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म्यांमार की अंदरूनी लड़ाई में चीन प्रमुख भूमिका निभा रहा

Edited By ,Updated: 05 Dec, 2023 05:50 AM

china is playing a major role in myanmar s internal war

चीन ने भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में इस कदर हस्तक्षेप किया है और वहां के अंदरूनी मामलों में इतनी दखलंदाजी कर रहा है कि म्यांमार अब टूटने की कगार पर पहुंच गया है। 3 वर्ष पहले चीन ने म्यांमार में अपनी कुटिल चाल के तहत प्रवेश किया था। उस समय म्यांमार...

चीन ने भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में इस कदर हस्तक्षेप किया है और वहां के अंदरूनी मामलों में इतनी दखलंदाजी कर रहा है कि म्यांमार अब टूटने की कगार पर पहुंच गया है। 3 वर्ष पहले चीन ने म्यांमार में अपनी कुटिल चाल के तहत प्रवेश किया था। उस समय म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार थी जिसे लोगों ने अपने मतों के आधार पर चुना था लेकिन चीन ने वहां पर सैन्य तख्ता पलट करवा दिया जिसके बाद म्यांमार में चुनी हुई सरकार के अधिकतर सदस्य जेल में डाल दिए गए जिसमें नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की भी शामिल हैं। 

इसके बाद चीन ने वहां सेना का साथ दिया और उस समय वहां हुए जन विद्रोहों को कुचलने में सेना की मदद की लेकिन म्यांमार की भ्रष्ट सैन्य तानाशाही को सहने के लिए वहां की जनता तैयार नहीं थी। लोगों ने सैन्य सत्ता के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा, इसके बाद चीन की शह पर म्यांमार की सेना ने विद्रोहियों पर दमनकारी चक्र चलाना शुरू किया जिसके बाद शहरों से चलने वाला आंदोलन धीमा जरूर पड़ा लेकिन यह विद्रोह अब अलग-अलग जनजातीय समूहों तक जा पहुंचा। इस समय म्यांमार में विद्रोह कई जनजातीय समुदायों में शुरू हो गया है और यह विद्रोह सैन्य सत्ता के खिलाफ है क्योंकि जब भी म्यांमार में सैन्य सत्ता अस्तित्व में आई उसने हमेशा आदिवासी जातियों का दमन किया जिसके चलते अब अलग-अलग जातीय समुदाय सैन्य सत्ता को पसंद नहीं करते हैं। 

यह विद्रोह इस समय उत्तर पूर्वी म्यांमार के शान प्रांत में, दक्षिण में रखाइन और इरावदी प्रांत में, सुदूर उत्तर में काचिन प्रांत, चिन और साएगांग प्रांत में जारी है। यहां पर रहने वाले जातीय समुदायों ने म्यांमार की सेना की नाक में दम कर दिया है। इस समय जनजातीय सेना और म्यांमार की सेना के बीच जो संघर्ष चल रहा है उसमें सेना के हाथ से लगभग आधा म्यांमार निकल चुका है। 

म्यांमार की अंदरूनी लड़ाई में चीन प्रमुख भूमिका निभा रहा है, इसके पीछे के कारणों में म्यांमार के उत्तरी छोर पर खनिजों पर अपना कब्जा स्थापित करना है, इसके साथ अपने हथियारों को सेना या जनजातीय गुटों को बेचकर पैसे कमाना और तीसरी बात चीन भारत के सभी पड़ोसियों को इस समय घेरने में लगा हुआ है। इस समय म्यांमार में जनजातीय गुटों ने सेना की कई पोस्टों पर कब्जा जमा लिया है। इस संघर्ष में हजारों सैनिक मारे गए हैं, सैंकड़ों ने इन गुटों के सामने समर्पण कर दिया है और कई इलाके सैन्य सत्ता के हाथों से बाहर जा चुके हैं। इस समय म्यांमार के 3 प्रमुख जातीय समूहों ने अपनी एक संगठित सेना बना ली है जिसकी वजह से ये लोग अब म्यांमार की सेना पर हावी हो चुके हैं। ऐसे में चीन ने अपनी चाल बदल ली है, पहले चीन सैन्य शासन के साथ था लेकिन जब उसने देखा कि सेना के पैर उखड़ रहे हैं तब उसने अपने हथियारों को जनजातीय गुटों को बेचना शुरू कर दिया। 

चीन को ऐसा आभास हो चुका है कि म्यांमार के लोग सेना को नहीं चाहते और ऐसे में ये लोग संगठन बनाकर सेना के खिलाफ मोर्चा संभाल रहे हैं। अब चीन को लगने लगा है कि ये लोग सेना को उखाड़ फैंकने वाले हैं इसलिए अब फायदा इनके साथ खड़े होने में है। पिछले एक महीने में जनजातीय गुटों ने म्यांमार की सेना के खिलाफ 2 बड़े अभियान चलाए जिसमें अक्तूबर माह में शान प्रांत में एक बड़ा अभियान शुरू किया जिसे थ्री ब्रदरहुड अलायंस के नेतृत्व में चलाया गया, जिसके बाद वहां से सेना के पैर उखडऩे लगे। इसके साथ ही बंगलादेश से लगी सीमा रखाइन प्रांत में भी एक बड़ा अभियान म्यांमार की सेना के खिलाफ चलाया गया। रणनीतिक जानकारों का कहना है कि इस समय म्यांमार का गृहयुद्ध चरम पर है और म्यांमार के 2 या 2 से ज्यादा टुकड़े हो सकते हैं। बहुत संभव है कि म्यांमार की सत्ता थ्री ब्रदरहुड अलायंस के हाथों में चली जाए। इसके अलावा कोई भी जनजातीय समूह सेना को पसंद नहीं करता क्योंकि जब भी सेना सत्ता में आई उसने इन जनजातीय समूहों का बहुत क्रूर दमन किया है। 

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