ट्रम्प की टैरिफ नीतियों से निपटना होगी बड़ी चुनौती

Edited By ,Updated: 09 Nov, 2024 05:20 AM

dealing with trump s tariff policies will be a big challenge

अमरीका  के राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि ‘‘मेरे लिए शब्दकोश में सबसे सुंदर शब्द ‘टैरिफ’ है। यह मेरा पसंदीदा शब्द है। इसके लिए एक जनसंपर्क फर्म की जरूरत है।’’

अमरीका के राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि ‘‘मेरे लिए शब्दकोश में सबसे सुंदर शब्द ‘टैरिफ’ है। यह मेरा पसंदीदा शब्द है। इसके लिए एक जनसंपर्क फर्म की जरूरत है।’’ तो ट्रम्प के इस पसंदीदा शब्द टैरिफ से दुनिया के देश आर्थिक रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। चीन तो निशाने पर है ही, सवाल यह है कि क्या भारत इससे अछूता रह पाएगा? क्या ट्रम्प मोदी की दोस्ती का लिहाज करेंगे?

ट्रम्प की जीत और भारत : व्यापार नीतियों पर अपने सख्त रुख के लिए जाने जाने वाले ट्रम्प ने पहले भी भारत को ‘टैरिफ का दुरुपयोग करने वाला’ करार दिया था। ट्रम्प ने भारत पर आरोप लगाया था कि वह अमरीकी वस्तुओं पर अनुचित रूप से उच्च आयात शुल्क वसूलता है। उनके पिछले कार्यकाल में दोनों पक्षों की ओर से टैरिफ में बढ़ौतरी देखी गई। ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित होने के साथ ही भारतीय निर्यातक और नीति निर्माता संभावित बदलावों के लिए अंदर ही अंदर व्यथित भी हैं और इससे निपटने की तैयारी भी कर रहे हैं। 

भारत-अमरीका व्यापार पर एक नजर : अमरीका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक सांझेदारों में से एक है। दोनों देश एक-दूसरे के साथ सामानों और सेवाओं का आयात-निर्यात करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि भारत अमरीका को निर्यात ज्यादा करता है और वहां से आयात कम करता है। बिजनैस और फाइनांस की भाषा में इसे भारत के लिए ‘ट्रेड सरप्लस’ कहते हैं। भारत और अमरीका के बीच वर्तमान व्यापार लगभग 150 बिलियन डॉलर है। भारत अमरीका को कई तरह के उत्पाद निर्यात करता है जिनमें कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं शामिल हैं।  इनकी कीमत सालाना लगभग 85 बिलियन डॉलर है। दूसरी ओर, भारत अमरीका से लगभग 65 बिलियन डॉलर मूल्य के सामान आयात करता है, जिनमें तेल, विमान, मशीनरी और चिकित्सा उपकरण शामिल हैं। दोनों देशों को इस आयात-निर्यात से लाभ होता है। 

टैरिफ को समझिए : सीधे शब्दों में कहें तो टैरिफ आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर है। सरकारें आयातित वस्तुओं को अधिक महंगा बनाने के लिए टैरिफ का उपयोग करती हैं। ऐसा करने के पीछे मकसद यह होता है कि उपभोक्ता अपने देश में बने सामानों को ही खरीदें, जिससे घरेलू बाजार को तेजी मिले। हालांकि यह टैरिफ कभी-कभी व्यापारिक भागीदारों के साथ तनाव का कारण बनता है, जैसा कि ट्रम्प के पिछले राष्ट्रपति पद के दौरान अमरीका के साथ हुआ था। 

हार्ले-डेविडसन प्रकरण : 2018 में ट्रम्प ने अमरीकी मोटरसाइकिलों पर भारत के आयात शुल्क, विशेष रूप से हार्ले-डेविडसन बाइक पर लगाए गए 100 प्रतिशत टैरिफ को बड़ा मुद्दा बना दिया था। उन्होंने तर्क दिया था कि बजाज और रॉयल एनफील्ड जैसे भारतीय मोटरसाइकिल ब्रांड बेहद कम टैरिफ के साथ अमरीकी बाजार में हैं, जबकि हार्ले-डेविडसन को भारत में भारी शुल्क का सामना करना पड़ रहा है, जो अनुचित है। अमरीकी दबाव में भारत ने अंतत: हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर आयात शुल्क को घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया था। 

भारत के लिए संभावित चुनौतियां : ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में अमरीकी उद्योगों की रक्षा के व्यापक कदम के तहत भारतीय वस्तुओं, विशेष रूप से स्टील और एल्यूमिनियम पर अतिरिक्त शुल्क लगाए गए थे। संभावना है कि वह इसी तरह के शुल्क फिर से लागू कर देंगे, जिससे वे भारतीय निर्यातक प्रभावित होंगे, जो अमरीकी बाजार पर निर्भर हैं। भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने से वे अमरीका में अधिक महंगे हो जाएंगे, जिससे उनके सामानों की मांग कम हो जाएगी। भारत में छोटे और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.), जो निर्यात में बड़े हिस्से का योगदान करते हैं, विशेष रूप से तनाव में हैं। ऐसा इसलिए कि वे अक्सर कम मार्जिन पर काम करते हैं। वहीं, भारत भी जवाबी कार्रवाई के तौर पर अमरीकी आयातों पर टैरिफ बढ़ाने का विकल्प चुन सकता है। हालांकि, इस रणनीति की अपनी सीमाएं हैं, क्योंकि यह एक पूर्ण ‘व्यापार-युद्ध’ में बदल सकता है, जो दोनों अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, अमरीकी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ से भारतीय उपभोक्ताओं और अमरीकी आयात पर निर्भर व्यवसायों के लिए कीमतों में वृद्धि होगी। चुनौती इन उपायों को घरेलू अर्थव्यवस्था और अमरीका के साथ व्यापक व्यापारिक संबंधों की रक्षा करने की आवश्यकता के साथ संतुलित करने में है। 

हाल के वर्षों में भारत के रणनीतिक हित अपने व्यापार पोर्टफोलियो में विविधता लाने, अन्य देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने पर रहे हैं। हालांकि, अमरीका एक अपूरणीय व्यापारिक सांझेदार बना हुआ है और कोई भी व्यापार बाधा उन क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती है, जिनका अमरीकी बाजारों के साथ लंबे समय से संबंध है, जैसे कि आई.टी. सेवाएं, फार्मास्यूटिकल्स और टैक्सटाइल। इसके अतिरिक्त कई भारतीय कंपनियों ने अमरीका में महत्वपूर्ण निवेश कर रखा है। अमरीका के साथ किसी भी तरह की व्यापार बाधा आगे के निवेश और सांझेदारी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। भारत इन संभावित प्रभावों को कम करने के लिए यूरोपीय संघ, पूर्वी एशिया और अफ्रीका जैसे अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार संबंधों को और फैलाने और मजबूत करने पर विचार कर सकता है।

क्या व्यापार संबंधी कड़वाहट अपरिहार्य है : अपने ‘अमरीका फस्र्ट’ बयान के बावजूद, ट्रम्प ने दोनों पक्षों को लाभ पहुंचाने वाले सौदों पर बातचीत करने में भी रुचि दिखाई है। अतीत में, भारत और अमरीका ने व्यापार बाधाओं को कम करने के लिए चर्चा की है और यह संभव है कि वे दोनों देशों के हितों को संतुलित करते हुए एक मध्यम मार्ग पर पहुंच सकें। भारत के लिए कूटनीतिक पहुंच महत्वपूर्ण होगी। अमरीकी व्यवसायों, सांसदों और उद्योग जगत के प्रमुख लोगों के साथ संबंधों को मजबूत करने से सद्भावना को बढ़ावा मिल सकता है। एक ऐसा गठबंधन बन सकता है जो संतुलित व्यापार नीतियों की वकालत करता हो। 

निष्कर्ष : दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों का इतिहास बताता है कि बातचीत और कूटनीति कभी-कभी सबसे कठोर रुख को भी नरम कर सकती है। भारत की प्रतिक्रिया रणनीतिक होनी चाहिए, जिसमें अपने आॢथक हितों की रक्षा और एक प्रमुख वैश्विक भागीदार के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यह देखना बाकी है कि क्या दोनों देश टैरिफ और व्यापार की जटिलताओं को दूर कर सकते हैं, ताकि अपनी दीर्घकालिक सांझेदारी को मजबूत कर सकें, न कि कमजोर।-हर्ष रंजन
 

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