Edited By ,Updated: 18 Oct, 2024 04:55 AM
मोदी सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ के अपने सपने को साकार करना चाहती है। भारत में भविष्य के लोकसभा चुनाव पूरे देश में राज्य विधानसभा चुनावों के साथ-साथ होंगे। फिर भी, जब महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और छत्तीसगढ़ में 4 राज्य विधानसभाओं के चुनाव की...
मोदी सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ के अपने सपने को साकार करना चाहती है। भारत में भविष्य के लोकसभा चुनाव पूरे देश में राज्य विधानसभा चुनावों के साथ-साथ होंगे। फिर भी, जब महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और छत्तीसगढ़ में 4 राज्य विधानसभाओं के चुनाव की योजना बनाई गई, तो चुनाव आयोग इन 4 को भी एक साथ नहीं करा सका। इसने जम्मू और कश्मीर और हरियाणा के चुनाव पहले कराए और महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ को अगले महीने के लिए टाल दिया!
मेरे राज्य में चुनाव की तारीखों की घोषणा 15 अक्तूूबर की गई , ठीक उसी समय जब समय समाप्त हो रहा था। भाजपा के देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व में महायुति सरकार ने बड़े-बड़े वादे करके राज्य के खजाने को खाली कर दिया है, जिन्हें पूरा करना असंभव या कम से कम मुश्किल होगा। इस बीच राज्य की राजधानी मुंबई और उसके आसपास अजीबो-गरीब चीजें हो रही हैं। एक पूर्व पुलिस आयुक्त अनामी रॉय द्वारा निर्वासित किए गए ‘एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट’ की घटना अचानक फिर से सामने आई है। संजय शिंदे नामक एक महत्वाकांक्षी विशेषज्ञ, जिसने प्रदीप शर्मा नामक एक पुराने समय के अनुयायी के रूप में शुरूआत की थी, को उसके ‘आरामदायक’ क्षेत्र से बाहर निकाला गया और एक बाल-अपराधी को जेल से ठाणे कमिश्नरेट के अपराध शाखा कार्यालय तक ले जाने का काम सौंपा गया।
आरोपी को ले जा रहे पुलिस वाहन में हुई पुलिस मुठभेड़ ने इंस्पैक्टर शिंदे की ‘मुठभेड़ विशेषज्ञ’ बनने की इच्छा को फिर से जगा दिया। इसने उपमुख्यमंत्री की एक सख्त प्रशासक के रूप में साख को भी फिर से स्थापित किया क्योंकि अगले ही दिन ठाणे और मुंबई में फड़णवीस के पोस्टर हाथ में रिवॉल्वर या पिस्तौल लिए हुए दिखाई दिए! यह महायुति गृह मंत्री की ताकत और अजेयता के आभामंडल में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए था। मध्यम वर्ग के नागरिक विशेष रूप से तब खुश होते हैं जब उन्हें लगता है कि त्वरित न्याय दिया गया है। उन्हें यह एहसास नहीं है कि इससे कानून लागू करने वाली एजैंसियों में भी अपराध बढ़ता है और इसके सदस्यों को कानून तोडऩे के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। फिर यह बीमारी अपराधियों के बीच फैलती है क्योंकि दोनों एक साथ रहते हैं।
कांग्रेस के एक पुराने नेता की हत्या ने मुंबई शहर के राजनीतिक वर्ग को झकझोर कर रख दिया है, जो हाल ही में एन.सी.पी. (राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी) के अजीत-पवार गुट में शामिल हो गए थे, जो कि भाजपा से जुड़ा एक गुट है। हत्या के शिकार हुए व्यक्ति ‘बाबा’ सिद्दीकी की शनिवार शाम को उनके अपने शिकारगाह बांद्रा में गोली मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने 2 संदिग्धों को हिरासत में लिया है, जिनमें से एक हरियाणा और दूसरा यू.पी. का रहने वाला है। बताया जाता है कि वे लॉरैंस बिश्नोई गिरोह से जुड़े हैं, जिसकी उत्पत्ति पंजाब में हुई थी और जो पहली बार देश के ध्यान में तब आया जब इस गिरोह पर पंजाब के मानसा जिले में अपने ही गांव में एक लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या का आरोप लगा। उनके निशाने पर अभिनेता सलमान खान थे। राजनेता सिद्दीकी सलमान के बांद्रा स्थित घर में नियमित रूप से आते-जाते थे। कुछ लोगों का कहना है कि लारैंस द्वारा सिद्दीकी को निशाना बनाने का यह भी एक कारण हो सकता है।
कम कर्मचारियों वाले पुलिस बल को अपराध को रोकने और उसका पता लगाने तथा सड़कों पर व्यवस्था बनाए रखने की अपनी निर्धारित भूमिका निभाने में काफी परेशानी होगी। उनकी ङ्क्षचताओं को और बढ़ाने के लिए पुलिस को मृत राजनेता का राजकीय अंतिम संस्कार करने का आदेश दिया गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिद्दीकी बांद्रा की झुग्गियों में मुस्लिम मतदाताओं के बीच लोकप्रिय थे। फिर भी, व्यक्तिगत रूप से मुझे यकीन नहीं है कि बाबा सिद्दीकी भी अपने सह-धर्मियों को भाजपा द्वारा संचालित महायुति में शामिल होने के लिए राजी कर पातेे। संदिग्ध मवेशी व्यापारियों और गोमांस खाने वालों की नियमित रूप से हत्या और हिंदू लड़कियों से प्यार करने वाले मुस्लिम युवकों का पीछा करने(लव जिहाद) ने भाजपा के खिलाफ लगभग पूरे मुस्लिम वोट को एकजुट कर दिया है।
राज्य की विधानसभा के चुनाव करीब आने वाले हैं। विपक्षी एम.वी.ए. (महा विकास आघाड़ी) कुछ महीने पहले आगे थी। महायुति की ‘लाडकी बहन’ योजना, जिसके तहत कई गरीब महिलाओं को इस महीने उनके बैंक खातों में 6000 रुपए की 4 महीने की एकमुश्त राशि मिली है, साथ ही वादा किया गया है कि अगर वे महायुति को वोट देंगी तो यह राशि दोगुनी हो जाएगी, ने सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में माहौल बदल दिया है। पहले जो अंतर था, वह अब खत्म हो गया है। एक आखिरी सलाह। 23 नवम्बर को एग्जिट पोल देखने की जहमत न उठाएं। भारत के मतदाताओं ने पोल करने वालों को धोखा देना सीख लिया है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)