अटल, अडवानी और जोशी जी की सदैव ऋणी रहेगी भाजपा

Edited By ,Updated: 18 Nov, 2024 05:54 AM

bjp will always be indebted to atal advani and joshi ji

1952 में जनसंघ, 1977 में जनता पार्टी और 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी सदैव अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी और मुरली मनोहर जोशी की ऋणी रहेगी। कार्यकत्र्ताओं का सिर इस ‘त्रिमूर्ति’ के सामने स्वयं झुक जाएगा। अडवानी जी संगठन के रूप में, अटल...

1952 में जनसंघ, 1977 में जनता पार्टी और 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी सदैव अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी और मुरली मनोहर जोशी की ऋणी रहेगी। कार्यकत्र्ताओं का सिर इस ‘त्रिमूर्ति’ के सामने स्वयं झुक जाएगा। अडवानी जी संगठन के रूप में, अटल बिहारी वाजपेयी लोकप्रिय नेता के रूप में और मुरली मनोहर जोशी विचार गढऩे के रूप में सर्वमान्य थे।

अटल जी जहां सौम्य स्वभाव के लिए, अडवानी एक सशक्त संगठन बनाने के लिए याद किए जाएंगे, वहीं मुरली मनोहर जोशी एक पीएच. डी. प्रोफैसर के रूप में पार्टी की विचारधारा गढऩे में हमेशा कार्यकत्र्ताओं के मन में बसे रहेंगे। अटल जी हंसी-हंसी में अपनी बात कहने में अपना प्रभाव दूसरों पर छोड़ जाते थे, अडवानी जी का गुस्से से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पटवा जी से त्यागपत्र  देने का उनका भयानक स्वरूप मैंने स्वयं देखा है, वहीं मुरली मनोहर जोशी बिना ऊंचे स्वर में अपनी बात रखने में चतुर थे।   उन्होंने 1974 के छात्र आंदोलन और सर्वोदय नेता जय प्रकाश नारायण को कांग्रेसवाद से बाहर निकाल उन्हें संघमय बना दिया। जय प्रकाश नारायण जहां गांधी प्रभाव में पले-बढ़े,  वहीं नानाजी देशमुख ने उन्हें लोकप्रिय जन-आंदोलन का नेता बना दिया। मैं 1974 के छात्र आंदोलन में जय प्रकाश नारायण के सान्निध्य में रहा। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद तब बिहार के स्टूडैंट नेता थे। 

खैर, मैं आपको अपने  विषय भाजपा की ओर पुन: ले चलता हूं। 1980 में जनता की उम्मीदों पर बनी जनता पार्टी की कार्यकारिणी ने स्वत: एक प्रस्ताव पारित कर दिया कि जनता पार्टी का कोई भी कार्यकारिणी सदस्य, सांसद, विधायक या नेता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियों या कार्यक्रमों या शाखाओं में भाग नहीं ले सकता। इस प्रस्ताव के पारित होते ही जनसंघ के लोगों ने जनता पार्टी को छोड़ दिया। तब जनता पार्टी के प्रधान थे भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर। तब जनसंघ वालों ने दिल्ली में इकट्ठे होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर जनसंघ के दीपक निशान को सदा के लिए पानी में बहा दिया। 1980 को बम्बई के बांद्रा में भारतीय जनता पार्टी की विधिवत घोषणा हुई। उसी बम्बई अधिवेशन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री मोहम्मद करीम छागला ने भविष्यवाणी कर दी कि देश के अगले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी होंगे।

राज माता सिंधिया तब अधिवेशन की अध्यक्षता कर रही थीं। उन्होंने अटल जी को गले लगा लिया। दोनों नेताओं के तब आंसू भी छलक आए थे। कई अन्य नेता भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए जिनकी अपनी स्वतंत्र विचारधारा थी। उनमें सिकंदर बख्त, प्रशांत भूषण इत्यादि प्रमुख नेता थे। 1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल 2 सीटें मिलीं। राम जन्मभूमि आंदोलन का मैं स्वयं एक विधायक होने के कारण भुगतभोगी रहा। पहली बार उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार की गोलियों से कार सेवकों को शहीद होते और आहत होते देखा। दूसरी बार सहारनपुर और मेरठ की जेलों की महीनों हवा खाई, तब जाकर लखनऊ से पैदल चलकर अयोध्या पहुंचे और बाबरी मस्जिद का विध्वंस देखा। तब दो फायर ब्रांड साध्वियों सुश्री उमा भारती और ऋतम्बरा की आग उगलती तकरीरों ने राम जन्मभूमि आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया।

इस आंदोलन के कारण नवम्बर 1989 में नौवीं लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 525 लोकसभा सीटों में से 88 सीटें प्राप्त हुईं। तब इसी पार्टी के सहयोग से राष्ट्रीय गठबंधन सरकार बनी। वी.पी. सिंह देश के प्रधानमंत्री बने, परंतु वह सरकार मंडल और कमंडल के चक्र में टूट गई। दसवीं लोकसभा के चुनाव में 503 घोषित परिणामों में 119 सीटें मिलीं। इससे लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को विरोधी पक्ष की मान्यता प्राप्त हुई। अप्रैल-मई 1996 की 11वीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को 543 सीटों में से 161 सीटें मिलीं। तब भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी।

राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को इस शर्त पर सरकार बनाने का निमंत्रण दिया कि 31 मई, 1996 तक लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करें। 24 मई 1996 को अविश्वास मत पेश हुआ।  प्रस्ताव पर 2 दिन बहस हुई, परंतु बहस पूरी होने से पहले ही वाजपेयी जी ने अपने मंत्रिमंडल का इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। यह सरकार केवल 13 दिन चली। 11वीं लोकसभा में अटल जी विपक्ष के नेता रहे। फरवरी-मार्च में 12वीं लोकसभा में भाजपा को 182 सीटें मिलीं और सहयोगी दलों को 76 सीटें मिलीं। 

वाजपेयी जी ने तब सहयोगी दलों से मिलकर केंद्र में अपनी सरकार बनाई। बहुत प्रशंसनीय कार्य इस काल में हुए। 19 मार्च, 1998 को ही हिमाचल प्रदेश, गुजरात, नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा के विधान सभा चुनावों में भाजपा की सरकारें बनीं। 13वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 339 उम्मीदवार खड़े किए। 182 सीटें  प्राप्त हुईं। 26 अन्य दलों को मिलाकर 13 अक्तूबर, 1999 को वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। 543 में से इस गठबंधन को 297 सीटें प्राप्त हुईं।

अब भारतीय जनता पार्टी का कार्यकत्र्ता समझ सकता है कि इसकी सफलता का रास्ता अटल, अडवानी और जोशी की त्रिमूर्ति के सतत प्रयास के चलते मिला और 2004 तक यही त्रिमूर्ति अग्रणी रही। यह ठीक है कि राजनीतिक पार्टी का उद्देश्य ही यही है कि सफलता के झंडे गाढऩा है परंतु इस विजय पथ पर अपने ही छूट जाएं यह कहां की बुद्धिमता है? देश का साधारण व्यक्ति मोदी-शाह की जोड़ी से भयाक्रांत क्यों है? जम्मू-कश्मर जल रहा है, आतंकवादी मर कर भी हमारे सैनिकों को शहीद कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सलवादी रोज हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। मणिपुर जातिवाद की भट्ठी में पिछले 2 साल से जल रहा है। बंगलादेश में सत्ता परिवर्तन भारत के लिए गहरी चिंता का विषय है। इन चीजों पर मिल-बैठकर ही विचार होना चाहिए।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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