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अतीत के कंकाल खोदना अच्छी बात नहीं

Edited By ,Updated: 17 Apr, 2025 05:28 AM

digging up the skeletons of the past is not a good thing

भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो अतीत से ग्रस्त है, जहां लोग सचमुच उन लोगों के कंकाल खोदना चाहते हैं जो अपने समय में खलनायक रहे होंगे। कोई भी अन्य देश, यहां तक कि वे देश भी नहीं जिनके विकास सूचकांक जैसे गरीबी और निरक्षरता हमसे बहुत कम हैं,...

भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो अतीत से ग्रस्त है, जहां लोग सचमुच उन लोगों के कंकाल खोदना चाहते हैं जो अपने समय में खलनायक रहे होंगे। कोई भी अन्य देश, यहां तक कि वे देश भी नहीं जिनके विकास सूचकांक जैसे गरीबी और निरक्षरता हमसे बहुत कम हैं, सदियों पहले घटित किसी घटना पर गरमा-गरम बहस और यहां तक कि हिंसा का गवाह नहीं बनता।

दुनिया भर में लोगों ने अपने अतीत के साथ जीना सीख लिया है। ऐसा ही एक उदाहरण स्पेन में कॉर्डोबा की प्रसिद्ध मस्जिद कैथेड्रल है जो उस देश के शीर्ष पर्यटक आकर्षणों में से एक है। अन्य स्थानों पर भी सैंकड़ों पुराने स्मारक हैं, जिनमें से कई में विभिन्न धर्मों से संबंधित वास्तुकला के तत्व मौजूद हैं। विश्व आगे बढ़ चुका है और भविष्य, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव, प्रौद्योगिकी में अत्याधुनिक प्रगति,मंगल मिशन, बुनियादी ढांचे के विकास और अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा शुरू किए गए व्यापार युद्ध के प्रभाव के बारे में बात कर रहा है।

यहां, भारत में, हिंदू-मुस्लिम कथा अखबारों की सुर्खियों पर हावी रहती है और टी.वी. एंकर इस सवाल पर चिल्लाते और चीखते हैं। इस प्रक्रिया में सांप्रदायिक हमलों या दंगों के बारे में रिपोर्ट में समुदायों का नाम न बताने की पुरानी नैतिकता को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है। किसी समुदाय का नाम लेना और उसे शॄमदा करना अब सामान्य बात हो गई है। अब पश्चिम बंगाल से एक केंद्रीय मंत्री खुलेआम लोगों से मुर्शिदाबाद में दंगाइयों से निपटने के लिए तलवारें लेकर बाहर आने का आह्वान कर रहे हैं। एक एंकर द्वारा स्पष्टीकरण मांगे जाने पर उन्होंने अपना रुख दोहराया और कहा कि ‘कोई विकल्प नहीं है’ क्योंकि सुरक्षा बल स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं, जिसके कारण 3 लोगों की मौत हो गई और सैंकड़ों अन्य को आश्रय शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

मुर्शिदाबाद या देश के किसी अन्य हिस्से में हुई हिंसा और उपद्रव का कोई बचाव नहीं कर सकता लेकिन एक केंद्रीय मंत्री द्वारा लोगों से तलवारें निकालने और एक विशेष समुदाय के सदस्यों से मुकाबला करने को कहना भी अस्वीकार्य है। विभाजन के दोनों पक्षों के राजनीतिक नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे तनाव को कम करें तथा शांति की अपील करें, हिंसा भड़काने की नहीं।

ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को विवादास्पद वक्फ अधिनियम के लागू होने के बाद भीड़ के हिंसक होने की संभावना का अनुमान लगाना चाहिए था। यह तो स्पष्ट था लेकिन राज्य की खुफिया एजैंसियां या तो अक्षम साबित हुईं या फिर हिंसा के दौरान जानबूझकर अनदेखी करती रहीं। समाचार पत्रों में एक विशेष समुदाय के सदस्यों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी या झूठी रिपोर्ट के माध्यम से ‘घृणा अभियान’ चलाए जाने की खबरें छपी हैं। राज्य सरकार को इंटरनैट निलंबित करने के लिए तत्परता से काम करना चाहिए था और विभिन्न समुदायों के नेताओं को एक साथ बैठकर मुद्दों को सुलझाने के लिए कहना चाहिए था। ममता बनर्जी ने स्थिति को नियंत्रित करने में विफलता के लिए सीमा सुरक्षा बल जैसी केंद्रीय सुरक्षा एजैंसियों को दोषी ठहराया है लेकिन उन्हें स्थानीय पुलिस के साथ-साथ राज्य की खुफिया एजैंसियों पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। केंद्रीय खुफिया एजैंसियों ने भी स्थिति को अशांत होने दिया, जिसके कारण दुर्भाग्यपूर्ण हिंसा हुई। यदि हिंसा को भड़कने से रोकने की वास्तविक इच्छा होती तो निवारक गिरफ्तारियां आवश्यक थीं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो विशेष रूप से सांप्रदायिक कोण के मामले में अपनी सख्त रणनीति के लिए जाने जाते हैं, को एक समुदाय के बारे में यह कहने में कोई झिझक नहीं हुई कि ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते’। एक मूर्ख व्यक्ति भी समझ सकता है कि मुख्यमंत्री किस ओर संकेत कर रहे थे। किसी विशेष समुदाय को चुनिन्दा निशाना बनाना कोई रहस्य नहीं है। हाल ही में उनकी पुलिस ने वक्फ  अधिनियम का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के एक समूह पर छापा मारा। वे न तो ङ्क्षहसा में लिप्त थे और न ही कोई विरोध मार्च निकाल रहे थे। उन्होंने केवल इस अधिनियम के विरोध में अपनी बाजुओं पर काली पट्टियां बांध ली थीं। राज्य पुलिस ने उनके खिलाफ  एफ..आई.आर. दर्ज की और उन्हें एक स्थानीय अदालत में पेश किया गया जिसने उनमें से प्रत्येक से 2 लाख रुपए की जमानत और बांड मांगे। किसी भी मीडिया संस्थान ने उनकी ओर से आवाज नहीं उठाई और न ही सरकार से उसकी कार्रवाई पर सवाल उठाया। यह सवाल उठता है कि क्या हम सचमुच लोकतंत्र में रह रहे हैं।

ऐसा शायद ही कोई दिन हो जब हिंदू-मुस्लिम कहानी सुर्खियों में न आती हो। इस सप्ताह के आरंभ में प्रधानमंत्री ने भी कांग्रेस से सवाल किया था कि यदि उसे मुसलमानों की इतनी चिंता है तो उसने एक मुसलमान को पार्टी का अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया। देश का लक्ष्य अपनी आजादी की शताब्दी मनाने तक विकसित भारत बनना है, इसलिए अब समय आ गया है कि हम अतीत को खंगालने की बजाय भविष्य और देश के नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के बारे में बात करें।-विपिन पब्बी 
 

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