अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की घोषणा का दाव

Edited By ,Updated: 17 Sep, 2024 05:08 AM

claim of arvind kejriwal s resignation announcement

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जमानत पर बाहर आने के बाद अचानक इस्तीफा देने की घोषणा करेंगे इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। आखिर जो नेता जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री पद छोडऩे को तैयार नहीं  वह जमानत के बाद ऐसा करेगा इसकी कल्पना की भी कैसे...

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जमानत पर बाहर आने के बाद अचानक इस्तीफा देने की घोषणा करेंगे इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। आखिर जो नेता जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री पद छोडऩे को तैयार नहीं  वह जमानत के बाद ऐसा करेगा इसकी कल्पना की भी कैसे जा सकती है। 

अरविंद केजरीवाल की राजनीति कभी ऐसी धारा और धुरी पर नहीं चलती कि आप उनके अगले कदम का अनुमान लगा सकें। उन्होंने घोषणा कर दी लेकिन इस्तीफा दिया नहीं। इसके लिए भी उन्होंने 48 घंटे का समय दे दिया। यानी देश 48 घंटे में कल्पना करता रहे कि वह क्या करेंगे, इस्तीफा देते हुए मुख्यमंत्री के रूप में किसके नाम की घोषणा करेंगे और सबकी दृष्टि उनकी ओर लगी रहे। अगर जेल से वो इस्तीफा दे देते तो इस तरह का माहौल निर्मित कर देना संभव नहीं होता। अगले वर्ष के आरंभ में दिल्ली विधानसभा का चुनाव है। निश्चित रूप से उनकी राजनीति उस पर केंद्रित होगी और लगातार वह इसी तरह चर्चा में बने रहने के लिए कुछ अकल्पनीय करते रहेंगे। 

अन्ना अभियान से लेकर अभी तक उनकी राजनीति, तौर-तरीकों, चरित्र आदि पर नजर रखने वालों के लिए इसे पचा पाना कठिन हो रहा था कि जमानत पर आने के बाद अरविंद केजरीवाल इस तरह सामान्य गतिविधियों तक सीमित हैं। वह आगे क्या करेंगे इसके बारे में भी कोई टिप्पणी करना जोखिम भरा होगा। प्रश्न यह है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या वाकई परिस्थितियां ऐसी हैं कि वह जिस दिशा में घटना को बनाए रखना चाहते हैं वही बने और निश्चित तौर पर वही बनी रहेगी? 

पहले प्रश्न का सरल सीधा उत्तर यही है कि जमानत मिलने के बावजूद न वे कैबिनेट की बैठक बुला सकते थे, न सचिवालय जा सकते थे, न मुख्यमंत्री के रूप में किसी फाइल पर हस्ताक्षर कर सकते थे। यानी जमानत पर रिहा होना उनके लिए पूर्ण राहत का विषय नहीं था। अगर चुनाव के बीच लोगों को प्रलोभन या लुभाने के लिए घोषणाएं करनी हैं तो उसके लिए भी मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका निभानी होगी। हाथ पूरी तरह बंधे होने पर वह कुछ नहीं कर सकते थे। 
अगर वह वाकई इस्तीफा देते हैं तो इसका एक प्रमुख कारण यही माना जाएगा कि इसके अलावा उनके पास अपनी पार्टी की चुनावी राजनीति की दृष्टि से कोई विकल्प नहीं था। भले वे पद पर न रहें, मुख्यमंत्री कोई भी हो असली नीति निर्धारक वही होंगे। केवल फाइल पर उनके हस्ताक्षर नहीं होंगे किंतु निर्णय और शब्दावली उन्हीं की होगी। 

न्यायालय ने मुख्यमंत्री के रूप में उनके सचिवालय जाने पर रोक लगाई है। क्या वह मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे तब भी सचिवालय जाने या मुख्यमंत्री कार्यालय जाने पर उनके लिए रोक होगी? इस्तीफा देने को इस तरह पेश कर रहे हैं जिससे जनता की पूरी सहानुभूति उनके साथ हो और चुनाव तक उनकी यही कोशिश जारी रहेगी। उनको अपने अनुरूप जेल से निकल कर राजनीति करने में कोई समस्या भी नहीं थी। अस्वीकार्य शराब नीति और भ्रष्टाचार के आरोपों में काफी हद तक दिखती सच्चाई के होते हुए दिल्ली की मुख्य पार्टी भाजपा ने अगर यह स्थिति पैदा नहीं की कि केजरीवाल और ‘आप’ को रक्षात्मक या बचाव की मुद्रा अपनानी पड़े तो फिर उनके सामने अपनी राजनीति को अपने अनुसार मोड़ देने के लिए खुला मैदान है। 

अरविंद केजरीवाल जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री बने रहे और भाजपा इसे दिल्ली की जनता के बीच एक बड़ा मुद्दा नहीं बना सकी। भाजपा जैसी दिल्ली में इतनी ठोस आधार वाली सशक्त पार्टी की दशा ऐसी है तो केजरीवाल और उनकी पार्टी को विवश करने वाली चुनौती कौन दे सकता है? ध्यान रखिए, दिल्ली की शराब नीति में भ्रष्टाचार का आरोप पहले कांग्रेस की ओर से अजय माकन ने लगाया था। किंतु कांग्रेस दिल्ली में जिस लुंज-पुंज, दुर्बल अवस्था में है उसमें वह उन्हें घेर कर बचाव की मुद्रा में आने के लिए विवश नहीं कर सकती। वैसे भी कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस समय आई.एन.डी.आई.ए. के माध्यम से  भाजपा और नरेंद्र मोदी को पराजित करने की सोच तक सीमित राजनीति कर रहा है। उसमें उसके किसी घटक के विरुद्ध एक सीमा से आगे जाने की अनुमति नहीं मिलेगी। तो कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अवश्य अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा पर ताॢकक प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं पर व्यावहारिक राजनीति में उसके कोई मायने नहीं हैं। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अरविंद या उनकी पार्टी के विरुद्ध किसी आंदोलन या लम्बे अभियान की अनुमति नहीं दे सकता। 

आप सोचिए, केजरीवाल और मनीष सिसौदिया दोनों दिल्ली के मोहल्ले-मोहल्ले में जाएंगे और लोगों के बीच बोलेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पूरी भाजपा हमारी सरकार और पार्टी को खत्म करने के लिए कानूनी एजैंसियों का दुरुपयोग कर रही है जबकि हम लोग निर्दोष हैं। तो उसी भाषा या उससे ज्यादा प्रभावी भाषा में जनता के बीच जाकर प्रत्युत्तर देने या खंडन करने का स्वाभाविक कार्यक्रम क्या दिल्ली की दूसरी राजनीतिक धारा ने बनाया है?
अरविंद केजरीवाल जैसी चाहेंगे वैसी राजनीति करेंगे, वो अपनी शैली में व्यापक वर्ग को यह समझाने में सफल भी हो सकते हैं कि वाकई वे निर्दोष हैं तथा भाजपा सत्ता की ताकत से उनको खत्म करना चाहती है। हालांकि यह हमारा दुर्भाग्य है और भारतीय राजनीति की दिल दहलाने वाली त्रासदी भी कि सामान्य सिद्धांतों, मूल्यों और विचारधाराओं तक को ताक पर रखकर लोगों को मोहित करने की शैली में कोई सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में सफल हो रहा है। उच्चतम न्यायालय ने जमानत के साथ सार्वजनिक तौर पर मुकद्दमे पर कोई बयान न देने की शर्त लगाई है किंतु वह बयान दे रहे हैं और उस पर कोई रोक नहीं।-अवधेश कुमार 
 

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