Edited By ,Updated: 22 Jul, 2024 05:35 AM
जहां एक तरफ केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश की आर्थिक प्रगति को लेकर लगातार अपनी पीठ थपथपाती रही हैं, वहीं देश के बड़े अर्थशास्त्री, उद्योगपति और मध्यम वर्गीय व्यापारी वित्त मंत्री के बनाए पिछले बजटों से संतुष्ट नहीं हैं। अब नया बजट आने को...
जहां एक तरफ केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश की आर्थिक प्रगति को लेकर लगातार अपनी पीठ थपथपाती रही हैं, वहीं देश के बड़े अर्थशास्त्री, उद्योगपति और मध्यम वर्गीय व्यापारी वित्त मंत्री के बनाए पिछले बजटों से संतुष्ट नहीं हैं। अब नया बजट आने को है। पर जिन हालातों में एन.डी.ए. की सरकार आज काम कर रही है उनमें उससे किसी क्रांतिकारी बजट की आशा नहीं की जा सकती। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की लंबी चौड़ी वित्तीय मांगें, सत्तारूढ़ दल द्वारा आम जनता को आर्थिक सौगातें देने के वायदे और देश के विकास की जरूरत के बीच तालमेल बिठाना आसान नहीं होगा। वह भी तब जब भारत सरकार ने विदेशों से ऋण लेने की सारी सीमाएं लांघ दी हैं। आज भारत पर 205 लाख करोड़ रुपए का विदेशी कर्ज है। ऐसे में और कितना कर्ज लिया जा सकता है? क्योंकि कर्ज को चुकाने के लिए जनता पर अतिरिक्त करों का भार डालना पड़ता है, जिससे महंगाई बढ़ती है जिसकी मार आम जनता पहले ही झेल रही है।
दक्षिण भारत के मशहूर उद्योगपति, प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक और आर्थिक मामलों के जानकार डा. मोहनदास पाई ने देश की मौजूदा आॢथक हालत पर तीखी टिप्पणी की है। देश की मध्यम वर्गीय आबादी में बढ़ते हुए रोष का हवाला देते हुए वे कहते हैं कि पूरे देश में मध्यम वर्ग बहुत दुखी है क्योंकि वे अधिकांश करों का भुगतान कर रहे हैं। उन्हें कोई कर कटौती नहीं मिल रही है। मुद्रास्फीति अधिक है लागत अधिक है, छात्रों की फीस बढ़ गई है व रहने की लागत बढ़ गई है। हालात में सुधार होने के बावजूद यातायात के कारण शहरों में जीवन की गुणवत्ता खराब बनी हुई है। वे करों की दर में कमी देखना चाहते हैं। पाई उस टैक्स स्लैब नीति के पक्ष में नहीं हैं जो सरकार ने पिछले 2 बजट में पेश की है। उनके अनुसार, आयकर संग्रह 20 से 22 प्रतिशत बढ़ रहा है, इसलिए देश के मध्यम वर्ग के लिए आयकर के कई नए स्लैब और केवल आवास निर्माण के लिए कारों में छूट देने की बजाय करों में कटौती करने की आवश्यकता है।
मोहनदास पाई का तर्क केवल देश के मध्यम वर्ग तक ही सीमित नहीं है, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारी आबादी के निचले 50 प्रतिशत हिस्से की क्रय शक्ति बढ़ाने की आवश्यकता के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के विकास जैसी चुनौतियों पर प्राथमिक ध्यान दिया जाए। इतना ही नहीं, वे मानते हैं कि रोजगार क्षेत्र की वृद्धि को सुनिश्चित किया जाए। इसके लिए वे वर्तमान चुनौतियों पर काबू पाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। 80 प्रतिशत नौकरियों में 20,000 रुपए से कम वेतन मिलता है और यह एक समस्या है। वे आगे कहते हैं कि हमें कर आतंकवाद को रोकना होगा।
पाई ने प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.)पर मामलों को पूरा करने और उन्हें निर्धारित समय सीमा में जवाबदेह ठहराने के लिए चार्ज शीट दाखिल करने पर ध्यान केंद्रित करने पर भी जोर दिया। उनके अनुसार ‘टैक्स आतंकवाद भारत के लिए बड़ा खतरा है। चूंकि पूरी तस्वीर सामने नहीं आई है, इसलिए विश्लेषकों को अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति बताने के लिए पेश किए गए आंकड़ों के पीछे जाना होगा। इसलिए, जहां स्थापित अर्थशास्त्री बजट की प्रशंसा करते हैं, वहीं आलोचक यथार्थवादी स्थिति प्रस्तुत करते हैं और इसमें वैकल्पिक व्याख्या का महत्व निहित है। यह समस्या, महत्वपूर्ण डेटा की अनुपलब्धता और इसके हेर-फेर से और बढ़ गई है। उदाहरण के लिए, जनगणना 2021 का इंतजार है। 2022 की शुरूआत के बाद महामारी समाप्त हो गई और अधिकांश देशों ने अपनी जनगणना कर ली है, लेकिन भारत में यह प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
जनगणना डेटा का उपयोग डेटा संग्रह के लिए उपयोग किए जाने वाले अधिकांश अन्य सर्वेक्षणों के लिए नमूना तैयार करने के लिए किया जाता है। फिलहाल, 2011 की जनगणना का उपयोग किया जाता है, लेकिन उसके बाद से हुए बड़े बदलावों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है। इसीलिए, परिणाम 2024 की स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। प्रो. कुमार के अनुसार, ‘‘सरकार द्वारा प्रतिकूल समाचारों का खंडन भी एक अहम कारण है। क्योंकि यह आलोचना के उस ङ्क्षबदू को भूल जाता है जो परिभाषा के अनुसार बड़ी तस्वीर और उसकी कमियों पर केंद्रित है।
यह सच है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती है, बहुत सी चीजें घटित होती हैं या बदलती हैं। वहां अधिक सड़कें, उच्च साक्षरता, अधिक अस्पताल, अधिक ऑटोमोबाइल आदि हैं। लेकिन, इनके साथ गरीबी, खराब गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य आदि भी हो सकते हैं। प्रो कुमार के अनुसार, ‘‘आधिकारिक डेटा आंशिक है और प्रतिकूल परिस्थितियों को छुपाने के लिए इसमें हेर-फेर किया गया है। इसीलिए एक वैकल्पिक तस्वीर तैयार करने की जरूरत है जो देश में बढ़ती आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता और बढ़ते संघर्ष की वास्तविकता को दर्शाती हो।’’ इन हालातों में आगामी आम बजट में देशवासियों को क्या राहत मिलती है ये तो बजट प्रकाशित होने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन जाने-माने आर्थिक विशेषज्ञों के इस विश्लेषण को मोदी सरकार को गंभीरता से लेने की जरूरत है।-विनीत नारायण