रिपोर्ट कार्ड के हर पृष्ठ पर ‘फेल’ लिखा है

Edited By Pardeep,Updated: 06 Jan, 2019 05:28 AM

fail is written on every page of the report card

मैं यह लेख दिल्ली से लिख रहा हूं, जो दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। अभी भी बहुत ठंड है। जिस बसंत का मैंने गत सप्ताह जिक्र किया था, वह अभी भी कई सप्ताह दूर है। हाल ही में पांच राज्यों में हुए चुनावों में अपनी पराजय की परवाह न करते...

मैं यह लेख दिल्ली से लिख रहा हूं, जो दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। अभी भी बहुत ठंड है। जिस बसंत का मैंने गत सप्ताह जिक्र किया था, वह अभी भी कई सप्ताह दूर है। 

हाल ही में पांच राज्यों में हुए चुनावों में अपनी पराजय की परवाह न करते हुए भाजपा नेतृत्व अभी भी लड़ाकू मुद्रा में, संसद के प्रति तिस्कारपूर्ण तथा संस्थाओं के प्रति हेय दृष्टि रखने वाला है। एक जनवरी 2019 को एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि किसी ने भी भाजपा को तेलंगाना तथा मिजोरम में कोई अवसर नहीं दिया। छत्तीसगढ़ में एक स्पष्ट जनादेश दिया गया था-भाजपा हार गई। मगर दो राज्यों (राजस्थान तथा मध्य प्रदेश)में  त्रिशंकु विधानसभा बनी। 

निर्णायक जनादेश 
त्रिशंकु विधानसभा का अर्थ है कि कोई भी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं। तीन राज्यों में केवल दो ही वास्तविक प्रतिस्पर्धी थे। परिणामों के बाद जिस पार्टी के पास सरकार बनाने का कोई भी अवसर नहीं था, वह भाजपा थी और जिस पार्टी के पास अवसर था वह थी कांग्रेस तथा इसने बिना किसी अवरोध के तीनों राज्यों में सरकार बनाई। मैं इसे एक निर्णायक जनादेश कहूंगा, न कि त्रिशंकु विधानसभा। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने 34 सीटें गंवा दीं (49 से 15), मध्य प्रदेश में 56 सीटें (165 से 109) तथा राजस्थान में 90 सीटें (163 से 73)। यह निर्णायक था। 

भाजपा को ठुकराना 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनाव परिणामों की समीक्षा पर कुछ लोग ही विश्वास करते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) का आंतरिक विचार यह है कि यह एक बड़ी पराजय थी, इसीलिए संघ सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं की परवाह न करते हुए हिंदुत्व के इंजन को गर्म तथा अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने की मांग कर रहा है। मोदी के साक्षात्कार को मीडिया द्वारा तथा लोगों की ओर से कार्यकाल की समाप्ति के रिपोर्ट कार्ड के तौर पर देखा गया। यह दो पहलुओं से महत्वपूर्ण था-प्रधानमंत्री ने क्या कहा और क्या नहीं कहा। 

उल्लेख तथा गलतियां 
उन विषयों से शुरूआत करते हैं जिन पर प्रधानमंत्री बोले-नोटबंदी, जी.एस.टी., सर्जिकल स्ट्राइक, भीड़ तंत्र, डाक्टर उॢजत पटेल का इस्तीफा, सबरीमाला, ट्रिपल तलाक विधेयक,  राफेल, कृषि ऋण माफी तथा महागठबंधन (विपक्षी दलों का गठबंधन)। अपने किरदार के अनुरूप उन्होंने कोई गलती स्वीकार नहीं की, उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने सब कुछ सही किया तथा ‘मोदी केवल जनता के प्रेम तथा आशीर्वादों की अभिव्यक्ति हैं।’ 

मैं उन लोगों से बहुत सतर्क रहता हूं जो अपनी गलतियां नहीं मानते। नोटबंदी एक बहुत बड़ी गलती थी, जी.एस.टी. में अत्यधिक खामियां थीं और गलत तरीके से लागू करके इसे और भी खराब बना दिया गया, सर्जिकल स्ट्राइक अनोखी नहीं थी और न ही इससे घुसपैठ या आतंकवाद पर रोक लगी, ट्रिपल तलाक विधेयक विनाशकारी व पक्षपाती है, राफेल सौदे ने वायुसेना तथा ङ्क्षहदुस्तान एयरोनॉटिक्स  लिमिटेड को नीचा दिखाया तथा गलत नीतियों के परिणामस्वरूप कृषि ऋण माफी अनिवार्य बन गई। ऐसा दिखाई देता है कि लोग इस समीक्षा से सहमत हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया। 

अब उन विषयों को सूचीबद्ध करते हैं जिन पर प्रधानमंत्री नहीं बोले-बढ़ती जा रही बेरोजगारी, किसानों का संकट तथा आत्महत्याएं, महिलाओं की सुरक्षा, सतर्कता समूह, दंड मुक्ति के मामलों में होती वृद्धि, जम्मू-कश्मीर, अर्थव्यवस्था, एम.एस.एम.ईज का बंद होना, रुकी हुई परियोजनाएं, दिवालिया कम्पनियां, राजस्व तथा वित्तीय घाटे के बजटीय लक्ष्यों के प्राप्त होने में सम्भावित असफलता तथा सरकार से प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का जाना। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री कार चलाने वाले एक ऐसे व्यक्ति की तरह थे जो केवल रियर व्यू मिरर में ही देख रहा हो। उन्होंने अतीत बारे बात की और भविष्य के संबंध में एक भी शब्द नहीं बोला। वह आगे देखने में सक्षम नहीं और उनके पास लोगों को देने के लिए कुछ नहीं जो उनके मनोबल को बढ़ा तथा अर्थव्यवस्था को ऊपर उठा सके। रिपोर्ट कार्ड के प्रत्येक पृष्ठ पर ‘फेल’ लिखा है। 

निराशाजनक उपाय 
नए वर्ष में कुछ भी बदला दिखाई नहीं देता। दो जनवरी को लोकसभा में राफेल सौदे को लेकर एक उग्र चर्चा की गई, प्रधानमंत्री अनुपस्थित थे, रक्षा मंत्री एक दर्शक थीं तथा वित्त मंत्री अरुण जेतली ने किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्र का उत्तर नहीं दिया। बसंत आने में अभी 10 सप्ताह का समय है। चुनावों की अधिसूचना जारी होने से पहले क्या आशा की जा सकती है? मैं केवल अनुमान लगा सकता हूं। 

लोगों में जो चर्चा चल रही है वह यह कि बदलाव होने वाला है। यह स्पष्ट है कि यदि सरकार इस चर्चा में बदलाव लाना चाहती है तो इसे कुछ न कुछ करना होगा। जब मैं यह लेख लिख रहा था तो इस बात की सुगबुगाहट थी कि छोटे एवं मध्यम किसानों को ब्याज मुक्त कृषि ऋण तथा नकद हस्तांतरण जैसे उपायों पर विचार किया जा रहा है। यदि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को कृषि ऋण के लिए धन उपलब्ध करवाने का निर्देश देती भी है तो यह नकद हस्तांतरण के लिए धन कहां से प्राप्त करेगी? नवम्बर 2018 के अंत तक वित्तीय घाटा लक्ष्य के 115 प्रतिशत पर था। फिर भी एक निराश सरकार सम्भवत: ‘राहतों’ की घोषणा कर सकती है, धन उधार ले सकती है, रचनात्मक लेखांकन में उलझ सकती है और राजनीतिक लहर को पलटने की आशा कर सकती है। 

इन उपायों में असफल रहने पर सरकार विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण हेतु एक अध्यादेश ला सकती है। यह अत्यंत उकसाऊ तथा विभाजनकारी होने के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का कार्य भी होगा। आम तौर पर चुनावों से 10 सप्ताह पूर्व सरकार जो कुछ भी करती है उसे लोगों द्वारा संदेह से देखा जाता है। रिपोर्ट कार्ड से ‘फेल’ शब्द मिटाना आसान नहीं होगा।-पी. चिदम्बरम

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