Edited By ,Updated: 01 Jul, 2024 05:34 AM
जन्म से लेकर उम्र के आखिरी पड़ाव तक चिकित्सक ही इंसान के रूप में वो भगवान होता है जो बार-बार बहुमूल्य जीवन को बचाता है। भगवान बस एक बार खूबसूरत जिंदगी देता है। लेकिन उसे तमाम अशक्तता और बीमारियों से छुटकारा देकर सुंदर डाक्टर ही बनाता है।
जन्म से लेकर उम्र के आखिरी पड़ाव तक चिकित्सक ही इंसान के रूप में वो भगवान होता है जो बार-बार बहुमूल्य जीवन को बचाता है। भगवान बस एक बार खूबसूरत जिंदगी देता है। लेकिन उसे तमाम अशक्तता और बीमारियों से छुटकारा देकर सुंदर डाक्टर ही बनाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो भगवान का दूसरा रूप यदि इस धरती पर कोई है तो वह डाक्टर ही है। विश्व में न जाने ऐसे कितने उदाहरण मिल जाएंगे जब धरती के इस भगवान ने एक से एक वह काम किए जिसे देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।
आज हमें शरीर में कोई व्याधि या रुग्णता दिखती है तो सीधे डाक्टर ही याद आते हैं। दवा और दुआ का यही अनोखा संगम डाक्टर को धरती का भगवान बनाता है। शायद इसीलिए चाहे आम हो या खास हर कोई डाक्टर को धरती का साक्षात भगवान कहते हैं। भारत में तो इनका महत्व वैद्य के रूप में चिर काल से है। हमारे अनेकों धार्मिक ग्रन्थों में इस बात का वर्णन भी है। इन्हीं समर्पण और त्याग को याद करते हुए 1 जुलाई का दिन भारत में ‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस’ यानी ‘डॉक्टर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है। देश के प्रख्यात चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी भारत रत्न डा. बिधान चन्द्र रॉय की याद में मनाने की परंपरा वर्ष 1991 से 1 जुलाई को शुरू हुई। इसी दिन इस महान विभूति का जन्मदिन और पुण्य तिथि दोनों हैं। इसके पीछे श्रेष्ठ और नेक मकसद यह भी कि सभी चिकित्सक अपनी जिम्मेदारियों को समझें और लोगों के स्वास्थ्य से संबंधित दुख, तकलीफ और रोगों के प्रति सजग रहें।
1 जुलाई, 1882 को जन्मे बिधान चन्द्र रॉय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भी अहम सिपाही थे। वह 14 साल तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी रहे। राज्य के स्वास्थ्य सेवा ढांचे और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।कई अस्पताल, मैडीकल कॉलेज की स्थापना के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में महत्वपूर्ण बदलावों के समर्थन के साथ सभी तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने के प्रबल पक्षधर रहे। स्वतंत्रता के बाद इन्होंने सारा जीवन चिकित्सा सेवा को समर्पित कर दिया। पश्चिम बंगाल में अपने मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान कई अहम विकास कार्य किए। उनके अथक प्रयासों और समाज कल्याण कार्यों के लिए वर्ष 1961 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। 1 जुलाई, 1962 को उनका निधन हुआ।
डा. रॉय के प्रति सम्मान और जनसामान्य में चिकित्सकों के विश्वास की डोर को बनाए रखने और बढ़ाने के उद्देश्य से भरे इस दिवस को मनाने के पीछे उनकी सच्ची याद के साथ चिकित्सकीय पेशे की पवित्रता की निरंतर याद दिलाना भी है। बढ़ती जनसंख्या और प्रतिस्पर्धा के नए दौर में सबकी चिकित्सा और निरोगी काया अपरिहार्य है। यह एक ऐसा व्यवसाय है, जिस पर लोग विश्वास करते हैं। बस यही बनाए रखने और चिकित्सकों को भी भान कराने की खातिर दुनिया भर में ‘डॉक्टर्स डे’ को अलग-अलग दिनों में मनाए जाने की परंपरा है। यह दिन चिकित्सकों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें अपनी चिकित्सकीय शिक्षा, प्रशिक्षण और शपथ को याद करने के साथ ही जितना किया उससे भी श्रेष्ठ करने की प्रेरणा देता है।
निश्चित रूप से चिकित्सक जब अपने चिकित्सकीय जीवन की शुरूआत करते हैं तो उनके मन में नैतिकता और जरूरतमंदों की सहायता का एक जज्बा होता है। यही मिशन भी है। इस पवित्र व्यवसाय से जुड़े कई लोग इतनी नेक मंशा से आने के बाद भी पथ भ्रष्ट होकर अनैतिकता की राह पर निकल पड़ते हैं। लेकिन यह दिन चिकित्सकों को बार-बार याद दिलाता है कि वो अपने भीतर झांके। अपनी जिम्मेदारियों और समाज की उम्मीदों को समझें। यह भी समझें कि उनके लिए पैसा भगवान नहीं है बल्कि वह चिकित्सक के रूप में समाज के भगवान हैं। भगवान किसी से कुछ लेते नहीं बल्कि जितना भी बन पड़ता है, देते ही हैं। बस इसी भाव को जगाने का असल उद्देश्य ही चिकित्सक दिवस है जो डा.बिधान रॉय में कूट-कूट कर भरा था।
विडंबना देखिए चिकित्सकीय पेशा भी प्रतिस्पर्धी हो गया है। नीट जैसी परीक्षाओं में पैसे देकर पास होने की कोशिशों का अभी सामने आया जुगाड़ पीड़ादायक है। भला ऐसे लोग इस पवित्र पेशे के साथ कैसे न्याय कर पाएंगे? ऐसे लोगों का बैक डोर से घुसना चिंताजनक है। यकीनन बढ़ता भ्रष्टाचार और नैतिक मूल्यों में आई गिरावट के कारण ही मान, सम्मान कमतर हुआ है। जिस चिकित्सक का दर्जा भगवान के तुल्य हो वह पैसे में लिप्त हो जाए तो कतई न्याय संगत नहीं कहलाता। वहीं अब तो नई तकनीक, उद्योग और पूंजीवाद के आगोश में जकड़ा चिकित्सकीय व्यवसाय कार्पोरेट श्रेणी में ढल कर आम आदमी की पहुंच से दूर होता जा रहा है। बड़े पूंजीनिवेश और महंगे इलाज ने चिकित्सक और मरीज के मानवीय संबंधों को काफी कमजोर किया है। बावजूद इन सबके अब भी हर कहीं वह भगवान मिल ही जाते हैं जो सच्चे और अच्छे सेवक होते हैं। लेकिन इस सच्चाई को भी मानना होगा कि ग्रामीण चिकित्सा व्यवस्था बद से बदतर है। कोई भी चिकित्सक उन गांवों में पदस्थ होना नहीं चाहता जहां देश की आबादी का बड़ा हिस्सा रहता है।
यकीनन यह पेशा कुलीन है लेकिन सेवा मलीन की भी करनी होती है। बस इसी लक्ष्य और शपथ के लिए हर साल भारत में 1 जुलाई को भारत रत्न डा. बिधान रॉय को याद करते हुए चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। निष्काम कर्मयोगी डा. बिधान रॉय को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी जब चिकित्सक रुग्ण, नि:शक्त इंसान के लिए भगवान बन कर उस योद्धा-सा काम करें जिनका उद्देश्य केवल लक्ष्य को ही ध्यान रखना है। कितना अच्छा होता कि चिकित्सकीय पेशा भी अपने असली उद्देश्य पर एकाग्र हो मानव के लिए साक्षात भगवान ही बना रहता।-ऋतुपर्ण दवे