Edited By ,Updated: 21 Mar, 2025 05:44 AM

इस समय पंजाब में राजनीतिक तौर पर ठहराव-सा पैदा हो गया है। पंजाब में श्मशान-सी शांति है। कब विस्फोट हो जाए, पता नहीं चल रहा। शिरोमणि अकाली दल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पंजाब में क्या करवट लेंगे अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
इस समय पंजाब में राजनीतिक तौर पर ठहराव-सा पैदा हो गया है। पंजाब में श्मशान-सी शांति है। कब विस्फोट हो जाए, पता नहीं चल रहा। शिरोमणि अकाली दल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पंजाब में क्या करवट लेंगे अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। निहंग सिख होला-मोहल्ला में इन दोनों जत्थेबंदियों के विरुद्ध तलवारें लहरा रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल पंजाब में धड़ेबंदी में फंस गया है। एक गुट जत्थेदारों के हटाने वाला और दूसरा गुट उन्हें न हटाने में लग गया है।
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार जिसकी अगुवाई स. भगवंत सिंह मान कर रहे हैं लुढ़क रही है। उसे दिल्ली की हार सता रही है कि कहीं 2027 में विधानसभा चुनावों में हमारा हाल दिल्ली के चुनावों जैसा न हो जाए। आम आदमी पार्टी के वर्तमान हालात उसके बस में नहीं दिखाई देते। तीसरी शक्ति पंजाब में कांग्रेस पार्टी है उसे नरेंद्र मोदी फोबिया डरा रहा है। चौथी महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी है भारतीय जनता पार्टी जिस पर कांग्रेस के स. अमरेंद्र सिंह धड़े ने कब्जा कर लिया है। परन्तु दिल्ली में भाजपा सरकार पंजाब में अपने पत्ते नहीं खोल रही। बहुजन समाज पार्टी पंजाब की राजनीति में ‘इररैलिवैंट’ हो चुकी है। कम्युनिस्ट पंजाब में रहे नहीं, जो थोड़े-बहुत हैं, उनकी सुनवाई नहीं। अब आप समझ गए होंगे कि पंजाब में वर्तमान समय में सन्नाटा ही सन्नाटा है और यह सन्नाटा पंजाब के हितैषियों का डाला हुआ है जिन्होंने पंजाब को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।
पंजाब के वारिसों ने पंजाब को वह नुकसान पहुंचाया है कि उसकी भरपाई भविष्य में भी न हो सकेगी। पंजाब को 1947 के बंटवारे के बाद भी छोटे से छोटा करना, इसके चाहने वालों के रंग-ढंग बने रहे। कभी मास्टर तारा सिंह और जत्थेदार फतेह सिंह की आपसी कलह ने पंजाब को लघु से लघुतर बना दिया। तब की पंजाब जनसंघ पार्टी ने इसका विरोध किया था। इस संघर्ष में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने तुरुप का पत्ता चलाते हुए इस विशाल पंजाब को तीन हिस्सों में बांट कर 1966 में हरियाणा और हिमाचल को नए राज्य बनाकर ‘पंजाबी सूबे’ को अकालियों के हाथ सौंप दिया।पंजाब के हितचिंतक यहीं नहीं रुके, उन्होंने 1980 से 1992 के 12 वर्षों में आतंकवाद की वह आंधी चलाई कि सारा पंजाब लहूलुहान हो गया।
आतंकवादियों ने पंजाबियों के दिलों को दोफाड़ कर दिया। सभी राजनीतिक दलों के कद्दावर नेताओं को शहीद कर दिया। भला हो पंजाब के समझदार निवासियों का कि उन्होंने इस आंधी में भी अपना भाईचारा खत्म नहीं होने दिया। आतंकवादी कहते तो यह रहे कि उन्हें ‘खालिस्तान’ चाहिए परन्तु उन्होंने पंजाब को इतना जख्मी कर दिया कि उन जख्मों का दर्द आज तक पंजाबियों के दिलों को रुला रहा है। आतंकवाद के जख्म कभी नहीं भरे जाएंगे। मैंने निवेदन किया है कि पंजाब के तथाकथित चहेतों ने पंजाब को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। पंजाब में आज रहा क्या है? सिर्फ गेहूं और चावल की खेती।
किसान आंदोलन ने भी पंजाब की कमर तोड़ दी है। कहता किसान आंदोलन भी यही है कि वह किसान और पंजाब हितैषी है परन्तु पिछले कई वर्षों से चले आ रहे किसान आंदोलन को न तो केंद्र सरकार और न ही पंजाब की भगवंत मान सरकार ने किसानों की बात की है। परिणामस्वरूप पंजाब की खेती घाटे का सौदा बन गई है। मैं इस लेख में बार-बार दोहरा रहा हूं कि पंजाब के हित का ढिंढोरा पीटने वाले ही पंजाब के घातक बन कर सामने आए हैं। वाहेगुरु पंजाब का भला करे। तथाकथित पंजाब प्रेमियों ने ही पंजाब का ज्यादा नुकसान किया है। विदेशी आक्रमणकारियों ने तो पंजाब उजाडऩा ही था। वह तो उजाड़ कर चले गए परन्तु इसके हित ङ्क्षचतक भी इसे बर्बाद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। परन्तु दुश्मनों से बचते-बचते पंजाबियों को अपनों ने घेर लिया और 1966 में वर्तमान ‘पंजाबी सूबा’ हमारे हाथ आया। पंजाब के वारिस अब इस पंजाबी सूबे को भी उजाडऩा चाहते हैं। वाहेगुरु कृपा करे।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)