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भारत-चीन रिश्तों की जटिलताएं

Edited By ,Updated: 07 Jan, 2024 05:46 AM

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हिमालय भारत और चीन के बीच लंबे समय से विभाजक और मिलन बिंदू रहा है। समय के साथ, इन दोनों देशों में मतभेद रहे, आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर रहे और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ। उनका इतिहास एक साथ काम करने और प्रतिस्पर्धा करने का मिश्रण है।

हिमालय भारत और चीन के बीच लंबे समय से विभाजक और मिलन बिंदू रहा है। समय के साथ, इन दोनों देशों में मतभेद रहे, आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर रहे और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ। उनका इतिहास एक साथ काम करने और प्रतिस्पर्धा करने का मिश्रण है। इस अतीत को जानना उनके वर्तमान संबंधों की जटिलताओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। 

अतीत में, सिल्क रोड पर जीवंत व्यापार होता था जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बौद्धिक संवाद को बढ़ावा देता था। चीनी तीर्थ यात्रियों फाह्यान हयून्सांग और इत्सिंग ने भारत की खोज की और अपनी सभ्यता के अमूल्य विवरण पीछे छोड़ दिए। इस दौरान भारत और चीन दोनों ने एक-दूसरे की उपलब्धियों की प्रशंसा की। भारत ने चीनी कला और सोच को प्रभावित किया और खगोल विज्ञान और चिकित्सा में चीन की विशेषज्ञता को भारत में अपनाया गया। हालांकि, 20वीं सदी में राजनीतिक कलह का दौर शुरू हुआ। मैकमोहन रेखा और अन्य विवादित क्षेत्रों से उपजा अनसुलझा सीमा विवाद 1962 के युद्ध में समाप्त हुआ, जिससे द्विपक्षीय संबंधों पर गहरा असर पड़ा। 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा करने के बाद भारत द्वारा दलाई लामा को शरण देने से तिब्बती मुद्दा और भी जटिल हो गया। 

इन तनावों के बावजूद, संबंधों को सुधारने और मतभेदों को सुलझाने के प्रयास जारी रहे। 1988 में दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिससे बातचीत और सहयोग में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1993 का सीमा और शांति समझौता (बी.पी.टी.ए.) या औपचारिक रूप से, भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर शांति बनाए रखने पर समझौते का उद्देश्य सीमा पर झड़पों को रोकना था। शीत युद्ध (कोल्ड वार) के बाद के युग में आर्थिक भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। चीन के आर्थिक उछाल के परिणामस्वरूप भारत के साथ व्यापार में वृद्धि हुई, जिससे वह 2008 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया। संयुक्त उद्यम फले-फूले, और बुनियादी ढांचे के विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में सहयोग तेज हुआ। हालांकि, व्यापार असंतुलन भी विवाद का एक मुद्दा बन गया। भारत के बढ़ते घाटे ने आर्थिक कमजोरी के बारे में चिंताएं बढ़ा दीं। 

आर्थिक क्षेत्र से परे, दोनों देशों ने खुद को प्रमुख क्षेत्रीय और वैश्विक खिलाड़ी के रूप में पेश करना शुरू कर दिया। भारत की 1991 की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति और चीन की ‘बैल्ट एंड रोड पहल’ (बी.आर.आई.) ने उनकी महत्वाकांक्षाओं को उजागर किया, जिससे कभी-कभी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा पैदा हुई, खासकर हिंद महासागर क्षेत्र में। हाल के वर्षों में, ऐतिहासिक दोष रेखाएं फिर से उभर आई हैं। एल.ए.सी. पर सीमा गतिरोध, विशेष रूप से 2020 गलवान घाटी संघर्ष, ने चिंताओं को फिर से जगा दिया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता, पाकिस्तान के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों के साथ मिलकर, भारत के सुरक्षा हितों के लिए नई चुनौतियां पैदा करती है। 

भारत के विदेश मंत्री डा. एस. जयशंकर ने हाल ही में इस रिश्ते की जटिलताओं पर प्रकाश डाला है। उन्होंने चीन के प्रति नेहरू की ‘रोमांटिकता’ की आलोचना की है, और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा पर सरदार पटेल के जोर के समान अधिक ‘यथार्थवादी’ रणनीति की वकालत की है। उन्होंने गलवान घाटी में झड़प के बाद से संबंधों की ‘असामान्य स्थिति’ पर भी प्रकाश डाला है और बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इन कठिनाइयों के बावजूद, दोनों देश क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने और वैश्विक आॢथक विकास को बढ़ावा देने में मौलिक हित सांझा करते हैं। नियमित उच्च स्तरीय संवाद, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों से लोगों के बीच संपर्क सेतुओं का निर्माण जारी है। जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसे मुद्दों के समाधान के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है, जहां भारत और चीन का सहयोग अनिवार्य है। 

आगे बढ़ते हुए, रिश्ते को अत्यधिक संवेदनशीलता और रणनीतिक दूरदॢशता के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है। डा. जयशंकर ने चीन की मुखरता को संतुलित करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए भी क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक चुनौतियों जैसे मुद्दों पर आम जमीन खोजने के महत्व पर जोर दिया है। दोनों देशों को अपने ऐतिहासिक संबंधों को स्वीकार करते हुए और सहयोग के संभावित लाभों को पहचानते हुए बातचीत और आपसी सम्मान को प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत-चीन की कहानी संघर्ष या सहयोग  के बारे में नहीं है। यह सांझा इतिहास, रणनीतियों, उतार-चढ़ाव का एक आकर्षक मिश्रण है। यह एक समृद्ध, सदैव बदलती कहानी की तरह है जिसमें नेहरू, पटेल, जयशंकर और अन्य लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। एक शांतिपूर्ण और लाभकारी भविष्य बनाने के लिए, इस जटिलता को समझना और विभिन्न दृष्टिकोणों से सीखना महत्वपूर्ण है। यह एक जटिल कहानी पढऩे जैसा है जहां प्रत्येक मोड़ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग की संभावना को आकार देता है।-हरि जयसिंह
 

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