Edited By ,Updated: 06 Jan, 2025 05:03 AM
अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपना चुनाव अभियान शुरू करने के समय से ही वहां भारत विरोधी लॉबी की ओर से जारी किए जाने वाले भारत विरोधी वीडियो बड़ी संख्या में वायरल हो रहे हैं। इनमें प्रश्न उठाया गया है कि अमरीका में भारतीय...
अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपना चुनाव अभियान शुरू करने के समय से ही वहां भारत विरोधी लॉबी की ओर से जारी किए जाने वाले भारत विरोधी वीडियो बड़ी संख्या में वायरल हो रहे हैं। इनमें प्रश्न उठाया गया है कि अमरीका में भारतीय डाक्टर और इंजीनियर क्यों आ रहे हैं! इन्होंनेे किसी अच्छे कालेज में शिक्षा प्राप्त नहीं की होती जबकि इससे पहले तक अमरीका में कार्यरत भारतीय डाक्टरों, इंजीनियरों आदि को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। इस तरह के हालात के बीच ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की तो शक्ति ही हमेशा इसकी शिक्षा का उच्च स्तर रहा है। अपनी योग्यता और प्रतिभा के दम पर ही भारतीयों ने विश्व के ओर-छोर में अपनी विशेष पहचान कायम की है और विभिन्न देशों में सम्मानजनक जीवन बिता रहे हैं।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि हमारी अर्थव्यवस्था के विकास में सर्वाधिक योगदान शिक्षा का ही है। इसी के कारण हमारा देश प्रगति कर रहा है, चाहे यह प्रगति व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में हो या किसी अन्य क्षेत्र में, यह शिक्षा ही है जिस पर भारतीय माता-पिता बहुत ध्यान देते रहे हैं कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानी ही है। अभी तक तो भारतीय अभिभावकों की यही सोच हमारी विशेषता रही थी परंतु अब ऐसी शंका उत्पन्न हो रही है कि यही शक्ति अब कमजोरी में बदलती जा रही है क्योंकि भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति के बारे में जारी एक सरकारी रिपोर्ट में कुछ परेशान करने वाले तथ्य सामने आए हैं जिसमें भारतीय स्कूलों में बुनियादी ढांचे की भारी कमी का पता चला है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित ‘यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फार्मेशन सिस्टम फार एजुकेशन’ (यू.डी.आई.एस.ई.प्लस) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत के 14.71 लाख स्कूलों में से 10.17 लाख स्कूल सरकारी हैं। इनमें से केवल 9.12 लाख स्कूलों में ही बिजली की सुविधा है, शेष 1.52 लाख स्कूलों में बिजली ही नहीं है। इनके अलावा 4.54 लाख सरकारी सहायता प्राप्त, निजी और गैर सहायता प्राप्त तथा अन्य स्कूल हैं जिनमें से 4.07 लाख स्कूलों में ही बिजली उपलब्ध है।
देश के कुल स्कूलों में से 14.47 लाख स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था बताई गई है लेकिन केवल 14.11 लाख स्कूलों में ही यह व्यवस्था काम कर रही है। 10.17 लाख सरकारी स्कूलों में से 9.78 लाख स्कूलों में ही पीने के पानी की व्यवस्था लागू है। इसी प्रकार सरकारी सहायता प्राप्त, निजी एवं अन्य स्कूलों में 4.33 लाख स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था काम कर रही है। देश के 14.71 लाख स्कूलों में से 14.50 लाख स्कूलों में शौचालयों की सुविधा है लेकिन केवल 14.04 लाख शौचालय ही काम कर रहे हैं। 67000 स्कूल नाकारा शौचालयों के चल रहे हैं और इनमें से अधिकांश (46000) स्कूल सरकारी हैं।
दिव्यांगों के मामले में तो स्थिति और भी खराब है तथा 10.17 लाख सरकारी स्कूलों में से केवल 3.37 लाख स्कूलों में ही दिव्यांगों के अनुकूल शौचालय हैं और उनमें से भी केवल 30.6 प्रतिशत ही चालू हालत में हैं। देश के केवल 57.2 प्रतिशत स्कूलों में ही कम्प्यूटर चालू हालत में हैं। इसी तरह इंटरनैट की सुविधा भी देश के केवल 53.9 प्रतिशत स्कूलों में ही उपलब्ध है। वहीं देश के स्कूलों में होने वाले दाखिलों में गिरावट आई है। प्री-नर्सरी और नर्सरी आदि कक्षाओं में वर्ष 2022-23 की तुलना में वर्ष 2023-24 में 37 लाख दाखिले कम हुए हैं। 2022-23 में स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या 25.17 करोड़ थी जो 2023-24 में घट कर 24.80 करोड़ रह गई। पिछले वर्ष की तुलना में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में 16 लाख और छात्राओं की संख्या में 21 लाख की गिरावट आई है। अनेक बच्चे प्राथमिक कक्षाओं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे हैं।
इस तरह के हालात के बीच पिछले दिनों एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया कि देश के स्कूलों में शिक्षा के स्तर में भी बड़ी गिरावट आ रही है। यहां तक कि मिडल स्तर की कक्षाओं के बच्चे प्राइमरी कक्षाओं के विभिन्न विषयों के प्रश्न हल करने में असमर्थ पाए गए। यदि हमारा शिक्षा का स्तर इस प्रकार गिरता चला जाएगा तो हमारी अर्थव्यवस्था किस प्रकार चलेगी। हमारे लोगों को रोजगार कैसे मिलेगा और हमें अधिक पास प्रतिशत की नहीं बल्कि अधिक प्रतिभाशाली और दक्ष छात्र तैयार करने की आवश्यकता है।