Edited By ,Updated: 03 Jan, 2025 05:45 AM
सार्वजनिक जीवन में अपने 2 दशकों में, जिसमें संसद में 3 कार्यकाल शामिल हैं, मैंने कई विषयों पर स्तंभ लिखे हैं, लेकिन भारत में चर्च पर कभी नहीं लिखा। यह पहली बार है। इसे लिखा जाना चाहिए था, नहीं तो इस विषय पर और अधिक चुप्पी मुझे दोषी ठहराएगी। एक बड़े...
कैथोलिक नेता एकजुट हों
‘‘बुराई की जीत के लिए केवल अच्छे लोगों की निष्क्रियता की आवश्यकता है’’ -एलैक्सी नवलनी, रूसी विपक्षी नेता।
सार्वजनिक जीवन में अपने 2 दशकों में, जिसमें संसद में 3 कार्यकाल शामिल हैं, मैंने कई विषयों पर स्तंभ लिखे हैं, लेकिन भारत में चर्च पर कभी नहीं लिखा। यह पहली बार है। इसे लिखा जाना चाहिए था, नहीं तो इस विषय पर और अधिक चुप्पी मुझे दोषी ठहराएगी। एक बड़े धार्मिक समुदाय के पूर्व प्रांतीय (प्रांत के प्रमुख) ने इस स्तंभकार से कहा, ‘‘बिशपों को सभी आध्यात्मिक मुद्दों पर चर्च का नेतृत्व करना जारी रखना चाहिए। लेकिन क्या यह समय है कि आम कैथोलिक नेता एकजुट हों और सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में चर्च के लिए दिशा निर्धारित करें? अब समय आ गया है कि इस पर बहस की जाए। अब समय आ गया है कि जमीनी स्तर के ईसाई (जिन्हें चर्च आम लोग कहते हैं) भारत में कैथोलिक चर्च के प्रमुख निर्णय लेने वाले निकाय में शामिल कुछ 100 बिशपों से सीधे सवाल पूछना शुरू करें।’’
आमतौर पर अनुशासन के सख्त नियमों से बंधे रहने वाले और भी पादरी और ननों ने अपनी बात रखनी शुरू कर दी है। एक नन, जो एक प्रमुख शिक्षाविद् हैं, ने सीधे तौर पर कहा,‘‘यह कि बिशप के निकाय ने प्रधानमंत्री को क्रिसमस के दौरान खुद के लिए एक घटिया पी.आर. सत्र करने के लिए एक मंच दिया, घृणित है। त्यौहारों की खुशियां फैलाना हमेशा स्वागत योग्य है। लेकिन अब, ये कठिन सवाल हैं जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछे जाने चाहिएं। कई क्रिसमस बीत चुके हैं, अब जवाब मांगे जाने चाहिएं।
1.) आपने क्रिसमस दिवस को ‘सुशासन दिवस’ में बदलने का प्रयास क्यों किया?
2.) आप ईसाई समुदाय द्वारा संचालित संस्थानों को विशेष रूप से लक्षित करने के लिए विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.) का हथियार क्यों बना रहे हैं? द्बद्बद्ब) आपने मणिपुर के लोगों को पूरी तरह से नजरअंदाज क्यों किया है?
3.) आप संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले धर्मांतरण विरोधी कानूनों को प्रोत्साहित और पारित क्यों कर रहे हैं? अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, उत्तराखंड, राजस्थान।
4.) आप वक्फ विधेयक को आगे क्यों बढ़ा रहे हैं और अल्पसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक क्यों खेल रहे हैं, खासकर केरल में?
5.) आप कभी भी नफरत भरे भाषणों और असभ्य सांप्रदायिक गालियों की निंदा करते हुए एक शब्द क्यों नहीं कहते?
6.) अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित संस्थानों पर हमले क्यों बढ़ रहे हैं?
7.) ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं 2014 में 127 से बढ़कर इस साल 745 क्यों हो गई हैं?
8.) भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2014 के बाद से 2 बार अपनी संयुक्त राष्ट्र मान्यता क्यों खो दी?
9) क्या आपको फादर स्टेन स्वामी याद हैं? सिपर? स्ट्रॉ? मौत इस वर्ष, 3 दिसंबर को बिशप निकाय द्वारा 20 ईसाई सांसदों को रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया गया था। इसे और अधिक सही ढंग से कहें तो, ये ईसाई सांसद नहीं थे, बल्कि चुने हुए सांसद थे जो ईसाई हैं।
कई सांसदों ने जोर देकर कहा कि बैठक को साथ में रोटी तोडऩे से आगे बढऩा चाहिए। इसके लिए एक एजैंडा होना चाहिए। इसके बाद बिशप निकाय ने सांसदों को लिखित रूप में 9-सूत्रीय एजैंडा प्रसारित किया। जब 90 मिनट की बैठक में चर्चा की गई खबरों की खबर मीडिया में आई, तो बिशप निकाय ने नुकसान को नियंत्रित करने के लिए एक सार्वजनिक बयान जारी किया जिसमें किसी भी बैठक के होने से इंकार किया गया। बहुत चालाक! सच कहा जाए तो बैठक हुई थी। एक एजैंडा प्रसारित किया गया था। सांसदों द्वारा उठाए गए कुछ ङ्क्षबदुओं में शामिल थे-
* फोटो-ऑप्स को रोकने की आवश्यकता है। ईसाई नेतृत्व को उन लोगों को बुलाने के लिए एक स्टैंड लेना चाहिए जो संविधान की रक्षा नहीं कर रहे हैं।
* वक्फ बिल पर, सैद्धांतिक रूप से, मुस्लिम समुदाय का समर्थन करें, यह स्वीकार करते हुए कि बिल में कुछ खंड हो सकते हैं जो एक या 2 राज्यों में विवादास्पद हैं।
* ईसाई संगठनों को निशाना बनाया जा रहा है और एफ.सी.आर.ए. लाइसैंस रद्द किए जा रहे हैं।
* आरक्षण, शैक्षणिक संस्थानों में हस्तक्षेप और पूजा स्थलों तथा कर्मियों पर बार-बार हमले के मुद्दे उठाने चाहिएं।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध जेसुइट मानवाधिकार और शांति कार्यकत्र्ता और लेखक फादर सैड्रिक प्रकाश ने इस स्तंभकार से विशेष रूप से बात करते हुए कहा, ‘‘भारत में चर्च नेतृत्व चूक गया है। उनके दिल और कान देश में पीड़ित लाखों लोगों विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की चीखें नहीं सुन रहे हैं। भले ही वे इन जमीनी हकीकतों से वाकिफ हों, लेकिन वे सत्ताधारी सरकार के मुखर और प्रत्यक्ष रुख अपनाने से पूरी तरह से डरते हैं। कहीं सत्ताधारी लोग अलमारी में छिपे रहस्यों को सामने न ला दें। यह सब आज के भारत में प्रामाणिक ईसाई शिष्यत्व के लिए अच्छा संकेत नहीं है।’’-डेरेक ओ’ब्रायन(संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)