रेलवे विनिर्माण क्षेत्र में भारत की वजह से होगा चीन का पत्ता साफ

Edited By ,Updated: 29 Apr, 2022 04:15 PM

due to india in the railway manufacturing sector china s card will be clear

अब टाटा समूह कूद पड़ा है रेल के डिब्बे बनाने के लिए। अर्बन मास रैपिड ट्रांसपोर्ट, जिसमें मैट्रो रेलवे सिस्टम भी शामिल है, के लिए टाटा ने ''राइट्स'' यानी रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

अब टाटा समूह कूद पड़ा है रेल के डिब्बे बनाने के लिए। अर्बन मास रैपिड ट्रांसपोर्ट, जिसमें मैट्रो रेलवे सिस्टम भी शामिल है, के लिए टाटा ने 'राइट्स' यानी रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। राइट्स भारतीय रेलवे की निर्यात शाखा है। इसके बाद अब टाटा अपनी सेवाएं रेलवे रोलिंग स्टॉक निर्यात करने के साथ आधारभूत संरचना के निर्माण में भी देने जा रहा है। इस समझौते के बाद | भारतीय रेलवे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बड़े स्तर पर अपनी भूमिका निभाने जा रही है।

 

अभी तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन की सी.आर.आर.सी.ए. एल्सटॉर्म और दक्षिण कोरिया की हुंडई जैसे कुछ बड़े खिलाड़ियों का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दबदबा बना हुआ है। पूरी दुनिया के रेलवे कोच बनाने के काम में इन चंद कंपनियों का सिक्का चलता है, इस क्षेत्र में इनका एकाधिकार है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी तक किसी विकासशील देश की किसी कंपनी ने इस क्षेत्र में एंट्री नहीं की है। जो छोटी-मोटी कंपनियां हैं वे अपने देश के देसी बाजारों तक ही सीमीति है। उनके पास अंतर्रारष्ट्रीय बाजार में उतरने के लिए संसाधन नहीं हैं। ऐस निर्माताओं में भारतीय रेलवे का नाम भी शामिल है।

 

भारत में रेलवे के कोच इंजन बनते हैं लेकिन देसी खपत इतनी अधिक है कि भारतीय रेलवे इसे पूरा करने में ही जुटी रहती है। लेकिन जल्दी ही अब हवा की दिशा बदलने जा रही है। क्योंकि टाटा अब इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर उतरने जा रहा है। वहीं हाल के वर्षों में चीन की रेलवे कंपनियों से टेंडर जीतने के बाद भारतीय रेलवे का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के प्रति रुझान और आत्मविश्वास दोनों बढ़ा है। अभी हाल ही में अफ्रीकी देश मोजाम्बीक भारतीय रेलवे ने कि ट्रांसपोर्ट, जिसमें से मिला रेलवे इंजन और कोच बनाने का ऑर्डर, द्वारा बनाए गए रेलवे के लिए टाटा ने इसके साथ ही श्रीलंका से मिला एस.डी.एम.यू. का साज-सज्जा और दूस एंड इकोनॉमिक ऑर्डर और 160 कोच निर्यात करने का ऑर्डर भी मिला है। इन सारे टैंडरों में चीन की सी. आर. आर. सी. कंपनी भी शामिल थी, जिसे हराकर भारत ने ये ऑर्डर हासिल किए हैं।

 

राइट्स ने टाटा स्टील के साथ रोलिंग स्टाक्स के निर्यात और निर्यात बाजार को ध्यान में रखते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इसमें राइट्स और टाटा दोनों मिलकर रेलवे कोच के साथ-साथ उसके रखरखाव तकनीकी सहयोग और आधारभूत ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में काम करेंगे। न सिर्फ घरेलू क्षेत्र में, बल्कि विदेशों में भी ये रेलवे और मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बनाने, उसे उन्नत करने और रख-रखाव के क्षेत्र में काम करेगी। 

 

इस सांझेदारी में राइट्स टाटा के साथ अपने अनुभव, डिजाइन, मार्केटिंग, सपोर्ट सांझा करेगी। इसके बाद टाटा सभी परियोजनाओं के क्षेत्र में आकार देने से लेकर उनके निर्माण के क्षेत्र में देसी और विदेशी ग्राहकों के लिए काम करने वाला है। राइट्स अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत के पास इस क्षेत्र में अब तक जितना भी अनुभव की दिशा बदलने है वह टाटा के साथ बांटेगा। पिछले कुछ वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय रेलवे के हाथ से कुछ  प्रोजेक्ट निकल गए, क्योंकि एक तरफ जहां भारतीय रेलवे के दाम  प्रतिस्पर्धी नहीं थे तो वहीं दूसरी तरफ जिन कोचों का निर्माण भारतीय रेलवे ने किया था वह विदेशी कंपनियों द्वारा बनाए गए रेलवे कोच के सामने डिजाइन, साज-सज्जा और दूसरी सुविधाओं में पिछड़ गए होगा। इससे सबक लेकर भारतीय रेलवे ने प्राइवेट कंपनी के साथ हाथ मिलाया है, ताकि अनुभव और गुणवत्ता का अच्छा मेल हो सके और यह देसी के साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपनी साख जमा सके।

 

टाटा का नाम और उसकी साख देसी-विदेशी बाजारों में बहुत अच्छी है, शायद यही वजह है कि बड़े रेलवे निर्माताओं के सामने टाटा जैसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय नाम को सामने रखने की जरूरत अधिक महसूस हो रही थी। इस समय आने वाले कुछ वर्षों के लिए भारतीय रोलिंग स्टॉक्स की फैक्टरियों के पास कुछ ऑर्डर मौजूद हैं। जिनके कारण ही संभवत राइट्स अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धी दामों पर टैंडर नहीं लेती। शायद इसी वजह से भारत सरकार ने योजना बनाई कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के साथ देसी बाजारों में भी प्राइवेट कंपनियों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे वह प्रतिस्पर्धी दामों पर टैंडर हासिल कर सकें। इससे अंतराष्ट्रीय ग्राहकों की मांग को अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत पर पूरा किया जा सकेगा।


राइट्स के साथ हुए इस बड़े समझौते के बाद जल्दी ही टाटा अपनी रेलवे यूनिट बनाकर सीधे तौर पर रेलवे विनिर्माण के क्षेत्र में उतरने वाली है, इस बारे में टाटा समूह जल्दी ही आधिकारिक बयान भी जारी करने वाला है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि जल्दी ही टाटा की फैक्टरियों से एल्यूमीनियम के रेल कोच निकलते हुए देखे जा सकेंगे। इस क्षेत्र में जल्दी ही चीन का दबदबा खत्म होगा क्योंकि टाटा जैसी कंपनी दुनिया भर में अपनी गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धी दामों के लिए जानी जाती है। इसका एक दूसरा कारण यह है कि चीन में। विनिर्माण की लागत में बहुत तेजी से बढ़ौतरी हुई है, जो इतनी है कि चीन की छोटी-बड़ी कंपनियों ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का रुख किया, जिनमें वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार और लाओस जैसे देश शामिल हैं। लेकिन टाटा की गुणवत्ता, साख और प्रतिस्पर्धी दाम के सामने चीन की सी.आर.आर.सी. का टिकना संभव नहीं दिखता।

 

रेलवे कोच निर्माण, रख-रखाव, आधारभूत संरचना के क्षेत्र में टाटा और राइट्स के उतरने से यह बात साफ है कि अब चीन का पत्ता इस क्षेत्र में कटने भारतीय रोलिंग वाला है। वैसे भी चीन कोरोना लॉकडाऊन के चलते क्टरियों के पास सामान्य उत्पादों की आपूर्ति भी नहीं कर पा रहा, जिससे उसके नियमित अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों ने दूसरे बाजार तलाश लिए हैं। अब रही-सही कसर टाटा के रेलवे क्षेत्र में उतरने से पूरी हो जाएगी।

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