Edited By ,Updated: 05 Sep, 2024 06:04 AM
जातीय जनगणना का परोक्ष रूप से समर्थन संघ ने कर दिया है। यहां तक कि कोटा में कोटा यानी वर्गीकरण पर भी संघ ने सर्वसम्मति की बात कही है। अब इसके बाद तो कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना का रास्ता तैयार हो गया है और मोदी सरकार जातीय जनगणना की घोषणा कभी भी...
जातीय जनगणना का परोक्ष रूप से समर्थन संघ ने कर दिया है। यहां तक कि कोटा में कोटा यानी वर्गीकरण पर भी संघ ने सर्वसम्मति की बात कही है। अब इसके बाद तो कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना का रास्ता तैयार हो गया है और मोदी सरकार जातीय जनगणना की घोषणा कभी भी कर सकती है। सवाल उठता है कि क्या यह घोषणा अगले 10-20 दिनों में हो सकती है या प्रधानमंत्री मोदी के मन में कुछ और ही मंथन चल रहा है।
कहा जा रहा है कि मोदी अगर जातीय जनगणना की घोषणा अगले 10-12 दिनों में कर देते हैं तो राहुल गांधी के हाथ से जातीय जनगणना का बहुत बड़ा मुद्दा छिन जाएगा। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस इस मुद्दे की फसल नहीं काट पाएगी। चूंकि जनगणना की पूरी प्रक्रिया पूरी होने में डेढ़ से 2 साल लगते हैं लिहाजा अगले 2 सालों तक कम से कम जातीय जनगणना और उससे जुड़े आरक्षण के मुद्दे पर मोदी सरकार को बड़ी राहत मिल जाएगी। लेकिन क्या यह इतना आसान है।
उधर राहुल गांधी इसे समझ रहे हैं इसलिए कह रहे हैं कि जातीय जनगणना का मतलब एस.सी., एस.टी. के साथ ओ.बी.सी. का नया कॉलम जोडऩा भर नहीं है। कांग्रेस तो सभी जातियों, उपजातियों की संख्या के साथ उनकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति का ब्यौरा भी चाहती है। ब्यौरा इसलिए चाहती है कि उसके आधार पर नए सिरे से आरक्षण देने की व्यवस्था की जाए, नए सिरे से योजनाएं बनाई जा सकें और नए सिरे से पैसों का वितरण किया जा सके। इतने सारे आंकड़े आएंगे तो जाहिर है कि जातियों के नए सिरे से समीकरण बनेंगे। सियासी प्रतिनिधित्व बढ़ेगा या घटेगा।
आरक्षण की मौजूदा 50 फीसदी की सीमा भी तोडऩी पड़ेगी। दिलचस्प बात है कि इसका फायदा तो विरोधी दल उठा ले जाएंगे लेकिन अगर कुछ ऊंच-नीच हुई तो सत्तासीन दल या गठबंधन को अंजाम भुगतना पड़ेगा क्योंकि फैसले तो उसे ही लेने होंगे। ऐसे में गठबंधन दलों की सामाजिक न्याय की राजनीति के भी पूरी तरह से छितराने का खतरा पैदा हो जाएगा। कुल मिलाकर जातीय जनगणना के नए आंकड़े कई मायनों में विस्फोटक साबित हो सकते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि जातीय जनगणना की घोषणा करना और आंकड़ों को जारी करने में अंतर को समझना जरूरी है। ऐसा फार्मूला चिराग पासवान ने भी सामने रखा है। उनका कहना है कि जातीय जनगणना सरकार करवाए लेकिन उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं करे।
अलबत्ता उन आंकड़ों का प्रयोग नए सिरे से दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के लिए योजनाएं बनाने में करे। यहां जानकार रोहिणी कमीशन रिपोर्ट का हवाला देते हैं। उनका कहना है कि पिछड़ी जातियों में कोटा में कोटा की संभावनाएं तलाशने के लिए बिठाए गए कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है लेकिन सरकार न तो उसे सार्वजनिक कर रही है और न ही लागू कर रही है। अलबत्ता विश्वकर्मा योजना लागू करने के लिए इस कमीशन के आंकड़ों का इस्तेमाल जरूर किया गया। अब यह काम जब रोहिणी कमीशन को लेकर हो सकता है तो जातीय जनगणना को लेकर क्यों नहीं हो सकता।
रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट कहती है कि ओ.बी.सी. में कुल 2600 जातियां आती हैं। इसमें से 900 के लगभग जातियों को ओ.बी.सी. आरक्षण का शून्य फीसदी लाभ भी नहीं मिला। करीब 950 जातियों को सिर्फ अढ़ाई फीसदी ही लाभ मिला। बाकी का 97.5 फीसदी लाभ ऊपर की करीब 600 जातियों उठा ले गई। तय है कि जातीय जनगणना में भी दलितों और आदिवासियों को लेकर ऐसे ही तथ्य सामने आने वाले हैं। अब रोहिणी कमीशन ने ओ.बी.सी. की 4 श्रेणियां बनाने की सिफारिश की है। मोदी सरकार कोटा में कोटा कर जाट, यादव, माली जैसी प्रभावशाली जातियों को नाराज नहीं करना चाहती। अब वही सरकार किस तरह दलितों और आदिवासियों में वर्गीकरण के लिए सहमत हो जाएगी। जाहिर है नहीं होगी। तो क्या साफ है कि आंकड़े भी सामने नहीं आएंगे।
कुछ जानकारों का कहना है कि निचली जातियां अभी बिखरी हुई हैं। उनके नेता भी नहीं मिलते हैं लेकिन नए समीकरण बनेंगे तो जातियों के नए नए नेता पैदा हो जाएंगे जो भाजपा जैसी राष्ट्रीय दल को तंग ही करेंगे। वैसे भी भाजपा चाहती है कि (संघ भी यही चाहता है) गैर-मुस्लिम कुल मिलाकर हिंदू की तरह वोट दे। अभी देश के 80 फीसदी हिंदुओं में से करीब 50 फीसदी भाजपा को वोट देता है। भाजपा और संघ इसमें विस्तार चाहते हैं। अब अगर जातीय जनगणना हो गई तो जातियां जातियों में बंटकर वोट देना शुरू कर देंगी और हिंदुत्व का सारा एजैंडा धरा का धरा रह जाएगा। जाहिर है कि भाजपा इतना बड़ा सियासी जोखिम क्यों उठाना चाहेगी लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले हुए उत्तर भारत के राज्यों के विधानसभा चुनाव बताते हैं कि कुछ जातियों की नाराजगी भाजपा को झेलनी पड़ रही है।
राजस्थान में जाट और राजपूत छिटके हैं तो ऐसा ही कुछ हाल यू.पी. में भी देखा गया है तो क्या संघ को समझ में आ गया है कि जातीय जनगणना कराने पर सहमति देकर ऐसी जातियों की घर वापसी संभव हो सकती है। खैर, अब गेंद मोदी सरकार के पाले में है। एक बात तय है कि संघ ने भाजपा आलाकमान से सलाह के बिना जातीय जनगणना पर बयान नहीं दिया होगा। बात भी हुई होगी और शब्दों का चयन भी चर्चा के बाद किया गया होगा। संघ के प्रचार प्रमुख ने अपने मुंह से कहीं भी जातीय जनगणना का नाम नहीं लिया है। उल्टे चुनावी लाभ से नहीं जोडऩे की बात कह कर कांग्रेस को श्रेय नहीं लेने देने का रास्ता तैयार करने की कोशिश की है।-विजय विद्रोही