पाठ्य पुस्तकों में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए

Edited By ,Updated: 20 Jun, 2024 06:25 AM

facts should not be distorted in textbooks

अगले साल से स्कूलों से बाहर निकलने वाले छात्रों को 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराए जाने की घटनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी, जिसमें रथ यात्रा, कार सेवा जिसके लिए हजारों लोग अयोध्या में एकत्र हुए थे, उसके बाद हुई...

अगले साल से स्कूलों से बाहर निकलने वाले छात्रों को 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराए जाने की घटनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी, जिसमें रथ यात्रा, कार सेवा जिसके लिए हजारों लोग अयोध्या में एकत्र हुए थे, उसके बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा और विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार की बर्खास्तगी के बारे में तथ्य शामिल हैं। पाठ्य पुस्तकों से विवादित बाबरी मस्जिद के पहले के संदर्भों की बजाय, नई पाठ्य पुस्तकों में इसका नाम तक नहीं है, बल्कि इसे ‘तीन गुंबद वाली संरचना’ कहा गया है। घटना के बाद भाजपा नेताओं द्वारा व्यक्त किए गए ‘अफसोस’ के संदर्भ को भी पाठ्य पुस्तकों से हटा दिया गया है। 

शिक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाली राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) द्वारा पाठ्य पुस्तकों में संशोधन का ताजा मामला 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से बदलावों का चौथा दौर है। परिषद को स्कूलों के लिए पाठ्य पुस्तकों को मंजूरी देने का काम सौंपा गया है लेकिन वह पाठ्य पुस्तकों की विषय-वस्तु में व्यापक बदलाव कर रही है जो इतिहास को विकृत करने और फिर से लिखने का प्रयास है।

इससे पहले परिषद ने कक्षा 12 की 2 राजनीतिक पाठ्य पुस्तकों से 2002 के गुजरात दंगों के सभी संदर्भ हटा दिए थे। ये संदर्भ घटनाओं के कालक्रम से संबंधित थे जिसमें गोधरा में कारसेवकों से भरी ट्रेन के डिब्बे में आग लगाना और उसके बाद मुसलमानों के खिलाफ हिंसा शामिल थी। इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा तत्कालीन गुजरात सरकार द्वारा स्थिति से निपटने की आलोचना का भी उल्लेख किया गया था। हटाए गए अंश में कहा गया था कि गुजरात जैसे उदाहरण हमें राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं का उपयोग करने के खतरों के प्रति सचेत करते हैं। यह लोकतांत्रिक नीतियों के लिए खतरा पैदा करता है। 

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ‘राज धर्म’ के बारे में प्रसिद्ध टिप्पणी को भी हटा दिया गया है। एक पैराग्राफ हटा दिया गया जिसमें बताया गया था कि कैसे सांप्रदायिकता लोगों को ‘अपने स्वाभिमान को बचाने और अपने घर की जमीन की रक्षा करने के लिए दूसरे समुदायों के लोगों को मारने, बलात्कार करने और लूटने के लिए प्रेरित करती है।’ हटाए गए अंश में यह भी उल्लेख किया गया है कि सांप्रदायिक हिंसा के 2 सबसे दर्दनाक समकालीन उदाहरण प्रत्येक प्रमुख राजनीतिक दलों के शासनकाल में हुए। 1984 में दिल्ली के सिख विरोधी दंगे कांग्रेस के शासन में हुए। 2002 में गुजरात में मुस्लिम विरोधी ङ्क्षहसा का अभूतपूर्व स्तर और प्रसार भाजपा सरकार के शासनकाल में हुआ। 

चिपको आंदोलन, भारतीय किसान संघ द्वारा आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन और सूचना के अधिकार के लिए आंदोलन जैसे कई विरोध और सामाजिक आंदोलनों के संदर्भ पाठ्य पुस्तकों से हटा दिए गए हैं। इसके अलावा कई ऐतिहासिक संदर्भ और नक्सलवाद और पूर्वोत्तर में उग्रवाद जैसे विरोध आंदोलनों को भी हटा दिया गया है। इतिहास और राजनीति विज्ञान की किताबों से तथ्यों को हटाने के बारे में पूछे जाने पर, परिषद के निदेशक ने इसे उचित ठहराते हुए कहा कि हमें स्कूल की पाठ्य पुस्तकों में दंगों के बारे में क्यों पढ़ाना चाहिए? हम सकारात्मक नागरिक बनाना चाहते हैं, न कि हिंसक और उदास व्यक्ति। यह एक दोषपूर्ण तर्क है क्योंकि इतिहास से तथ्य छिपाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और यह उल्टा साबित हो सकता है। मोदी सरकार द्वारा घोषित नई शिक्षा नीति का एक घोषित उद्देश्य ‘छात्रों में आलोचनात्मक सोच को बढ़ाना’ है जो किया जा रहा है वह इसके बिल्कुल विपरीत है। 

इसके अलावा कल के युवाओं में स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली इतिहास और राजनीति विज्ञान की किताबों की विश्वसनीयता के बारे में संदेहास्पद रवैया विकसित हो सकता है। विडंबना यह है कि ऐसे समय में तथ्यों को छिपाने की कोशिश की जा रही है जब सूचना विस्फोट हो रहा है और किसी से कुछ भी छिपाना लगभग असंभव हो गया है। इतिहास के विरूपण को रोकने के लिए सरकार और अदालतों को कदम उठाना चाहिए। घटनाओं की व्याख्या अलग-अलग हो सकती है लेकिन छात्रों को बिना किसी पूर्वाग्रह के तथ्य प्रस्तुत किए जाने चाहिएं। उन्हें देश के विकास और भाग्य को आकार देने वाले घटनाक्रमों के बारे में जानकारी से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।-विपिन पब्बी
    

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