Edited By ,Updated: 11 Feb, 2025 05:25 AM
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जब मैंने पहली बार सूई अपने बाजू में चुभोई, तो लगा जैसे दुनिया की सारी परेशानियां खत्म हो गईं। लेकिन असली परेशानी तो तब शुरू हुई जब हर दिन यही नशा मेरी जरूरत बन गया। परिवार छूट गया, दोस्त दूर हो गए, और एक समय ऐसा आया जब मैंने खुद को भी खो दिया। चार...
जब मैंने पहली बार सूई अपने बाजू में चुभोई, तो लगा जैसे दुनिया की सारी परेशानियां खत्म हो गईं। लेकिन असली परेशानी तो तब शुरू हुई जब हर दिन यही नशा मेरी जरूरत बन गया। परिवार छूट गया, दोस्त दूर हो गए, और एक समय ऐसा आया जब मैंने खुद को भी खो दिया। चार साल पहले ड्रग्स के अंधेरे कुएं में गिरे रोहित (बदला हुआ नाम) की आवाज यह सब बताते हुए कांप रही थी। सड़कों पर भीख मांगते हुए दिन बिताने वाले इस युवा के लिए नशा जिंदगी थी और जिंदगी नशे में ही खत्म हो रही थी। एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने रोहित की दुनिया बदल दी। एक पुलिस अफसर ने उसे सड़क किनारे पड़ा देखा। उसे जेल में डालने के बजाय उन्होंने उसे एक पुनर्वास केंद्र भेजा। वहां काऊंसलिंग और महीनों की कड़ी मेहनत के बाद वह समझ पाया कि उसकी असली लड़ाई बाहर की दुनिया से नहीं, बल्कि खुद से थी। आज वही रोहित हरियाणा के नशामुक्त जीवन ‘बकेट चैलेंज’ में बढ़चढ़ कर दूसरों को नशे से दूर रहने की नसीहत दे रहा है। वह हर रोज एक बाल्टी से गंदा पानी दूर फैंकता है, अपने अतीत को पीछे छोड़ते हुए, और दूसरों को भी इस बदलाव के लिए प्रेरित कर रहा है।
यह कहानी अकेले रोहित की नहीं है। यह उन हजारों युवाओं की कहानी है जो कभी नशे की दलदल में थे लेकिन आज अपने लिए एक नई जिंदगी गढ़ रहे हैं। यह सिर्फ सरकार की लड़ाई नहीं, बल्कि हर नागरिक की लड़ाई है—हर उस व्यक्ति की, जिसने नशे से किसी अपने को खोया है, जिसने परिवार के किसी सदस्य को इसके चंगुल से छुड़ाने की कोशिश की है, और जिसने कभी उम्मीद खो दी थी लेकिन आज फिर से जीने की राह पर है। हरियाणा में इन दिनों ‘बकेट चैलेंज’ सिर्फ एक सोशल मीडिया ट्रैंड नहीं, बल्कि एक जन आंदोलन बन चुका है। लोग न केवल डिजीटल दुनिया में इससे जुड़ रहे हैं, बल्कि इसे अपने परिवारों, गांवों और समुदायों तक भी लेकर जा रहे हैं। एक बाल्टी गंदे पानी को फैंकना केवल एक प्रतीकात्मक क्रिया नहीं, बल्कि नशे के विरुद्ध विद्रोह जताने का एक नया तरीका बन चुका है।
यह आंदोलन केवल जागरूकता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे कानूनी कार्रवाई और सामुदायिक भागीदारी से भी जोड़ा गया है। पुलिस ने सैंकड़ों मामले दर्ज किए हैं, कई बड़े ड्रग माफियाओं को गिरफ्तार किया है और नशे के नैटवर्क को ध्वस्त करने के लिए नए कदम उठाए हैं। लेकिन असली लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती जब तक समाज नशे को पूरी तरह अस्वीकार्य नहीं बना देता।
हरियाणा की भौगोलिक समस्या यह है कि यह ‘गोल्डन क्रेसेंट’ से कऱीब है—वह इलाका जहां से दुनिया की सबसे ज्यादा हैरोइन और अफीम आती है। यह ज़हर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों तक पहुंचता है और फिर हजारों जिंदगियों को तबाह कर देता है। सरकारी रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2.26 करोड़ लोग नशे के जाल में फंसे हुए हैं। हरियाणा में भी यह संकट गहराता जा रहा था, लेकिन अब इस संकट को हर गांव और शहर से चुनौती दी जा रही है। सरकार अब सिर्फ छोटे-मोटे नशा बेचने वालों को नहीं, बल्कि पूरे नैटवर्क को ध्वस्त करने की रणनीति पर काम कर रही है। जनवरी 2025 में जब यह मुहिम जोर पकड़ रही थी, उसी दौरान पुलिस ने सैंकड़ों एफ.आई.आर. दर्ज कीं, दर्जनों बड़े तस्करों को गिरफ्तार किया और ड्रग सिंडिकेट के खिलाफ निर्णायक हमले किए। अब तक 47 बड़े ड्रग कारोबारियों पर मामला दर्ज हो चुका है। सरकार का लक्ष्य 2025 के अंत तक छह सौ बड़े मगरमच्छों को रंगे हाथ पकड़ सालों के लिए जेल में ठूंसना है।
लेकिन इस लड़ाई को केवल पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। यही कारण है कि इस अभियान में गांवों और स्कूलों को विशेष रूप से शामिल किया गया है। ग्रामीण इलाकों में ‘नमक लोटा अभियान’ की शुरूआत हुई, जहां लोग एक साथ मिलकर नशे के खिलाफ संकल्प ले रहे हैं। स्कूलों में ‘शेप द फ्यूचर अवॉर्ड्स’ के तहत वाद-विवाद, निबंध लेखन और नुक्कड़ नाटकों का आयोजन हो रहा है। इस आंदोलन का सबसे खास पहलू यह है कि अब यह सरकार से निकलकर जनता का आंदोलन बन गया है। बकेट चैलेंज को लेकर अक्सर इसकी तुलना 2014 में हुए आइस बकेट चैलेंज से की जाती है, जिसने ए.एल.एस. बीमारी के लिए जागरूकता फैलाई थी। लेकिन आइस बकेट चैलेंज जल्द ही फीका पड़ गया क्योंकि उसमें संस्थागत समर्थन और कानूनी प्रवर्तन का अभाव था, पर हरियाणा की पहल को कानूनी कार्रवाई और सामुदायिक प्रयासों से जोड़ा गया ताकि इसका असर लंबे समय तक बना रहे।
लड़ाई आसान नहीं है। भले ही गिरफ्तारियां हो रही हैं, ड्रग्स जब्त हो रहे हैं, तस्करों पर शिकंजा कस रहा है—लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब लोग नशे को पूरी तरह से ठुकरा देंगे। अगर हर मां-बाप यह तय कर लें कि उनका बेटा या बेटी नशे से दूर रहेगा, अगर हर गांव यह संकल्प ले कि वह नशे के सौदागरों को अपने इलाक़े में घुसने नहीं देगा, अगर हर स्कूल यह तय कर ले कि उसके छात्रों को ड्रग्स के बारे में सही जानकारी दी जाएगी—तब जाकर यह समस्या खत्म हो सकेगी।
जब तक समाज नशे के खिलाफ़ एकजुट होकर खड़ा नहीं होगा, तब तक यह लड़ाई अधूरी रहेगी। ‘बकेट चैलेंज’ सिर्फ नशे के खिलाफ एक अभियान नहीं, बल्कि एक नई सोच, एक नया संकल्प और एक नए हरियाणा की कहानी लिखने की शुरूआत है।-ओ.पी. सिंह(डी.जी.पी., हरियाणा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो)