आरक्षण में आरक्षण (वर्गीकरण) को लेकर विवाद उचित नहीं

Edited By ,Updated: 28 Aug, 2024 05:30 AM

dispute over reservation classification in reservation is not appropriate

देश की स्वतंत्रता के समय हर जाति-समुदाय और यहां तक कि राज घराने भी अपनी हिस्सेदारी को लेकर चिंतित थे। इसी मुद्दे को लेकर गोल मेज कान्फ्रैंस हुई। उसी समय बाबा साहेब भीम राव अम्बेदकर ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए अलग आरक्षण की मांग रखी थी।

देश की स्वतंत्रता के समय हर जाति-समुदाय और यहां तक कि राज घराने भी अपनी हिस्सेदारी को लेकर चिंतित थे। इसी मुद्दे को लेकर गोल मेज कान्फ्रैंस हुई। उसी समय बाबा साहेब भीम राव अम्बेदकर ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए अलग आरक्षण की मांग रखी थी। इसी के अनुरूप अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को हिस्सेदारी के रूप में आरक्षण दिया गया परंतु इसका सही ढंग से वर्गीकरण न होने के कारण समस्या लम्बे समय से ज्यों की त्यों है। वर्गीकरण न होने से देश में आरक्षण प्राप्त एक ही समुदाय में से कोई कमजोर रह गया और कोई ताकतवर बन गया। 

वर्ष 1964 में तत्कालीन संयुक्त पंजाब और वर्तमान हरियाणा के पूर्व विधायक अमर सिंह धानक ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू को वाल्मीकि/मजहबी समुदाय को अलग आरक्षण के लिए पत्र लिखा था। इसके उत्तर में पं. नेहरू ने लिखा था कि आपका कहना उचित है, परंतु ऐसा हो न सका। 1975 में ज्ञानी जैल सिंह के मुख्यमंत्री काल में पंजाब कैबिनेट ने फैसला लिया कि चूंकि पंजाब का वाल्मीकि/मजहबी समुदाय आरक्षण का लाभ लेने में पीछे रह गया है, इसलिए इन्हें इनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण में अलग से हिस्सा दिया जाए। तब यह आंकड़ा सामने आया था कि पंजाब के दलितों की जनसंख्या का आधा हिस्सा वाल्मीकि/मजहबी समाज है। अत: 25 प्रतिशत आरक्षण में आरक्षण देते हुए इसमें से आधा हिस्सा करके इनके लिए साढ़े 12 प्रतिशत कोटा रखा गया, परंतु किन्हीं कारणों से एक वर्ष बाद यह फैसला लागू हुआ। 

वर्ष 2006 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी जिस पर समूचे उत्तर भारत के वाल्मीकि/मजहबी समाज में रोष फैल गया और 4 सितम्बर, 2006 को पंजाब बंद की काल दी गई। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने असैम्बली में बिल लाकर पंजाब कैबिनेट के इस फैसले को कानून का रूप दिया परंतु इस कानून को दोबारा चुनौती दे दी गई। इसी मुद्दे को लेकर यह लड़ाई 2010 में सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 2022 में शीर्ष अदालत ने वर्गीकरण के पक्ष में फैसला सुनाते हुए यह सुझाव दिया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ के समक्ष भी ले जाया जाए। अंतत: 1 अगस्त, 2024 को मुख्य न्यायाधीश श्री वाई.बी. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 सदस्यीय पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण कोटा में कोटा देकर इसका वर्गीकरण किया जा सकता है। भाजपा विधायक किरोड़ी लाल मीणा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि,‘‘सबको लाभ मिलना चाहिए। मेरे घर के सामने मेरा ही एक दूसरा आदिवासी भाई पत्थर तोड़ रहा है।’’ 

सुप्रीम कोर्ट के उक्त  फैसले को लेकर कुछ अगड़े दलित संगठनों तथा राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताते हुए इसे एस.सी./एस.टी. अधिकारों का हनन बताया और इसके विरुद्ध भारत बंद की काल दी गई जो सफल नहीं हुई। इसका कारण रहा दलित भाईचारे में आपसी दूरी जो किसी भी देश और समाज के लिए ठीक नहीं है। इससे केवल सामाजिक दूरी ही नहीं बढ़ती बल्कि इससे देश के विकास और युवाओं की सोच पर भी प्रभाव पड़ता है। ‘रामायण’ के रचयिता भगवान वाल्मीकि के अनुयायी तथा श्री राम के भक्त इस वाल्मीकि समुदाय के सदस्य मुख्यत: सफाई के पेशे से जुड़े हुए हैं जिन्होंने हर तरह की कठिन परिस्थितियों में अपने प्राण जोखिम में डाल कर अपना कत्र्तव्य निभाया है। इसीलिए पहले ज्ञानी जैल सिंह, फिर कैप्टन अमरेंद्र सिंह के बाद स. प्रकाश सिंह बादल ने अलग आरक्षण को जारी रखा।-दर्शन ‘रत्न’ रावण 

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