स्पष्ट रूप से छल और दोमुंहापन का मामला बनती है। मुझे नहीं पता कि इससे उसके वोटों पर कितना फर्क पड़ा, लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो यह ‘साधनों को उचित ठहराने वाले साध्य’ का स्पष्ट उदाहरण था। इस मामले में साध्य चुनावों में जीत थी। साधन में सभी संभावित बलात्कारियों को यह संदेश देना शामिल था कि जब तक आप उसे चुनाव जीतने में मदद करते हैं, तब तक ‘आप’ सत्ता की भूखी पार्टी से सौम्य व्यवहार की उम्मीद कर सकते हैं। भारतीय नारीत्व की सुरक्षा और सम्मान गौण है। 

पिछले कुछ सालों में महिलाओं के अपमान के 2 अन्य मामलों में भी भाजपा ने अपनी मंशा साबित कर दी है। केसरगंज से भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह का मामला, जिन पर प्रसिद्ध महिला पहलवानों ने युवा, महत्वाकांक्षी महिला पहलवानों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया था, इसका एक उदाहरण है। गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो मामले में दोषी ठहराए गए 11 बलात्कारियों और हत्यारों को समय से पहले जेल से रिहा करने का एक और बेशर्मी भरा फैसला भी महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान से जुड़े मुद्दों पर भाजपा के दोहरे रवैये को साबित करता है। इस आलोचना के बाद, मैं हरियाणा में भाजपा की जीत के मामले पर वापस आता हूं। मैं कांग्रेस द्वारा चुनाव आयोग के आचरण में खामियां निकालने से सहमत नहीं हूं। यहां तक कि मोदी और अमित शाह ने भी लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के आधे से ज्यादा मत प्राप्त न कर पाने पर हारे हुए लोगों की तरह प्रतिक्रिया नहीं की। राहुल और उनके साथियों को मतदाताओं के जनादेश को सहजता से स्वीकार करना चाहिए और कांग्रेस पार्टी को अगले महीने महाराष्ट्र राज्य में होने वाले बड़े परीक्षण के लिए तैयार करना चाहिए। 

मेरे राज्य में भाजपा कार्यकत्र्ताओं को इस बात से बहुत बढ़ावा मिला कि उनकी पार्टी हरियाणा में जीत गई है। लेकिन महाराष्ट्र हिंदी भाषी राज्यों से अलग है। नवंबर में मतदान करने वाले महाराष्ट्र में भाजपा की स्थिति तब तक खराब रही जब तक गरीबी रेखा से नीचे की हर महिला को हर महीने 1,500 रुपए की ‘लाडकी बहन’ की मदद ने चुनावी परिदृश्य को बदल नहीं दिया। मुंबई में कई पर्यवेक्षकों को लगा कि इस मदद से लाभार्थी भाजपा के खेमे में चले जाएंगे। इसे स्वाभाविक माना जा सकता है। दुर्भाग्य से, अगस्त और सितंबर में खजाना खाली होने के कारण राजकोष यह पैसा नहीं भेज पाया।

यहां तक कि नितिन गडकरी जैसे समझदार और विवेकशील नेता ने भी खुलेआम आश्चर्य जताया कि यह पैसा कहां से आएगा। लेकिन मुंबई में भाजपा के एक अन्य स्थानीय नेता ने दावा किया कि अगस्त और सितंबर के लिए दिए जाने वाले अनुदान को अक्तूबर में मिलने वाले अनुदान में जोड़ दिया जाएगा और चुनाव से पहले लाभार्थियों के बैंक खातों में जमा कर दिया जाएगा, जिसकी तारीखों की घोषणा अभी नहीं की गई है। असली गेम चेंजर मुफ्त चीजों का वादा है। उस वायदे पर इच्छित लाभार्थियों द्वारा भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सरकार भुगतान करने में सक्षम नहीं है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 

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