Edited By ,Updated: 12 Jul, 2024 05:41 AM
कांग्रेस के बाद देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी शिरोमणि अकाली दल, जिसे आज अकाली दल बादल के नाम से जाना जाता है, के बीच विभाजन सामने आने के बाद अकाली दल बादल विद्रोही नेताओं को भाजपा के समर्थक के रूप में पेश करके खुद यह साबित करने की कोशिश कर रहा...
कांग्रेस के बाद देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी शिरोमणि अकाली दल, जिसे आज अकाली दल बादल के नाम से जाना जाता है, के बीच विभाजन सामने आने के बाद अकाली दल बादल विद्रोही नेताओं को भाजपा के समर्थक के रूप में पेश करके खुद यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि वह सिख सिद्धांतों की एकमात्र संरक्षक पार्टी है और विद्रोही पार्टी अध्यक्ष के इस्तीफे को अस्वीकार करने की कोशिश कर रहे हैं। अकाली दल बादल इस समय भाजपा को कांग्रेस से भी बड़ा सिखों का दुश्मन साबित करने की कोशिश कर रहा है। अकाली दल बादल के वरिष्ठ नेताओं के हालिया बयानों से भी यह संकेत मिलता है कि अकाली दल बादल के लिए भाजपा और कांग्रेस एक समान हैं।
शिरोमणि अकाली दल का गठन 14 दिसंबर 1920 को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की एक टास्क फोर्स के रूप में किया गया था, कुछ विशेष अवसरों को छोड़कर, अकाली दल ने हमेशा कांग्रेस को सिख विरोधी माना है और अकाली दल को कभी-कभी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एस.जी.पी.सी. की मुख्य मांगों के लिए संघर्ष करना और सिखों को राजनीतिक तौर पर मजबूत करना था। इस काम के लिए कभी-कभी अकाली दल को कई अंग्रेजों और कई बार कांग्रेस के साथ लड़ाई लडऩी पड़ी मगर अकाली दल अपना मंतव्य पूरा करने में पूरी तरह से कामयाब भी रहा।
अकाली दल की स्थापना के समय 20वीं सदी की शुरूआत में ही अकाली दल ने कई गुरुद्वारा साहिब को महंतों से आजाद करवाने के लिए अंग्रेजी प्रशासन के खिलाफ कई शांतमयी संघर्ष किए जिनमें 1920 में स्यालकोट में स्थित गुरुद्वारा बाबे दी बेर को करतार सिंह झब्बर के नेतृत्व में महंत हरनाम सिंह की विधवा से आजाद करवाना, 28 जून 1920 को करतार सिंह झब्बर के नेतृत्व में ही हरिमंदिर साहिब को महंतों से आजाद करवाना, गुरुद्वारा पंजा साहिब को महंत मिट्ठा सिंह के कब्जे से मुक्त करवाना, चूहड़ काना स्थित गुरुद्वारा सच्चा सौदा, दरबार साहिब तरनतारन जहां पर काबिज महंतों ने लड़कियों के डांस, तंबाकू सेवन करना शुरू कर दिया था, का कब्जा लेना, 1921 में गुरुद्वारा ननकाना साहिब को महंत नारायण दास से मुक्त करवाना, अक्तूबर 1921 में चाबियों का मोर्चा जीतना, 1922 में गुरु के बाग का मोर्चा जीतना, 1923 में जैतो का मोर्चा लगाना और 1925 में सिख गुरुद्वारा बिल पास करवाना मुख्य तौर पर शामिल हैं।
1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद भी अकाली दल को कई संघर्ष करने पड़े तथा कांग्रेस की सरकारों की ज्यादतियों के खिलाफ खड़ा होना पड़ा जिनमें केंद्र सरकार की ओर से सिखों को अम्बाला से आगे न बसने देने की कार्रवाई, भाषा के आधार पर पंजाबी सूबा बनाने से इंकार करना, पंजाब के जल के मामले में पंजाब के साथ नाइंसाफी करना, आप्रेशन ब्ल्यू स्टार और दिल्ली में सिख कत्लेआम और दोषियों की हिमायत करना मुख्य तौर पर शामिल है। इन कारणों के कारण अकाली दल हमेशा ही कांग्रेस को सिखों की दुश्मन पार्टी के तौर पर पेश करता रहा है। मगर अब अकाली दल भाजपा के साथ संबंध तोडऩे के बाद से भाजपा को ही सिखों का दुश्मन करार देने लग पड़ा है। बेशक भाजपा ने सिखों के हितों के लिए कई प्रयास भी किए हैं मगर अकाली दल इन प्रयासों का सेहरा भाजपा को देने के लिए तैयार नहीं है। अकाली दल बादल के नेता अपनी पार्टी में पड़ी फूट के लिए भाजपा को ही जिम्मेदार बताते आ रहे हैं और बागी अकाली नेताओं को भाजपा समर्थक बता रहे हैं।
इसके जवाब में विद्रोही अकाली जिन्होंने अकाली दल सुधार लहर चलाने का फैसला किया है, भी इसी तरह की शैली में जवाब दे रहे हैं कि सुखबीर सिंह बादल पर उनके साथी खुद या भाजपा के साथ समझौता करने के लिए जोर लगाते रहे हैं। मगर जब भाजपा ने इंकार कर दिया तो हम पर बिना वजह दोष लगाए जा रहे हैं। यह एक अजीब स्थिति है क्योंकि ये सभी अकाली नेता करीब 25 साल तक भाजपा गठबंधन में रहे और किसान आंदोलन के कारण अकाली दल को भाजपा के साथ रिश्ता तोडऩा पड़ा। इस गुटबाजी के कारण अकाली दल बादल अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए हर प्रयत्न करने के लिए सोच रहा है और अकाली दल के कई बड़े नेता बयान दे रहे हैं कि अकाली दल किसी के साथ भी समझौता कर सकता है। यहां तक कि अकाली दल के वरिष्ठ नेता इकबाल सिंह झुंदा ने एक निजी चैनल को इंटरव्यू के दौरान यहां तक कह दिया कि सिख गुरुओं ने सिखों के दुश्मन औरंगजेब के बेटे के साथ और महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ समझौता किया था।
आज के हालात में अकाली दल अपने एजैंडे को लेकरकिसी दुश्मन के साथ समझौता कर सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि अकाली दल के लिए कांग्रेस अब अछूत नहीं रहेगी मगर झुंदा शायद यह भूल गए कि औरंगजेब के बेटे बहादुरशाह ने गुरु जी को सैन्य मदद करने का निवेदन किया था तो गुरु जी ने उसके समक्ष दो शर्तें रखी थीं एक बहादुर शाह राजा बनने के बाद सभी गैर-मुस्लिमों को बराबरी के अधिकार देगा और दूसरा सिखों पर जुल्म करने वालों को उनके सुपुर्द करेगा। इन शर्तों को मनवा कर ही उसकी मदद की गई थी।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)