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अकाली नेताओं की गुटबाजी अकाल तख्त की सर्वोच्चता पर सवाल उठा रही

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2025 05:35 AM

factionalism of akali leaders created akal takht

12 अप्रैल को तेजा सिंह समुंदरी हॉल में बुलाई गई बैठक के दौरान अकाली दल बादल के 567 में से 524 प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से सुखबीर सिंह बादल को एक बार फिर अकाली दल का अध्यक्ष चुना।

12 अप्रैल को तेजा सिंह समुंदरी हॉल में बुलाई गई बैठक के दौरान अकाली दल बादल के 567 में से 524 प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से सुखबीर सिंह बादल को एक बार फिर अकाली दल का अध्यक्ष चुना। इस चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए सुखबीर बादल का नाम तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष बलविंद्र सिंह भूंदड़ ने प्रस्तुत किया था और अकाली दल बादल की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना ने इसका समर्थन किया था। अकाली दल बादल इस चुनाव को एक बड़ी जीत के रूप में पेश कर रहा है और सुखबीर सिंह बादल और उनके सहयोगियों ने अपने प्रतिद्वंद्वी 5 सदस्यीय समिति के सदस्यों और उनके सहयोगियों के खिलाफ सख्त आक्रामक रुख अपनाया है। यहां तक कि सुखबीर सिंह बादल ने भी अपदस्थ जत्थेदारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसके चलते निकट भविष्य में अकाली दल के दोनों धड़ों के बीच एकता की उम्मीद की किरण भी गायब होती नजर आ रही है।

सुखबीर सिंह बादल से अलग हुआ गुट, जिसने खुद को अकाली दल सुधार आंदोलन का नाम दिया था, अकाल तख्त पर पेश होकर अकाली दल सरकार के दौरान सुखबीर सिंह बादल द्वारा सिख सिद्धांतों के खिलाफ लिए गए फैसलों और अन्य गलतियों के लिए अकाल तख्त के जत्थेदार को एक लिखित शिकायत सौंपी और मांग की कि सुखबीर सिंह बादल की सरकार के दौरान, सुखबीर बादल, उनके सहयोगियों और अकाली सुधार आंदोलन के नेता जो उन गलतियों में शामिल थे या उनका समर्थन करते थे, उन्हें तनखाइया घोषित किया जाना चाहिए। 

इस शिकायत पर कार्रवाई करते हुए 2 दिसंबर को 5 जत्थेदारों ने सुखबीर सिंह बादल और अन्य अकाली नेताओं को धार्मिक और राजनीतिक तनख्वाह सुना दी। जिसे उस समय सभी दलों ने स्वीकार कर लिया और अकाल तख्त के आदेश के अनुसार सभी दलों ने धार्मिक सजा पूरी कर ली। राजनीतिक तनख्वाह में सुधार आंदोलन को अपने गुट को समाप्त करने और सुखबीर सिंह बादल और उनके सहयोगियों के इस्तीफे को स्वीकार करने और अकाल तख्त द्वारा घोषित 7 सदस्यीय समिति के माध्यम से अकाली दल की भर्ती करके एक नया अध्यक्ष चुनने का आदेश जारी किया गया था। परन्तु अकाली दल बादल ने राजनीतिक तनख्वाह भुगतने से यह कह कर किनारा कर लिया कि धर्मनिरपेक्ष पार्टी होने के कारण यदि वह धार्मिक संस्था के आदेश मानते हैं तो पार्टी की मान्यता रद्द हो सकती है जबकि सुधार लहर के नेताओं ने अपना दल खत्म करने की घोषणा कर दी। 

अकाली दल बादल ने 20 फरवरी से अपने दम पर भर्ती शुरू कर दी और 7 सदस्यीय समिति, 2 सदस्यों के इस्तीफे के कारण 5 सदस्यों की हो गई। तत्कालीन अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह से अनुमति लेकर 18 मार्च से अकाली दल भर्ती की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई। अकाली दल बादल की जल्दबाजी में हुई भर्ती में करीब डेढ़ महीने में सुखबीर सिंह बादल को अकाली दल का नया अध्यक्ष चुन लिया गया, जबकि भर्ती कमेटी की तरफ से अभी भी भर्ती प्रक्रिया जारी है, जिसके अगले कुछ महीनों तक चलने की उम्मीद है।

हालांकि 125 साल पहले अस्तित्व में आए अकाली दल की गुटबाजी का इतिहास बहुत पुराना है। अकाली दल की गुटबाजी पहली बार 1928 में सामने आई जब नेहरू रिपोर्ट पर मतभेद के कारण बाबा खड़क सिंह, ज्ञानी शेर सिंह और मंगल सिंह के नेतृत्व वाला अकाली दल 3 धड़ों में बंट गया। इसके बाद 1939, 1967, 1980, 1986, 1999, 2018 और 2020 में अकाली दल में गुटबाजी के कारण अलग-अलग नाम से अकाली दल बने। यद्यपि अकाल तख्त साहिब द्वारा वर्णित गुटबाजी को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन 1994 को छोड़कर कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं निभाई गई जब जत्थेदार भाई मंजीत सिंह और 1999 में जत्थेदार भाई रणजीत सिंह ने एकता हासिल करने के लिए एक बैठक की। लेकिन इस बार दोनों प्रमुख दलों द्वारा अकाल तख्त साहिब के प्रति समर्पण के लिखित वादे के बाद अकाल तख्त के जत्थेदार खुलकर सामने आए और अकाली दल के नेताओं की गुटबाजी को खत्म करने और सिख परंपराओं को लागू करने के लिए नियमित आदेश जारी किया। सिख समुदाय के एक बड़े वर्ग ने अकाल तख्त के आदेश का स्वागत किया।

लेकिन अकाली दल बादल द्वारा इस आदेश को टालकर अपनी मर्जी से नया अध्यक्ष चुनने और भर्ती कमेटी द्वारा अपनी भर्ती जारी रखने से सिख संगत विभाजन की ओर बढ़ रही है। आम कार्यकत्र्ता सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और सभाओं में एक-दूसरे पर गद्दार होने का आरोप भी लगा रहे हैं। अब तक बादल दल के नेता भी सुरक्षा और सरकारी गाडिय़ों के लालच में अपदस्थ जत्थेदारों पर केंद्र सरकार के नियंत्रण में होने का आरोप लगा रहे हैं जबकि अकाल तख्त के जत्थेदार का पद छोडऩे वाले जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह अभी भी दरबार साहिब अमृतसर के मुख्य ग्रंथी के रूप में सेवा निभा रहे हैं। अकाली दल का नेतृत्व, जो खुद को अकाल तख्त के प्रति सबसे अधिक समर्पित होने का दावा करता है, लेकिन अकाल तख्त द्वारा जारी आदेशों को नहीं मानेगा और जत्थेदारों पर इस तरह के आरोप लगाएगा, तो अकाल तख्त साहिब की सर्वोच्चता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
  

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