न्याय में देरी वास्तव में अमानवीय

Edited By ,Updated: 10 Nov, 2024 04:31 AM

delay in justice is actually inhuman

भारत की न्यायपालिका ने स्वतंत्रता के पश्चात कई बड़े महत्वपूर्ण संवैधानिक  सामाजिक, धार्मिक, आॢथक और अन्य मसलों पर बड़े खूबसूरत तरीके से अपनी जिम्मेदारियों को सर-अंजाम दिया है। कई ऐतिहासिक फैसले भविष्य के लिए माडल बन गए हैं।

भारत की न्यायपालिका ने स्वतंत्रता के पश्चात कई बड़े महत्वपूर्ण संवैधानिक  सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और अन्य मसलों पर बड़े खूबसूरत तरीके से अपनी जिम्मेदारियों को सर-अंजाम दिया है। कई ऐतिहासिक फैसले भविष्य के लिए माडल बन गए हैं। भारत के माननीय न्यायाधीशों के स्वतंत्रतापूर्वक और निष्पक्षता से किए गए फैसलों का विश्व के प्रसिद्ध विधिवेत्ता भी लोहा मानते हैं। परंतु सर्व-अधिकार सम्पन्न होने के बावजूद भारत की जिला अदालतों, हाईकोट्स और सुप्रीम कोर्ट में 2024 मे 5 करोड़ लोगों के मुकद्दमे विचाराधीन हैं। इनमें दीवानी और फौजदारी के मुकद्दमों की भरमार है। 87 प्रतिशत मुकद्दमे जिला अदालतों में सुनवाई के लिए पड़े हैं। जमीनों के 66 प्रतिशत केस हैं। 5 करोड़ मुकद्दमों में से आधे यानी 2 करोड़ 50 लाख प्रादेशिक सरकारों के हैं। 1 करोड़ 80 लाख लोग पिछले 30 वर्षों से न्याय पाने की इंतजार कर रहे हैं और कई लोग अल्लाह मियां को प्यारे हो गए हैं तथा दूसरी पीढ़ी भी उम्रदराज हो गई है। कइयों के कारोबार बुरी तरह चौपट हो गए हैं। वे निराशा, उदासीनता और मायूसी भरा जीवन बसर कर रहे हैं।

2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, अदालतों में मामलों को जल्दी से जल्दी निपटने में 324 वर्षों से अधिक समय लगेगा। उस समय अदालतों में 2 करोड़ 90 लाख केस विचाराधीन थे। अब 5 करोड़ मुकद्दमों से निपटने के लिए कम से कम 500 वर्ष लगेंगे, जबकि मानव जीवन ही 60 से 70 वर्ष तक है। विश्व के 100 देशों में इतने मुकद्दमे नहीं हैं, जितने केवल भारत में हैं। पांच करोड़ लोग प्रत्यक्ष रूप से और 70 करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं। यह एक अति गंभीर समस्या है। विलंबित मुकद्दमों के लिए सरकार को जी.डी.पी. का 2 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है।

वर्तमान भारतीय न्यायिक व्यवस्था ब्रिटिश हकूमत की ही देन है। न्याय में देरी पर इंगलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड ग्लैडस्टोन ने 16 मार्च, 1868 को संसद में अपने भाषण में कहा था कि ‘न्याय में देरी, न्याय देने से ही इन्कार है।’ विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार फ्रांसिस बेकन, धार्मिक विचारक विलियम पेन और नस्लीय भेदभाव को जड़ से उखाडऩे वाले नेता माॢटन लूथर और कई अन्य प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं ने भी न्याय देने में देरी को अनुचित ठहराया है। न्याय में देरी अनैतिक, गैर अखलाकी, गैर कानूनी, गैर संवैधानिक और वास्तव में अमानवीय है। भारत की न्यायिक व्यवस्था अति खर्चीली, पेचीदा, अनावश्यक थका देने वाली और हैरतअंगेज रूप से समय और साधन बर्बाद करने वाली है। तारीख पर तारीख की संस्कृति ने याचिकाकत्र्ता को शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक तौर पर भी परेशान कर दिया है। हर तारीख पर न्याय पाने की आशा लेकर लोग कोर्ट जाते हैं, परंतु तारीख लेकर मुंह लटकाए वापिस आ जाते हैं। जब तारीख पर सुनवाई ही नहीं होनी तो फिर तारीख डालना कोई सकारात्मक पहलू नहीं है।

हकीकत में यह ब्रिटिश सरकार का भारतीयों को जानबूझकर परेशान करने का एक तरीका था। स्वतंत्र देश में इस घिसी-पिटी रिवायत से छुटकारा पाना होगा, परन्तु कब, यह भविष्य के गर्भ में ही है। अदालतों में, विशेषकर हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में आने जाने पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। मामूली केसों के लिए भी 10 से 15 वर्ष तक इंतजार करना मानसिक प्रताडऩा से कम नहीं। हकीकत में यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है। यह एक बड़ी विडम्बना, त्रासदी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।  पिछले कई वर्षों से माननीय न्यायाधीशों और न्याय सुधारवादियों की तरफ से यह मांग की जा रही है कि देश में बढ़ते हुए मुकद्दमे वर्तमान व्यवस्था द्वारा शीघ्रता से निपटाना मुश्किल हो रहा है। सभी अदालतों में न्यायाधीशों की भारी कमी है। गैर न्यायिक कर्मचारियों की कमी से भी न्यायालयों में केस निपटाने में मुश्किल आ रही है। 

न्यायाधीशों की नियुक्ति अति पचीदा है। इसे सरल और पारदर्शी बनाया जाए। न्यायालयों को दरपेश समस्याओं को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और हाईकोटर््स के मुख्य न्यायाधीशों से विचार-विमर्श करके केसों को शीध्र निपटाने के ठोस और कार-आमद कदम उठाए जाएं। प्रादेशिक सरकारों को हाई कोर्ट और जिला अदालतों में न्यायाधीशों की कमी को बिना विलंब दूर किया जाए। न्यायालयों में जरूरत के मुताबिक साधन मुहैया किए जाएं। केसों को निपटाने के लिए रिटायर्ड न्यायाधीशों का सहयोग भी लिया जा सकता है।  मैट्रीमोनियल केसों के लिए स्थानीय स्तर पर कमेटियां गठित की जाएं। न्याय में देरी से परेशान उम्रदराज याचिकाकत्र्ताओं के लिए यह शे’र नजर करता हूं। न्याय में हो देरी तो समझ लो, कि न्याय से ही इंकार है, कोई बंदा -ओ  बशर यह बताए कि आखिर इस देरी में क्या राज है। तमाम उम्र गुजर गई इंसाफ की चाहत में, सुपुर्दे खाक होने के बाद क्या फैसला खुदा को सुनाओगे।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!