Edited By ,Updated: 05 Jan, 2025 04:46 AM
रूस और कनाडा के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश चीन 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा सत्ता संभालने के बाद से ही अपने पड़ोसी देशों की भूमि पर अवैध कब्जे और झगड़ों को लेकर विवादों में चला आ रहा है।
रूस और कनाडा के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश चीन 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा सत्ता संभालने के बाद से ही अपने पड़ोसी देशों की भूमि पर अवैध कब्जे और झगड़ों को लेकर विवादों में चला आ रहा है। मकाऊ, ताईवान, पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, दक्षिणी मंगोलिया और हांगकांग जैसे 6 देशों की लगभग 41,13,709 वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन ने कब्जा जमा रखा है। यह चीन के कुल क्षेत्रफल का लगभग 43 प्रतिशत है। चीन की अंतर्राष्ट्रीय सीमा 14 देशों से लगती है। इनमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान,भूटान, रूस, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान, वियतनाम, किॢगस्तान, लाओस, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल तथा उत्तर कोरिया शामिल हैं।
भारत के साथ चीन का अनेक मुद्दों को लेकर विवाद है। इनमें एक विवाद लद्दाख की सीमा से लगते ‘होतान’ क्षेत्र को लेकर भी है। लद्दाख में ही दोनों देशों में साढ़े चार वर्ष पहले टकराव की स्थिति आ गई थी तथा दोनों देशों की सेनाएं आपस में उलझ गई थीं। हालांकि रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भेंट के बाद यह विवाद सुलझा लिया गया था और दोनों देशों ने अपनी सेनाएं पीछे हटा ली थीं, परंतु 2020 में हुए उस टकराव के बाद सुधरे हालात अब फिर चीन की बदनीयती का शिकार होने की राह पर हैं। चीन ने ‘शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र’ के लद्दाख की सीमा से लगते ‘होतान’ प्रांत में ‘हेआन’ और ‘हेकांग’ नाम से 2 काऊंटियां स्थापित करने की घोषणा की है।
भारत ने इस मुद्दे पर चीन से कड़ा विरोध दर्ज कराया है क्योंकि इनके कुछ हिस्से लद्दाख में आते हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा है कि ‘‘भारत ने चीन की इस घोषणा पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। न तो नई काऊंटियों के निर्माण से भारत की सम्प्रभुता में कोई अंतर आएगा और न ही इससे चीन के अवैध और जबरदस्ती किए हुए कब्जे को वैधता ही मिलेगी। भारत ने इस क्षेत्र में चीन के कब्जे को कभी भी स्वीकार नहीं किया है।’’
यही नहीं, भारत ने चीन द्वारा तिब्बत में ‘यारलुंग त्संगपो नदी’ (भारत में ब्रह्मपुत्र नदी) पर जल विद्युत परियोजना के लिए बड़े बांध के निर्माण और भारत पर पडऩे वाले इसके दुष्प्रभाव पर भी अपनी ङ्क्षचता जताई है जिससे अरुणाचल प्रदेश और असम को नुकसान पहुंचेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के अनुसार :
‘‘हम निगरानी जारी रखेंगे और अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे। नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में जल का उपयोग करने का अधिकार रखने वाले देश के रूप में हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यम से चीनी पक्ष के सामने उसके क्षेत्र में नदियों पर बड़ी परियोजनाओं के बारे में अपने विचार और ङ्क्षचताएं लगातार व्यक्त की हैं।’’
उल्लेखनीय है कि चीन ने संबंधों में कड़वाहट लाने वाले ये कदम तब उठाए हैं जब साढ़े चार वर्ष से भी अधिक समय से चले आ रहे सीमा गतिरोध को खत्म करने और विश्वास बहाली के लिए 18 दिसम्बर, 2024 को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तथा चीन के विदेश मंत्री ‘वांग यी’ के बीच वार्ता फिर से शुरू हुई है। इतिहास गवाह है कि अपने अस्तित्व में आने से लेकर अब तक चीन और भारत के बीच जब-जब समझौते हुए हैं, चीन ने भारत की पीठ में छुरा ही घोंपा है। फरवरी, 2022 में भारत के तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री वी. मुरलीधरण ने लोकसभा में कहा था कि चीन ने लद्दाख में हमारी 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर रखा है। इसलिए अब अगर चीन एक बार फिर एक ओर भारत के साथ समझौता वार्ता और दूसरी ओर भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हो रहा है तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं। आवश्यकता हमारी सरकार के अधिक चौकस होने की है।—विजय कुमार