चुनाव आयोग की कचहरी और ‘लापता जैंटलमैन’

Edited By ,Updated: 05 Jun, 2024 05:28 AM

election commission s court and the  missing gentleman

नि:संदेह 2024 के लोकसभा चुनाव इतिहास में सबसे अधिक ध्रुवीकरण वाले रहे हैं।

नि:संदेह 2024 के लोकसभा चुनाव इतिहास में सबसे अधिक ध्रुवीकरण वाले रहे हैं। पारस्परिक अविश्वास और विरोध के अलावा इन चुनावों में धार्मिक आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा किया गया ताकि उन लोगों का धु्रवीकरण हो, जो मोदी या इंडिया गठबंधन के समर्थक हैं।  नि:संदेह प्रधानमंत्री ने धुंआधार चुनाव प्रचार किया और तीसरे कार्यकाल के लिए लोगों से मत मांगे और विपक्ष, जो बंटा हुआ और उदासीन था, उसने एकजुट होने की कोशिश की और भाजपा के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाया।  चुनाव प्रचार के दौरान विरोधियों के विरुद्ध अनेक अपशब्दों का प्रयोग किया गया और इस संबंध में अनेक उपदेश भी दिए गए।

इन चुनावों के दौरान देखने को मिला कि राजनीतिक बहस कभी इतनी नहीं गिरी। इसमें रूखापन देखने को मिला। यह विभाजनकारी, भड़काऊ रही है तथा राष्ट्र के समक्ष ज्वलंत महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में कोई बहस नहीं सुनाई दी- चाहे वे देश के नागरिकों की आवश्यकताएं हों, बेरोजगारी हो, स्वास्थ्य सुविधाएं हों, किसानों की समस्याए हों या बढ़ती खाद्यान्न महंगाई। इसकेचलते हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी दबाव में आई और कोई भी चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता की परवाह नहीं कर रहा था।

आज चुनाव एक दूसरे के विरुद्ध अपशब्दों का खेल बन गया है और लगता है मतदाताओं ने भी इसे स्वीकार कर दिया है। हालांकि निर्वाचन आयोग ने आधे-अधूरे मन से ही सही, सभी राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया, किंतु हमारे नेताओं का संख्या के खेल के प्रति प्रेम रहा है। वे हमेशा जीती हुई सीटों, मत प्रतिशत, मतदान, रैलियों की संख्या, उनके आकार के बारे में ङ्क्षचतित रहे हैं, किंतु गुणवत्ता के मामले में बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

विपक्षी दलों ने मतदाता सूची में गड़बड़ी, ई.वी.एम. की प्रभावशीलता, मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में हेराफेरी, देश के 150 जिला मैजिस्ट्रेटों को प्रभावित करने के प्रयास आदि के बारे में प्रश्न उठाने की कोई कसर नहीं छोड़ी, किंतु वे इस बारे में कोई भी ठोस प्रमाण नहीं रख पाए। इसके अलावा उम्मीदवारों और फार्म 17सी प्राप्त करने वालों की ओर से कोई शिकायत नहीं आई जो मतदान केन्द्रों पर डाले गए मतों का रिकार्ड बताते हैं।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने आयोग के विरुद्ध विभिन्न आरोपों पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि आरोप लगाने वाला व्यक्ति कचहरी में उपस्थित था किंतु कोई गवाह नहीं था। उन्होंने सोशल मीडिया पर निर्वाचन आयोग के बारे में मीम्स के बारे में भी टिप्पणी की, जिनमें निर्वाचन आयोग को ‘लापता जैंटलमैन’ कहा गया था क्योंकि वे चुनाव प्रचार के दौरान शीर्ष नेताओं के द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में अनुपस्थित सा दिखाई दिया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि वे और उनके दोनों सहयोगी हमेशा यहां उपस्थित थे। हमने लगभग 100 प्रैस नोट्स और सलाहें जारी कीं।

तथापि उन्होंने चुनावी ङ्क्षहसा के बारे में कुछ नहीं कहा और पश्चिम बंगाल में ङ्क्षहसा की घटनाओं के प्रति आंख मूंदी। तथापि आदर्श आचार संहिता के पालन को सुनिश्चित कराने के लिए निर्वाचन आयुक्त दलों के विरुद्ध कार्रवाई करने में सक्षम नहीं दिखाई दिया और इससे एक धारणा बनी कि तीनों निर्वाचन आयुक्तों ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की अनुमति दी और वे भाजपा और उसके नेताओं द्वारा ऐसे उल्लंघनों के मामले में उदासीन रहे हैं, विशेषकर नेताओं द्वारा हेट स्पीच के मामले में उन्होंने निंदा नहीं की।

इसके अलावा मतदान के बारे में आंकड़ों को जारी करने में विलंब करने के कारण भी उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है। विपक्षी नेता निर्वाचन आयोग को एक कागजी शेर कह रहे हैं और उनका कहना है कि निर्वाचन आयोग अपने कार्यकरण में पक्षपातपूर्ण रहा है और उसने निष्पक्षता से कार्य नहीं किया। हाल ही में निर्वाचन आयुक्त ने इस आधार पर ‘आप’ के आधिकारिक चुनाव प्रचार गीत पर प्रतिबंध लगाया, कि इसमें भाजपा और सरकारी एजैंसियों की छवि खराब की गई है। यदि यह मानदंड है तो क्या इसका तात्पर्य यह नहीं कि उसके द्वारा आलोचना और जवाबदेही में हस्तक्षेप किया गया है, जो लोकतंत्र की प्राण वायु है।

दूसरी ओर निर्वाचन आयोग ने तब आंखें मूंद लीं, जब भाजपा ने मुसलमानों को निशाना बनाते हुए अपना चुनाव प्रचार शुरू किया या जब उसने कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र के बारे में दुष्प्रचार किया। साथ ही जब मोदी ने यह आम धारणा पैदा करने का प्रयास किया कि संपत्ति के पुनॢवतरण के नाम पर लोगों के धन और महिलाओं के मंगलसूत्र को छीन लिया जाएगा और उन्हें घुसपैठियों या जिनके अधिक बच्चे हैं, उनमें बांट दिया जाएगा। निर्वाचन आयोग ने इस बारे में मोदी को नहीं अपितु भाजपा अध्यक्ष नड्डा को नोटिस भेजा। यह बताता है कि आयोग में कुछ समस्याएं हैं।

हालांकि संस्थान चारों ओर हो रहे पतन के चलते दबाव में है किंतु जमीनी स्तर पर लोकतंत्र कार्य कर रहा है और जीवंत है और कोई भी नेता चाहे वह कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो, वह इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि मतदाता उस पर पूरा भरोसा कर रहे हैं। प्रत्येक मत प्राप्त करने के लिए कठिन श्रम करना पड़ा। उसके लिए बड़े-बड़े वायदे करने पड़े और अपनी उपलब्धियां गिनानी पड़ीं। बुरी चीज यह है कि मतदाताओं को नि:शुल्क उपहारों और वायदों से भ्रमित किया गया।  

हालांकि चुनाव प्रतिस्पर्धा है और उसका सरोकार चुनाव प्रचार से है किंतु क्या नेताओं को लोगों के मन में भय पैदा करने और विपक्षियों की व्यक्तिगत छवि खराब करने के लिए इतने निचले स्तर तक गिरना चाहिए, ताकि वे मत प्राप्त कर सकें? मोदी के भाषणों में मुस्लिम विरोध देखने को मिला जबकि विपक्ष ने यह भय पैदा किया कि भाजपा संविधान में बदलाव करेगी और आरक्षण के लाभों को छीन लेगी। वस्तुत: इन बातों से वातावरण खराब हुआ और बहस और चर्चा की गरिमा कम हुई।  

मतदाताओं को भी अपने राजनेताओं से और अधिक अपेक्षा रखनी चाहिए और मतदान करने के बाद उंगली पर स्याही का निशान दिखाने से परे कुछ करना होगा। समय आ गया है कि हमारे राजनीतिक दल स्वयं में सुधार लाएं, अच्छे राजनेता सामने आएं, नए नियम बनाए जाएं और वे नीतियों और लोगों की समस्याओं के संबंध में चुनाव लड़ें, जिनका संबंध मतदाताओं से है और लोकतंत्र के आदर्शों का सम्मान करें। चुनावी प्रक्रिया की गरिमा एक लक्ष्मण रेखा है और इस लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए।

इसके द्वारा हुए नुकसान की भरपाई के लिए काफी समय, प्रयास और कुशलता की आवश्यकता होगी। समय आ गया है कि हमारे राजनेता इस बात को समझें। प्रधानमंत्री आएंगे और जाएंगे किंतु उनके शब्द हमेशा रहेंगे, जो युवाओं को प्रभावित करेंगे और उन्हें यह सिखाएंगे कि दूसरों की गरिमा का सम्मान किया जाए और इस संबंध में अगुवाई अगले प्रधानमंत्री को करनी चाहिए। -पूनम आई. कौशिश

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