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सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद की दिशा

Edited By ,Updated: 22 Dec, 2024 05:52 AM

direction after ban on single use plastic

पंजाब जिसे हरित क्रांति की भूमि के रूप में जाना जाता है, अब पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। 10 दिसम्बर 2024 से राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक (एस.यू.पी.) पर पूर्ण प्रतिबंध लागू हो चुका है।  यह निर्णय केवल पर्यावरणीय...

पंजाब जिसे हरित क्रांति की भूमि के रूप में जाना जाता है, अब पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। 10 दिसम्बर 2024 से राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक (एस.यू.पी.) पर पूर्ण प्रतिबंध लागू हो चुका है। यह निर्णय केवल पर्यावरणीय संकट से निपटने का संकेत है बल्कि यह पंजाब के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव की दिशा में भी एक कदम है। हालांकि इस प्रतिबंध की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे शहरी और ग्रामीण दोनों स्तरों पर कितनी प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है।

पंजाब का प्लास्टिक संकट : आंकड़े और प्रभाव : पंजाब हर साल लगभग 6 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है,  जिसमें से 12 प्रतिशत सिंगल यूज प्लास्टिक है। यह कचरा नदियों, नालों और खेतों में फैलकर न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। शहरी इलाकों में खासकर लुधियाना, अमृतसर और चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों में प्लास्टिक कचरे के कारण बरसात के मौसम में नालों का जाम होना और जलभराव आम समस्याएं बन गई हैं। प्लास्टिक बैग और अन्य एस.यू.पी. उत्पाद जैसे डिस्पोजेबल प्लेट्स और गिलास, कचरे का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं।

ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी चिंताजनक है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.) के एक अध्ययन के अनुसार संगरूर और मानसा जैसे जिलों में करीब 15 प्रतिशत खेतों में प्लास्टिक कचरे का जमाव पाया गया है। यह कचरा मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करता है जिससे फसलों की पैदावार कम हो जाती है। किसानों के लिए यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब वे प्लास्टिक कचरे को जलाने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है।

सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध : आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां : पंजाब का आर्थिक ढांचा छोटे और मध्यम उद्योगों (एम.एस.एम.ई.एस.) पर टिका हुआ है। राज्य में 5000 से अधिक प्लास्टिक निर्माण इकाईयां हैं जो लगभग 50,000 लोगों को रोजगार देती हैं। इन उद्योगों के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। लुधियाना का हौजरी उद्योग इसका एक उदाहरण है। यहां उत्पादों को पैक और शिप करने के लिए प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग किया जाता है। बायोडिग्रेबेल विकल्प अपनाने से उनके पैकेजिंग खर्च में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए यह लागत बढ़ाना मुश्किल होगा। छोटे विक्रेता और सड़क पर खाद्य पदार्थ बेचने वाले फेरीवाले भी इस प्रतिबंध से प्रभावित होंगे। जालंधर और बठिंडा जैसे शहरों में स्ट्रीट फूड व्यवसाय प्लास्टिक डिस्पोजेबल के उपयोग पर निर्भर हैं। इनके लिए  बांस, स्टील या कागज आधारित विकल्पों की उच्च कीमत एक बड़ी बाधा है।

प्रतिबंध लागू करने में आने वाली कठिनाइयां : सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू करने में बड़ी चुनौती यह है कि पंजाब के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक बड़ा अंतर है। शहरी क्षेत्रों में जहां जागरूकता और बुनियादी ढांचा बेहतर है, प्रतिबंध को लागू करना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां प्लास्टिक उत्पाद सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं, विकल्प अपनाना एक चुनौती है। इसके अलावा प्लास्टिक उत्पादों की तस्करी एक अन्य समस्या बन सकती है।  पड़ोसी राज्यों से सस्ती प्लास्टिक वस्तुओं की आपूर्ति को रोकने के लिए कड़े कानून और प्रभावी निगरानी प्रणाली की आवश्यकता होगी।

जमीनी स्तर पर समाधान : पंजाब के लिए संभावनाएं : पंजाब में प्लास्टिक संकट से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की  आवश्यकता  है।  राज्य  सरकार को उद्योगों और छोटे व्यवसायों को किफायती विकल्प उपलब्ध कराने के लिए सबसिडी या कर छूट देनी चाहिए। उदाहरण के लिए लुधियाना में कुछ छोटे उद्योग बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग के लिए रिसर्च कर रहे हैं। ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए। गांवों में पंचायतों को जिम्मेदारी सौंप कर सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम किया जा सकता है। स्कूलों और स्थानीय सामुदायिक केंद्रों में जागरूकता अभियान चलाने से ग्रामीण इलाकों में प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी बढ़ाई जा सकती है। पंजाब हर साल 2 करोड़ टन पराली का उत्पादन करता है, जिसका बड़ा हिस्सा जलाया जाता है। पराली का उपयोग बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक और पैकेजिंग सामग्री बनाने में किया जा सकता है। पटियाला में एक पायलट परियोजना ने यह दिखाया है कि पराली से बने उत्पाद लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल हो सकते हैं।-एडवोकेट पारस शर्मा

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