Edited By ,Updated: 25 Feb, 2025 05:38 AM
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केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि धर्म और राजनीति में नफरती भाषणों के खिलाफ सख्त कानूनों की जरूरत है। हाईकोर्ट ने संसद और विधि आयोग से इस बारे में विचार करने को कहा है। नए आई.टी. इंटरमीडियरी नियम और 3 नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद सरकार ने पुख्ता...
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि धर्म और राजनीति में नफरती भाषणों के खिलाफ सख्त कानूनों की जरूरत है। हाईकोर्ट ने संसद और विधि आयोग से इस बारे में विचार करने को कहा है। नए आई.टी. इंटरमीडियरी नियम और 3 नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद सरकार ने पुख्ता कानूनी व्यवस्था का दावा किया था लेकिन अब रणवीर इलाहाबादिया मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में केंद्र सरकार नए कानून बनाने की बात करने लगी है।
दिलचस्प बात यह है कि इलाहाबादिया को जमानत देने वाले लिखित आदेश में सुप्रीमकोर्ट ने नए कानून के बारे में केंद्र सरकार से कोई जवाब नहीं मांगा है। इस विवाद से यह भी साफ है कि सोशल मीडिया की अभिव्यक्ति के मामले में कई राज्यों में एफ.आई.आर. दर्ज करने का बढ़ता चलन गलत है। इससे पुलिस और अदालतों पर बोझ बढ़ता है। रणवीर की कॉमेडी को उनके वकील के साथ जजों ने भी अश्लील और आपत्तिजनक माना। फूहड़ता और अश्लीलता के कारोबार से करोड़ों कमाने वालों को अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में वी.आई.पी. जस्टिस मिलने से आम जनता का कानून के शासन पर भरोसा कमजोर होता है।
अमरीकी टैक कम्पनियों पर टैक्स : अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा है कि भारत, कनाडा, फ्रांस और इंगलैंड जैसे देश गूगल और मेटा जैसी टैक कम्पनियों से भारी टैक्स वसूलते हैं। ट्रम्प ने धमकी देते हुए कहा है कि भारत जैसे देशों पर जवाबी डिजिटल टैक्स लगेगा। इस मामले में दिलचस्प बात यह है कि अमरीकी टैक कम्पनियों को भारत के कानून और टैक्स के दायरे में लाने के लिए संघ के विचारक के.एन. गोविंदाचार्य की याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट ने अनेक आदेश पारित किए थे लेकिन पिछले 12 सालों से उन पर अमल नहीं हुआ। आई.टी. इंटरमीडियरी नियमों के अनुसार टैक कम्पनियों ने भारत में शिकायत निवारण का सही तंत्र भी नहीं बनाया जिसकी वजह से पुलिस और सुरक्षा एजैंसियों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश से सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली अमरीकी टैक कम्पनियां भारत के कानून को ठेंगे पर रखती हैं। आयकर कानून के अनुसार भारत में उनका स्थायी ऑफिस नहीं होने की वजह से अनेक तरह से टैक्स चोरी हो रही है। केबल टी.वी., कॉल सैंटर के रजिस्ट्रेशन के लिए भारत में कानून हैं तो फिर यू-ट्यूब जैसी अमरीकी कम्पनियों को भारत के कानून और टैक्स के दायरे में क्यों नहीं लाना चाहिए?
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में हुए हादसे के वीडियो को हटाने के लिए रेलवे मंत्रालय ने सोशल मीडिया कम्पनियों को निर्देश जारी किए हैं, जिन्हें कानूनी तौर पर गलत बताया जा रहा है। आई.टी. एक्ट की धारा-69-बी के तहत आपत्तिजनक कंटैंट और एप्स को ब्लॉक करने के लिए केंद्र सरकार के आई.टी. मंत्रालय को ही अधिकार हासिल है। इसलिए इलाहाबादिया के यू-ट्यूब से वीडियो हटाने के मामले में पुलिस मानवाधिकार आयोग और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सिर्फ सिफारिश करने का अधिकार है लेकिन आई.टी. मंत्रालय के तहत कोई प्रभावी नियामक नहीं होने की वजह से समस्या और विवाद बढ़ रहे हैं।
ब्रॉडकास्टिंग बिल : रणवीर और उनके वकील के साथ जजों ने भी कमैंट को गलत, अभद्र और अश्लील माना है, तो अब कुतर्कों के आधार पर उसका समर्थन कैसे किया जा सकता है? कुछ लोग अमीश देवगन और दूसरे पत्रकारों के मामले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत के आधार पर इलाहाबादिया की जमानत को तर्कसंगत बता रहे हैं लेकिन पत्रकारों और मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी को सुरक्षित रखना लोकतंत्र की बड़ी जरूरत है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार साइबर और इंटरनैट का विषय केंद्र सरकार के जबकि पुलिस राज्यों के अधीन है लेकिन एप्स, सोशल मीडिया और ओ.टी.टी. के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस के पास कोई अधिकार नहीं है।
रणवीर इलाहाबादिया मामले में अमरीकी कम्पनी यू-ट्यूब जैसे प्लेटफार्म की भूमिका को दरकिनार करके अश्लीलता के कारोबार पर रोक लगाना मुश्किल है इंफ्लुएंसर्स के मर्ज से वित्तीय जगत भी परेशान है लेकिन रिजर्व बैंक, सेबी और टैलीकॉम उद्योग के अनेक आग्रह के बावजूद ओ.टी.टी. के नियमन के लिए भारत में अभी तक कानून नहीं बना। गौरतलब है कि साल-2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आई.टी. एक्ट की धारा-66-ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। उसके बाद 10 सालों में सरकार नया कानूनी प्रावधान नहीं बना पाई है इसलिए अनेक राज्यों में पुलिस अधिकारी आई.टी. एक्ट की धारा-67 को गोल-मोल तरीके से एफ.आई.आर. में शामिल करके कानून का दुरुपयोग करते हैं।
अश्लीलता, पोर्नोग्राफी और गैर-कानूनी कंटैंट को रोकने के लिए प्रिंट और टी.वी. वाले नियम डिजिटल मीडिया में भी लागू होते हैं। केंद्र सरकार ने ओ.टी.टी. प्लेटफॉम्र्स के लिए जो एडवाइजरी जारी की है वह कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं है। इस मर्ज पर रोक लगाने के लिए डिजिटल इंडिया बिल की बात की जा रही है लेकिन उसका मसौदा सामने नहीं आया। संसदीय समिति ने कानून के मसौदे के बारे में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से राय मांगी है। मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता और नग्नता को रोकने के लिए कानून और प्रभावी रैगुलेटर की जरूरत है। उसकी बजाय प्रस्तावित ब्रॉडकासिं्टग बिल की आड़ में यू-ट्यूबर्स और मीडिया की आजादी बाधित करने का प्रयास पूरी तरह से गलत है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)