Edited By ,Updated: 09 Jun, 2024 05:11 AM
द लैंसेट कमीशन के विशेषज्ञों ने चिंता जताते हुए कहा है कि स्तन कैंसर से 2040 तक हर साल दस लाख लोगों की मौत होने की आशंका है। अभी भी हर साल 6-7 लाख महिलाओं की इस कैंसर के कारण जान जा रही है, इन आंकड़ों के और भी बढऩे का खतरा है।
द लैंसेट कमीशन के विशेषज्ञों ने चिंता जताते हुए कहा है कि स्तन कैंसर से 2040 तक हर साल दस लाख लोगों की मौत होने की आशंका है। अभी भी हर साल 6-7 लाख महिलाओं की इस कैंसर के कारण जान जा रही है, इन आंकड़ों के और भी बढऩे का खतरा है। हालिया अध्ययनों में ङ्क्षचता जताई गई है कि महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर जिस गति से बढ़ता जा रहा है ऐसे में आशंका है कि साल 2040 तक इसके मामले और मृत्यु का खतरा कई गुना और अधिक हो सकता है। ग्रामीण महिलाओं की बजाय शहरी महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा 10 गुना ज्यादा है।
भारत में महिला-पुरुष दोनों में कैंसर और इसके कारण होने वाली मौतों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। स्तन कैंसर अब दुनिया नहीं बल्कि भारत के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। अस्पतालों में आ रहे मरीजों की लंबी कतारें इसकी गवाह हैं। वहीं स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े महिलाओं की तरफ ब्रैस्ट कैंसर के बहाने बढ़ती मौत की कहानी बता रही हैं। लैंसेट कमीशन की हालिया जारी रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2020 के अंत तक 5 वर्षों में लगभग 7.8 मिलियन (78 लाख से अधिक) महिलाओं में स्तन कैंसर का निदान किया गया और लगभग 6.85 लाख महिलाओं की इस बीमारी से मृत्यु हो गई। आयोग का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर स्तन कैंसर के मामले 2020 में 23 लाख से बढ़कर साल 2040 तक 30 लाख से अधिक हो सकते हैं।
अमरीका के एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मैडीसिन में प्रोफैसर और शोधकत्र्ता रेशमा जागसी कहती हैं, महिलाओं को इस बढ़ती स्वास्थ्य समस्या को लेकर सावधानी बरतनी जरूरी है। इसके लिए जागरूकता अभियान भी बहुत आवश्यक है, जिससे समय पर इसके जोखिमों की पहचान करने में मदद मिल सके। रिसर्च का मानना है 2040 तक इस बीमारी से होने वाली मौतों का जोखिम प्रति वर्ष दस लाख से अधिक हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया, भारतीय महिलाओं में भी स्तन कैंसर का जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि ब्रैस्ट कैंसर का सबसे बड़ा खतरा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में देखा जा रहा है, जहां महिलाएं असाधारण रूप से इससे प्रभावित हो रही हैं।
स्मोकिंग, शराब का चलन बड़ा कारण: विशेषज्ञों के अनुसार ब्रैस्ट कैंसर के शहरी महिलाओं में तेजी से बढऩे का बड़ा कारण धूम्रपान और मद्यपान है। शहरों में पुरुषों के साथ महिलाओं में भी धूम्रपान करना और शराब पीना एक संस्कृति बन चुका है। महिलाएं इसे स्टेटस सिंबल का नाम देती हैं। वो नहीं जानतीं कि उनकी ये च्वाइस उनके शरीर से खिलवाड़ है। अध्ययनों में पाया गया है कि शराब और धूम्रपान के कारण भी स्तन कैंसर का खतरा हो सकता है, इन आदतों से दूरी बनाकर भी स्तन कैंसर के जोखिमों को कम किया जा सकता है। बिगड़ता लाइफस्टाइल, बढ़ता हुआ वजन और ओवरवेट महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर का बड़ा खतरा है।
दोबारा ब्रैस्ट कैंसर होना बड़ा खतरा, ज्यादा घातक : 50 से कम उम्र की महिलाओं में 86 प्रतिशत तक दोबारा ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल कैंब्रिज विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में ये आंकड़े सामने आए हैं जो बताते हैं कि 50 साल से कम उम्र की जिन महिलाओं में एक बार ब्रैस्ट कैंसर का इलाज हो चुका है उनमें दूसरी बार कैंसर होने का खतरा 86 प्रतिशत बढ़ जाता है। जो महिलाएं पहले ब्रैस्ट कैंसर का इलाज करा चुकी हैं वह इसके रिपीट होने की शिकार कभी भी हो सकती हैं। वहीं, दूसरी जगह पहले इसका इलाज करा चुकी 50 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर होने की आशंका 17 प्रतिशत से ज्यादा है।
क्या महिलाएं ब्रैस्ट कैंसर पर काबू पा सकती हैं : ब्रैस्ट कैंसर पर काबू पा लिया जाए ऐसा अभी संभव नहीं है। लेकिन यह जरूर है कि सावधानी बरत कर और सजग रहते हुए ब्रैस्ट कैंसर से बचा जा सकता है। इसके खतरे को कम किया जा सकता है। ब्रैस्ट कैंसर को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों और रिसर्च एजैंसियों दोनों की स्पष्ट सलाह है कि कम उम्र से ही महिलाओं, बच्चियों को ब्रैस्ट कैंसर के प्रति जागरुक किया जाए। उन्हें ब्रैस्ट कैंसर को लेकर शुरूआत से ही सावधानी बरतने की सलाह दी जाए, तो इसके खतरे कई गुना कम हो सकते हैं।
कैंसर विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि महिलाओं द्वारा स्तन की नियमित रूप से जांच कराने, अपने जोखिम कारकों की पहचान और बचाव के लिए उपाय करते रहना इस कैंसर की रोकथाम की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है। फिलहाल जिस प्रकार के वैश्विक रुझान देखे जा रहे हैं ऐसे में आशंका है कि इस कैंसर के मामले स्वास्थ्य विभाग पर बड़े दबाव का कारण बन सकते हैं। ब्रैस्ट कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए जागरुकता अभियानों की बहुत जरूरत है। ये अभियान समय-समय पर नहीं बल्कि रैगुलर बेसिस पर चलने चाहिएं। स्कूलों, कॉलेजों, ऑफिसों, पब्लिक प्लेस पर इसकी बात होनी चाहिए। समय-समय पर कैंसर की स्क्रीनिंग को बढ़ावा देने के लिए भी लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए जिससे कि समस्या का समय रहते निदान किया जा सके।-सीमा अग्रवाल