केंद्रीय बजट में चुनावी राज्यों को नजरअंदाज किया गया

Edited By ,Updated: 25 Jul, 2024 05:46 AM

electoral states were ignored in the union budget

केंद्रीय बजट अनुमानों में 2024-25 के लिए भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण का चरम प्रमाण देखने को मिला। बिहार को बाढ़ शमन के लिए 11,500 करोड़ रुपए का आबंटन है जिसे लोकसभा में अपनी कम होती ताकत के बाद भाजपा को सरकार बनाने में मदद करने के लिए पुरस्कार के रूप में...

केंद्रीय बजट अनुमानों में 2024-25 के लिए भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण का चरम प्रमाण देखने को मिला। बिहार को बाढ़ शमन के लिए 11,500 करोड़ रुपए का आबंटन है जिसे लोकसभा में अपनी कम होती ताकत के बाद भाजपा को सरकार बनाने में मदद करने के लिए पुरस्कार के रूप में इसकी व्याख्या की जा रही है। जबकि हिमाचल और उत्तराखंड को जुलाई/अगस्त, 2023 में अभूतपूर्व तबाही का सामना करना पड़ा था, जिसमें क्रमश: 12,000 करोड़ रुपए और 4,000 करोड़ रुपए से अधिक नुकसान हुआ था, लेकिन बजट में इन आंकड़ों का उल्लेख नहीं किया गया है। 

बिहार को बजट में प्रमुखता मिली, लेकिन हिमाचल और पंजाब को नजरअंदाज किया गया। हिमाचल सरकार असमंजस में है क्योंकि 550 लोगों की जान चली गई और लाखों असहाय लोगों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार ने 650 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था, इसलिए केंद्रीय वित्त मंत्री से उदार विशेष पैकेज की उम्मीद थी, जिन्होंने राज्य को केवल वित्तीय सहायता के बारे में आश्वासन देना पसंद किया, लेकिन बजट का कोई आबंटन नहीं किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पंजाब को भी छोड़ दिया, जिसने 23 जिलों में से 21 में भारी बारिश और बाढ़ के कारण तबाही देखी और 1,680 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान झेला। लगभग 70 लोगों की जान चली गई और राज्य सरकार वित्तीय सहायता की मांग कर रही है, जिसे इस बजट में नजरअंदाज कर दिया गया है। 

कार्यान्वयन के मुद्दे : आलोचक योजना कार्यान्वयन में अक्षमताओं को भेदभाव के प्रमाण के रूप में इंगित करते हैं। 2024-25 के बजट में, जल जीवन मिशन (70,000 करोड़ रुपए) और कौशल विकास ( 25,000 करोड़ रुपए) के लिए महत्वपूर्ण धनराशि आबंटित की गई है। विपक्षी शासित राज्यों ने इन योजनाओं में देरी और अपर्याप्त क्रियान्वयन को लेकर चिंता जताई है। राज्यों के साथ भेदभाव : 2024-25 के केंद्रीय बजट में फंड आबंटन और वित्तीय सहायता के मामले में राज्यों के साथ भेदभाव को लेकर चिंता जताई है। इन चिंताओं को उजागर करने वाले आंकड़ों के  विवरण इस प्रकार हैं : 

पहला, राज्यों को धन का हस्तांतरण है। 2023-24 आबंटन 8.15 लाख करोड़ रुपए रहा। 2024-25 आबंटन  8.50 लाख करोड़ रुपए है। मुद्दा यह है कि हालांकि राज्यों को धन के हस्तांतरण में वृद्धि हुई है, लेकिन विकास दर राज्यों द्वारा सामना की जाने वाली बढ़ती मांगों और राजकोषीय दबावों के अनुरूप नहीं है। दूसरा, स्थानीय निकायों के लिए अनुदान। 2023-24 आबंटन 1.50 लाख करोड़ रुपए रहा। मुद्दा  यह है कि स्थानीय निकायों के लिए अनुदान में मामूली वृद्धि स्थानीय सरकारों की बढ़ती जिम्मेदारियों को देखते हुए अपर्याप्त है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में जिन्हें बुनियादी ढांचे और सेवाओं में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है। 

तीसरा, राज्य-विशिष्ट अनुदान। 2023-24 में आबंटन 1.20 लाख करोड़ रुपए रहा जो 2024-25 में आबंटन1.18 लाख करोड़ रुपए हुआ। मुद्दा यह रहा कि राज्य-विशिष्ट अनुदानों में मामूली कमी आई है, जो विशिष्ट क्षेत्रीय आवश्यकताओं और विकासात्मक परियोजनाओं को संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह कमी राज्यों की स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप विशिष्ट परियोजनाओं को निष्पादित करने की क्षमता में बाधा डाल सकती है। चौथा, क्षेत्रीय आबंटन और केंद्र प्रायोजित योजनाएं (सी.एस.एस.) ग्रामीण विकास  2023-24 में1.55 लाख करोड़ रुपए रहा जोकि 2024-25 में 1.52 लाख करोड़ रुपए हुआ।  

केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत ग्रामीण और शहरी विकास जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए आबंटन में कटौती से राज्यों की बुनियादी ढांचे, स्वच्छता, आवास और गरीबी उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने की क्षमता प्रभावित होती है। पांचवां, स्वास्थ्य और शिक्षा अनुदान। स्वास्थ्य क्षेत्र में आबंटन 2023-24 में 80,000 करोड़ रुपए रहा। 2024-25 में 82,000 करोड़ रुपए हो गया। मुद्दा यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में मामूली वृद्धि के बावजूद, बढ़ती जरूरतों को देखते हुए समग्र आबंटन अपर्याप्त है। संबंधित घटनाक्रम में, वित्त मंत्री ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड जैसे चुनाव वाले राज्यों को पूरी तरह से छोड़ दिया। हालांकि उनमें से 2 भाजपा शासित हैं।-के.एस. तोमर 
    

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