Edited By ,Updated: 25 Jun, 2024 05:14 AM
ई.वी.एम. पर विवाद थमते नहीं दिखते। दुनिया के बड़े अमीर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ के मालिक एलन मस्क ने अब इसे अंतर्राष्ट्रीय बना दिया है। मस्क ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि इनके इंसानों और...
ई.वी.एम. पर विवाद थमते नहीं दिखते। दुनिया के बड़े अमीर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ के मालिक एलन मस्क ने अब इसे अंतर्राष्ट्रीय बना दिया है। मस्क ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि इनके इंसानों और आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस यानी ए.आई. द्वारा हैक किए जा सकने का खतरा है। हालांकि यह खतरा कम है, लेकिन फिर भी बहुत बड़ा है। दरअसल अमरीका में इसी साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं, जिसमें वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुख्य मुकाबले के आसार हैं। मस्क ने यह टिप्पणी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर की एक पोस्ट को रिट्वीट करते हुए लिखी।
कैनेडी ने अपने पोस्ट में प्यूर्टो रिको के चुनाव में ई.वी.एम. से जुड़ी धांधलियों के बारे में लिखा, ‘प्यूर्टो रिको के प्राइमरी इलैक्शन में ई.वी.एम. से वोटिंग में कई अनियमितताएं सामने आईं। सौभाग्य से पेपर ट्रेल था, इसलिए उन्हें पहचान कर वोटों की गिनती को सही किया गया। सोचिए, जिन क्षेत्रों में पेपर ट्रेल नहीं हैं, वहां क्या होता होगा। अमरीकी नागरिकों के लिए जानना आवश्यक है कि उनके हर वोट की गिनती की गई है और उनके चुनावों में सेंध नहीं लगाई जा सकती। चुनावों में इलैक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप से बचने के लिए पेपर बैलेट पर लौटना चाहिए।’
कैनेडी की पोस्ट और उसे रिट्वीट करते हुए मस्क द्वारा लिखी गई पोस्ट का संदर्भ अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव से है, लेकिन भारत में भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व आई.टी. मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मस्क की इस टिप्पणी कि ‘ऐसी कोई डिजिटल डिवाइस नहीं बन सकती, जो हैक या टैंपर न की जा सके’, को चुनौती देते हुए भारत की ई.वी.एम. पर उन्हें ट्यूशन देने की बात तक कह दी। मस्क की जवाबी संक्षिप्त टिप्पणी आई कि ‘कुछ भी हैक किया जा सकता है’, तो चंद्रशेखर के बोल बदल गए, ‘हालांकि आप तकनीकी रूप से सही हैं, कुछ भी संभव है, मगर कागजी मतपत्रों की तुलना में ई.वी.एम. एक विश्वसनीय मतदान पद्धति बनी हुई है।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मस्क की पोस्ट को रिट्वीट करते हुए टिप्पणी की कि ‘भारत में ई.वी.एम. ब्लैक बॉक्स की तरह है। किसी को भी इसकी जांच की अनुमति नहीं है। हमारी चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को ले कर गंभीर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं। जब संस्थानों में जवाबदेही की कमी हो जाती है, तो लोकतंत्र एक दिखावा बन जाता है और वह धोखाधड़ी का शिकार हो जाता है।’ मस्क की टिप्पणी के बाद ई.वी.एम. पर भारत में विवाद बढऩे की आशंका इसलिए भी है, क्योंकि 2009 से ही उनकी विश्वसनीयता पर विपक्ष सवाल उठाता रहा है। 2009 में जब केंद्र में कांग्रेसनीत यू.पी.ए. सरकार थी, तब भाजपा नेता जी.वी.एल. नरसिम्हा ने ई.वी.एम. की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए पुस्तक लिखी थी, जिसकी भूमिका लाल कृष्ण अडवानी ने लिखी थी।
अडवानी तब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। मामला अदालत तक भी गया था। 2014 में केंद्र की सत्ता मिल जाने के बाद भाजपा के लिए ई.वी.एम. संदेह मुक्त हो गई और विपक्ष में पहुंच गए दलों को उसमें खामियां नजर आने लगीं। मार्च, 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए तो 13 दलों ने परिणामों पर सवाल उठाया। चुनाव आयोग से शिकायत भी की गई, लेकिन 2018 के अंत में हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता मिल गई तो ई.वी.एम. पर विपक्ष मौन हो गया।
मामला चुनाव प्रक्रिया में जनता के विश्वास से जुड़ा है, इसलिए उसे और अधिक पारदर्शी एवं विश्वसनीय बनाने पर सर्वोच्च अदालत में सुनवाई आगे भी होगी। अक्सर पूछा जाता है कि जब मोबाइल-कम्प्यूटर आदि उपकरण से छेड़छाड़ संभव है तो ई.वी.एम. से क्यों नहीं? चुनाव आयोग इस स्वाभाविक सवाल का जवाब तकनीकी प्रक्रिया समेत दे चुका है, पर विपक्ष का विश्वास हासिल नहीं कर पाया। छेड़छाड़ को साबित करने के लिए आयोग ने राजनीतिक दलों को शर्तों के साथ आमंत्रित भी किया था, लेकिन कोई दल नहीं पहुंचा। तर्क यह भी है कि जर्मनी आदि कुछ विकसित देश ई.वी.एम. पर उठे सवालों के बाद बैलेट पेपर से मतदान पर वापस लौट गए, लेकिन जवाबी तर्क होता है कि दो दर्जन देशों में किसी-न-किसी रूप में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम से चुनाव होते हैं। इनमें विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र अमरीका से लेकर एस्टोनिया जैसा छोटा देश शामिल है।
हां, अमरीका में कुछ राज्य मतदान के लिए वोटिंग मशीन इस्तेमाल करते हैं तो कुछ मतपत्र। अब जबकि अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में ही ई.वी.एम. की विश्वसनीयता पर सवालों के बीच बैलेट पेपर से मतदान की मांग उठी है तो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में भी उसकी गूंज स्वाभाविक है। वी.वी.पैट के शत-प्रतिशत मिलान से अगर संदेह का समाधान होता है तो उस दिशा में भी सोचा जाना चाहिए। चुनाव कोई टी-20 क्रिकेट नहीं, लोकतंत्र की प्राणवायु है। संदेह मुक्त, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना, उनके परिणाम जल्द घोषित करने से कहीं ज्यादा जरूरी है।-राज कुमार सिंह