नेपाल की प्रचंड राजनीति में सत्ता परिवर्तन

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2024 05:46 AM

change of power in nepal s fierce politics

नेपाल में नए गठबंधन का लक्ष्य देश के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार देना और लंबे समय से चली आ रही अस्थिरता को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधार पेश करना है। शुक्रवार को, प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने विश्वास मत खो दिया क्योंकि पूर्व...

नेपाल में नए गठबंधन का लक्ष्य देश के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार देना और लंबे समय से चली आ रही अस्थिरता को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधार पेश करना है। शुक्रवार को, प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने विश्वास मत खो दिया क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. ओली की यू.एम.एल. ने वामपंथी गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था। इसके साथ ही प्रचंड की सरकार गिर गई और उन्होंने पी.एम. पद से इस्तीफा दे दिया। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस (एन.सी.) और ओली की यू.एम.एल. (सबसे बड़ी और दूसरी सबसे बड़ी पार्टियां) के बीच पिछले सोमवार को आधी रात को 7-सूत्रीय समझौता हुआ, जो दिसंबर 2022 के बाद से चौथी सरकार बनाएगा, जो तीसरी सबसे बड़ी पार्टी सी.पी.एन. माओवादियों की किंग-मेकर भूमिका को समाप्त करेगी। 

एक एन.सी. नेता ने मुझे बताया कि सौदे से एक दिन पहले भूटानी शरणार्थी घोटाले से जुड़े बेचैन झा की गिरफ्तारी, जिसके निशान एन.सी. और यू.एम.एल. के शीर्ष नेताओं तक पहुंचते हैं, ने इस सौदे को गति दी। गृह मंत्री रबी लामिछाने, जिन्हें एन.सी. ने पोखरा सहकारी धोखाधड़ी मामले में संसद में निशाना बनाया था और यू.एम.एल. ने उनका बचाव किया था, ने इस सौदे को भ्रष्टाचार के मामलों से बचने के लिए ओली और देउबा की कोशिश कहा। काठमांडू के मेयर बालन शाह ने गिरिबंधु चाय बागान भ्रष्टाचार मामले के बारे में व्यंग्यात्मक टिप्पणी की। 

7-सूत्री सौदा अनिवार्य रूप से संसद के शेष 40 महीनों के दौरान सत्ता-सांझाकरण के बारे में है, जिसमें देउबा ने ओली को पहला प्रधानमंत्री देने की पेशकश की है क्योंकि वह 2027 के चुनावों से पहले प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। वे यू.एम.एल. के साथ सांझा किए जाने वाले मंत्रालयों की संख्या पर सहमत हो गए हैं, जबकि एन.सी. को वित्त और गृह मंत्रालय दिया जाएगा। 

एन.सी. और यू.एम.एल. अलग-अलग विचारधाराओं वाले कट्टर दुश्मन हैं। उनके दोनों नेताओं को व्यापक अनुभव है और वे जेल में भी रहे हैं। देउबा 5 बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं, जबकि ओली 2 बार नेपाल का नेतृत्व कर चुके हैं। देउबा को भारत का चहेता माना जाता है और पश्चिम उन्हें पसंद करता है, जबकि ओली चीन के पसंदीदा हैं, हालांकि वे कट्टर कम्युनिस्ट नहीं हैं, बल्कि दिल से लोकतांत्रिक हैं। 2008 में अंतरिम संविधान के तहत पहले बहुदलीय चुनावों के बाद से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। 2015 के संघीय, लोकतांत्रिक गणतंत्र संविधान के बाद भी 16 वर्षों में 16 प्रधानमंत्रियों ने कुर्सी का खेल खेला है। 

चुनावी प्रणाली एक त्रिशंकु संसद बनाती है। इस बीमारी को दूर करना राष्ट्रीय सर्वसम्मति सरकार का उद्देश्य है, जिसके लिए 275 सदस्यों वाले सदन में 184 सीटों के 2 तिहाई बहुमत से संविधान में बदलाव करना है। 10 साल तक चले जनयुद्ध का नेतृत्व करने वाले और परिवर्तनकारी संवैधानिक सुधारों को पेश करने में मदद करने वाले प्रचंड कोई नौसिखिए नहीं हैं। उन्हें सत्ता से प्यार है। अपनी पार्टी के घटते चुनावी आधार के बावजूद, वे सुर्खियों में बने रहने में कामयाब रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि चूंकि सरकार गठन संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के तहत था, इसलिए राष्ट्रपति रामचंद्र पौडयाल अनुच्छेद 76 (3) का इस्तेमाल करके सबसे बड़ी पार्टी के नेता देउबा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे, जिससे ओली को प्रधानमंत्री पद से वंचित होना पड़ेगा। 

प्रचंड और एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल, जो पहले यू.एम.एल. में थे, दोनों ओली से नफरत करते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे कि वह फिर से प्रधानमंत्री न बनें। वरिष्ठ एन.सी. नेता शशांक कोईराला ने कहा है कि एन.सी.-यू.एम.एल. गठबंधन विपक्षी ताकतों को कमजोर करेगा। एक अन्य एन.सी. शीर्ष नेता शेखर कोईराला ने कहा कि सरकार गठन कानूनी तौर पर 76 (3) की ओर जा सकता है न कि 76 (2) की ओर। यह आधी रात के सौदे को बर्बाद कर देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि देउबा पहले प्रधानमंत्री होंगे और प्रचंड उन्हें शेष पूरी अवधि के लिए प्रधानमंत्री पद देने के लिए तैयार हैं। यह एन.सी, सी.पी.एन. (एम) और छोटी पार्टियों के लोकतांत्रिक गठबंधन को बहाल करेगा, जिन्होंने मार्च तक एक साल तक शासन किया था। 

चूंकि पौडयाल सी.पी.एन.(एम) द्वारा समर्थित एन.सी. द्वारा नियुक्त व्यक्ति हैं, इसलिए उनसे 76(2) को दरकिनार करते हुए 76(3) का पालन करने के लिए आसानी से कहा जा सकता है। एन.सी. में कई लोग इस सौदे से नाखुश हैं। न तो चीन और न ही भारत ने प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार के आसन्न पतन पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है, हालांकि काठमांडू बाजार में खबर है कि भारत चीन से प्रेरित वामपंथी गठबंधन सरकार से खुश नहीं था। वामपंथी गठबंधन के अल्पकालिक अस्तित्व से चीनी निराश होंगे और इसके लिए भारत को दोषी ठहराएंगे।-अशोक  के. मेहता

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