Edited By ,Updated: 19 Sep, 2024 04:42 AM
राष्ट्रीय जनगणना में हो रही अनावश्यक देरी पर लंबी चुप्पी के बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बयान दिया है कि जनगणना की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी। उन्होंने न तो देरी के बारे में बताने की जहमत उठाई है और न ही कोई निश्चित समय-सीमा बताई है जिसके...
राष्ट्रीय जनगणना में हो रही अनावश्यक देरी पर लंबी चुप्पी के बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बयान दिया है कि जनगणना की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी। उन्होंने न तो देरी के बारे में बताने की जहमत उठाई है और न ही कोई निश्चित समय-सीमा बताई है जिसके दौरान यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
विशेष रूप से, जुलाई में पेश किए गए बजट में जनगणना कराने के लिए बहुत कम प्रावधान था। 2024-25 के बजट में जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर) की तैयारी के लिए 1,309 करोड़ रुपए का मामूली परिव्यय प्रदान किया गया, जबकि 2019 में कैबिनेट द्वारा प्रस्तावित 2021 की जनगणना के लिए 12,700 करोड़ रुपए के व्यय को मंजूरी दी गई थी। इस बार कम प्रावधान के कारण 2020 में कोविड महामारी के बाद से रुकी हुई इस प्रक्रिया के फिर से शुरू होने की संभावना बहुत कम रह गई है। वास्तविक गणना शुरू होने से पहले बहुत सारे काम किए जाने की जरूरत है, लेकिन इस दिशा में कोई प्रयास किए जाने के संकेत नहीं हैं। नवीनतम आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण, सभी सरकारी नीतियां और कल्याणकारी योजनाएं 14 साल पुराने आंकड़ों पर आधारित हैं।
आंकड़ों की अनुपलब्धता ने कई मिथकों को जन्म दिया है और विभिन्न समुदायों की जनसंख्या और विकास दर के बारे में विकृत कथा को जन्म दिया है, जो एक विशेष पार्टी के हित में है। 2021 में दशकीय जनगणना के स्थगन के बाद से, सरकार बिना कोई वैध कारण बताए जनगणना को स्थगित कर रही है, जबकि महामारी बहुत पहले खत्म हो चुकी है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 1881 में शुरू की गई इस प्रथा के बाद से हर 10 साल में बिना किसी रूकावट या देरी के जनगणना की जाती रही है। स्वतंत्रता के बाद पहली जनगणना भी 1951 में तय कार्यक्रम के अनुसार की गई थी।
किसी देश के विकास, नियोजन और नीति-निर्माण के लिए जनगणना बहुत महत्वपूर्ण है। यह जनसंख्या की सटीक गणना प्रदान करती है, जिससे सरकारों को जनसांख्यिकीय रूझान, आयु वितरण और जनसंख्या वृद्धि को समझने में मदद मिलती है। बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक सेवाओं के लिए धन जैसे संसाधनों का आबंटन जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर करता है। जनगणना के आंकड़े आर्थिक विकास के क्षेत्रों की पहचान करने, व्यावसायिक निवेश निर्णय तैयार करने और श्रम बाजार की गतिशीलता को समझने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह गरीबी और अभाव वाले क्षेत्रों की पहचान करने, स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच जैसी सामाजिक कल्याण गतिविधियों को डिजाइन करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, अगर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की कवरेज को संशोधित करने के लिए अद्यतन जनगणना के आंकड़े उपलब्ध होते, तो सबसिडी वाले खाद्य राशन के लाभाॢथयों की संख्या में 100 मिलियन से अधिक की वृद्धि होने का अनुमान है।
आवास और शहरी विकास, बिजली और पानी जैसी उपयोगिता सेवाओं और परिवहन प्रणालियों को विकसित करने के लिए डाटा मार्गदर्शन करता है। इस प्रकार यह सूचित निर्णय लेने में मदद करता है। जनगणना में देरी और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन में बार-बार स्थगन के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि वर्तमान निर्वाचन क्षेत्र 1971 में लिए गए 50 साल से अधिक पुराने आंकड़ों पर आधारित हैं। एक राय यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी जानबूझकर जनगणना में देरी कर रही है क्योंकि वह 2029 के लोकसभा चुनावों की प्रत्याशा में ‘परिसीमन’ अभ्यास को तेज करना चाहती है। संविधान के 84वें संशोधन में कहा गया है कि अगला परिसीमन अभ्यास 2026 के बाद पहली जनगणना पर आधारित होना चाहिए।
यदि अगली जनगणना उससे पहले होती है, तो परिसीमन को अगली जनगणना के बाद, यानी 2030 के दशक में किसी समय तक इंतजार करना होगा। इसलिए, यदि भाजपा 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले परिसीमन चाहती है, तो उसे 2026 या उससे भी बाद तक जनगणना में देरी जारी रखनी चाहिए। परिसीमन से निर्वाचन क्षेत्रों के आकार और स्वरूप में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। जनगणना में देरी के पीछे चाहे जो भी कारण हों, लेकिन जनसंख्या के बारे में अद्यतन आंकड़ों की कमी के कारण प्रवासन, साक्षरता, प्रजनन क्षमता, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक कल्याण योजनाओं के अलावा अन्य अध्ययन अविश्वसनीय हो रहे हैं। सरकार को जनगणना कराने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिएं।-विपिन पब्बी