Edited By ,Updated: 22 Oct, 2022 05:10 AM
यह सही है कि हम अंग्रेजों की हुकूमत सह रहे थे और कितने ही संकल्पों और बलिदानों के बाद स्वतंत्र हुए लेकिन उतना ही बड़ा सच यह है कि आज भी ब्रिटेन एक आम भारतीय को यहां आकर रहने, नागरिकता
यह सही है कि हम अंग्रेजों की हुकूमत सह रहे थे और कितने ही संकल्पों और बलिदानों के बाद स्वतंत्र हुए लेकिन उतना ही बड़ा सच यह है कि आज भी ब्रिटेन एक आम भारतीय को यहां आकर रहने, नागरिकता प्राप्त करने के लिए लालायित करता रहता है।
यात्रा वृत्तांत : इंगलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड के संयुक्त रूप ग्रेट ब्रिटेन की यात्रा एक सैलानी के रूप में करने पर अनेक बातें मन में उमड़ती-घुमड़ती रहीं। इनमें सबसे अधिक यह था कि आखिर कुछ तो होगा जो अंग्रेज हम पर सदियों तक शासन कर पाए! इसका जवाब यह हो सकता है कि यहां शताब्दियों से शिक्षा की ऐसी व्यवस्था स्थापित होती रही थी जो विद्यार्थी हो या जिज्ञासु, उसे किसी भी विषय के मूल तत्वों को समझने और फिर जो उलझन है, समस्या है, उसका हल निकालने का सामथ्र्य प्रदान करती है।
पूरे देश में कालेजों और विश्वविद्यालयों का जाल फैला हुआ है और दुनिया का कोई भी विषय हो, यहां उसे पढऩे का प्रबंध है और यही नहीं उसमें पारंगत होना लक्ष्य है। उद्देश्य यह नहीं कि इसका गुणगान किया जाए लेकिन वास्तविकता आज भी यही है और तब भी थी जब हमारे देश के गुलामी की जंजीरोंं को काटना सीखने से पहले भारतीय यहां पढऩे आते थे। इनमें बापू गांधी, नेहरू, बोस भी थे तो वर्तमान दौर के अमत्र्य सेन भी हैं।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को देखने से लगता है कि जैसे एक पूरा शहर ही शिक्षा का केंद्र हो। यहां के भवन, क्लासरूम, पुस्तकालय इतने भव्य और विशाल हैं कि भारत में उनकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। विद्यार्थियों की लगन भी कमाल की है। सदियों से यहां शोध के लिए संसार के सभी देशों से लोग पढऩे आते रहे हैं। हमारी गाइड ने एक किस्सा बताया कि जब बिजली नहीं थी तो दोपहर 3 बजे अंधेरा होने से पहले लाइब्रेरी बंद हो जाती थी। एक बार कुछ विद्यार्थी यहां पढ़ते-पढ़ते सो गए और दरवाजे बंद होने का उन्हें पता नहीं चला। रात भर में उनके शरीर ठंड से अकड़ गए और सुबह मृत मिले। तब न बिजली थी, न हीटर और न आज की तरह एयरकंडीशन।
जहां तक यहां की शिक्षा प्रणाली है, उसके बारे में इतना कहना काफी है कि यह विद्यार्थियों को ब्रिटेन के तौर-तरीके सिखाती है और जो कुछ पढ़ा है उसका पूरा लाभ केवल इसी देश में मिल सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि जो पढऩे आएगा, वह शिक्षित होकर यहीं का होकर रहने और अंग्रेजों की प्रशासन-व्यवस्था का एक अंग बन जाने को प्राथमिकता देते हुए यहीं बस जाएगा। उसकी पढ़ाई-लिखाई की पूछ या उपयोगिता उसके अपने देश में बहुत कम होने से वह लौटने के बारे में नहीं सोचता। यहीं नौकरी, फिर शादी भी किसी अपने देश की यहां पढऩे वाली या स्थानीय लड़की से कर गृहस्थी बसा लेगा। अपने माता-पिता को, अगर यह चाहे और वह भी आना चाहें, तो बुला लेगा वरना खुद मुख्तार तो वह हो ही जाता है।
कोई भी भारतीय अपने बच्चों को यहां पढऩे भेजने से पहले यह सोच कर रखे कि काबिल बनने के बाद वे भारत लौटकर आने वाले नहीं हैं। इसका कारण यह कि उसे पढ़ाई के दौरान पार्ट टाइम जॉब करने की सुविधा होती है, स्कॉलरशिप हो तो और भी बेहतर और सबसे बड़ी बात यह कि नौकरी के अवसर बहुत मिलने लगते हैं। अपने देश में न इतनी जल्दी नौकरी मिलेगी और न ही यहां जितना वेतन और सुविधाएं।
ब्रेन ड्रेन रुक सकता है : यह सोचना काफी हद तक सही है कि यदि यहां पढऩे के बाद भारतवासी लौट आएं और नौकरी, व्यवसाय करें तो देश की अर्थव्यवस्था में कितना फर्क पड़ेगा। इसके विपरीत भारत सरकार ने अभी हाल ही में समझौता किया है जिसमें भारत से आने वालों को यहां की नागरिकता प्राप्त करने को बहुत आसान बना दिया गया है। होना तो यह चाहिए कि शिक्षा पूरी होने के बाद उसका अपने देश लौटना अनिवार्य हो ताकि भारत का जो उस पर धन लगा है, उसकी भरपाई हो सके।
यहां शिक्षित व्यक्ति को नौकरी या व्यवसाय करने के लिए सरकार को विशेष योजना बनानी होगी ताकि ब्रिटेन में नौकरी करने का उसके लिए विशेष आकर्षण न हो। यहां गोवा, गुजरात, पंजाब से आए लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं। लंदन, ब्रिस्टल, मैनचैस्टर, कार्डिफ, एडिनबरा, ग्लासगो जैसे शहरों में दूसरे देशों से आए लोग सभी जगहों पर मिल जाएंगे। भारतीय खाने के शौकीन अंग्रेज इंडियन रैस्टोरैंट में अक्सर देखने को मिल जाएंगे। हाथ से खाने की आदत नहीं तो रोटी का टुकड़ा दाल या सब्जी में डुबोकर खाते देखना मनोरंजक है, ठीक उसी तरह जैसे कांटे छुरी से खाने का अभ्यास। लंदन में मैडम तुसाद के संग्रहालय में विश्व के नामचीन लोगों के मोम से बने पुतले अपनी तरह की कारीगरी की बढिय़ा मिसाल हैं।
सच यह भी है कि अंग्रेज हमारे बौद्धिक, औद्योगिक और व्यापारिक संसाधनों का तब भी शोषण करते थे, जब यहां शासन करते थे। आज भी हमारे युवाओं को अपनी समृद्धि के लिए इस्तेमाल करते हैं। पहले यहां से कृषि और उद्योग के लिए रॉ मैटीरियल मुफ्त ले जाते थे और उनसे बने उत्पाद हमें ही बेचते थे, आज उच्च शिक्षा के नाम पर हमारे कुशाग्र और परिश्रमी युवाआें को लुभाते हैं। आश्चर्य होगा यदि जैसे तब विदेशी वस्तुओं के खिलाफ आंदोलन हुआ था, आज भी ब्रिटेन में शिक्षा प्राप्त कर वहीं न बस जाने को लेकर कोई मुहिम शुरू हो।-पूरन चंद सरीन