Edited By ,Updated: 27 Feb, 2025 06:38 AM
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गाय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। गौपालन का इतिहास मानव की उत्पत्ति जितना ही पुराना है। गौ सेवा व गौरक्षा शब्द आपस में पर्यायवाची रहे हैं। गौवंश का महत्व हमारे देश में वैदिक काल से भी पहले रहा होगा तभी तो वेदों में भी गौमाता के प्रति श्रद्धा...
गाय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। गौपालन का इतिहास मानव की उत्पत्ति जितना ही पुराना है। गौ सेवा व गौरक्षा शब्द आपस में पर्यायवाची रहे हैं। गौवंश का महत्व हमारे देश में वैदिक काल से भी पहले रहा होगा तभी तो वेदों में भी गौमाता के प्रति श्रद्धा व आस्था की ऋचा अंकित है। ऋग्वेद में गाय को ‘अघन्या’ कहा गया है जिसका अर्थ जो वध योग्य नहीं है। स्कंद पुराण में गौ सर्वदेमयी और वेद सर्वगौमय लिखा गया है। माता तुल्य गाय के मानवीय जीवन में इतने अधिक लाभ गिनाए जा सकने के कारण ही गाय में देवताओं के वास की बात की जाती रही है। दुग्ध पदार्थों के अतिरिक्त गौवंश हमारी कृषि तथा आर्थिकता का भी धुरा रहा है, संक्षेप में कहें कि गाय को अगर निकाल दें तो भारत भारत ही नहीं बचता, इसका साहित्य अधूरा हो जाएगा, शास्त्र, संस्कृति खो जाएंगे। गाय भारत की आत्मा की प्रतीक है। गाय में कुछ ऐसा है जो और जीवों में नहीं।
वैज्ञानिक परीक्षण में भी भारतीय गाय के दूध को अन्य जीवों के दूध से अलग तथा माता के दूध के समान माना गया है। भगवान कृष्ण का जीवन गौ सेवा तथा गौरक्षा को समर्पित था। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता में कहा है ‘धेनु नामस्मि’ यानी कि ‘‘मैं गायों में कामधेनु हूं’’ अर्थात गाय भी भगवान का स्वरूप हैं। महाभारत के भी बहुत से श्लोकों में गाय की महिमा का वर्णन है। सिखों के 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी कहा था ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खपाऊं, गऊ माता का दु:ख मैं मिटाऊं’ इस से स्पष्ट है कि उनके द्वारा मुगलों के संहार का मुख्य कारण गौरक्षा था क्योंकि मुगल गौ वध करते थे। पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह के शासन में गौहत्या पर मृत्यु दंड दिया जाता था। 1871 में गौ रक्षा हेतु बूचडख़ाने बंद करवाने के लिए 65 कूका सिखों ने अपना बलिदान दे दिया था। अनेकानेक महापुरुष गौरक्षा के बारे अपने विचार समय-समय पर प्रकट करते रहे हैं। बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ‘चाहे मुझे मार डालो पर गाय पर हाथ न उठाना ’ पंडित मदन मोहन मालवीय ने अपनी अंतिम इच्छा में कहा था कि भारतीय संविधान की पहली धारा संपूर्ण गौवंश हत्या निषेध बने। इन्हीं भावनाओं के अनुरूप 1923 में महात्मा गांधी जी ने भी गौ हत्या के विरुद्ध आवाज उठा कर इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग रखी थी।
स्वतंत्र भारत में भी 1966 में गौ रक्षा हेतु एक जबरदस्त अंदोलन चला था जिसका नेतृत्व संतों, धार्मिक, सामाजिक तथा कई राजनीतिक विभूतियों द्वारा किया गया था। जिस में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, पूजनीय एम.एस. गोलवलकर, सेठ गोविंद दास, स्वामी करपात्री जी व विश्व हिन्दू परिषद तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन भी थे। इस आंदोलन के अंतर्गत 7-11-1966 को संसद पर एक ऐतिहासिक प्रदर्शन आयोजित किया गया जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया परन्तु इसका दुखद पहलू यह रहा कि उन की बात सुनने की बजाय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला कर जलियांवाला बाग की पुनरावृत्ति की जिसमें अनेक गौ भक्तों का बलिदान हुआ। डा. भीम राव आंबेडकर के नेतृत्व में बनाए गए भारत के संविधान में राज्य को गौवध पर प्रतिबंध लगाने वाले उपबंध बनाने के निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 48 से राज्य सरकारों को संविधान के अनुच्छेद 246 तथा अनुसूची 7 की सूची 11 से शक्ति प्राप्त हैं कि वह गौवध पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिनियम बना सके। करीब 24 राज्यों ने इस विषय पर अधिनियम पारित करके गौवध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा कर इसे एक दंडनीय अपराध घोषित किया है जिसमें अपराधियों के लिए कठोर कारावास का प्रावधान है जिनमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, दिल्ली तथा चंडीगढ़ है।
पंजाब की बात करें तो पहले गौहत्या निषेध अधिनियम 1955 के अंतर्गत केवल एक साल साधारण कारावास व जमानत का प्रावधान था। अकाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में गौ सेवा से संबंधित बहुत से कार्य हमने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से करवाए जिसमें बिल-संख्या 22 पी.एल. ए 2011 पास करवाकर इस सजा को 10 वर्ष के कठोर कारावास में बदला गया। भारत की सवा सौ करोड़ के करीब हिन्दू जनमानस के अंतर्मन में गाय के प्रति सम्मान है वह इस का वध होता सहन नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी विषय की गंभीरता को देखते हुए 2015 में विधि तथा न्याय विभाग से राय मांगी थी कि क्या केंद्र सरकार भी गुजरात सरकार की तर्ज पर गौवध पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए कानून बना सकती हैं, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी से हम उन की बहुत सी बातों से भिन्न हो सकते हैं, परन्तु उन की पूर्ण गौवध की मांग को नकारा नहीं जा सकता है।
दरअसल जब तक केंद्र इस विषय पर सभी राज्यों में एक सार कानून नहीं बनाता गौ तस्करी तथा गौवध नहीं रुक सकता। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी क्योंकि जब तक इस विषय को संविधान की अधिसूची 7 की सूची ढ्ढढ्ढढ्ढ में सम्मिलित नहीं किया जाता, केंद्र सरकार कुछ भी करने में असमर्थ रहेगी।-तीक्ष्ण सूद(पूर्व कैबिनेट मंत्री पंजाब सरकार)