Edited By ,Updated: 04 Sep, 2024 05:50 AM
खेत से खाने की थाली तक पहुंचने से पहले ही करीब 90,000 करोड़ रुपए की फसलें रखरखाव के अभाव में सालभर में बर्बाद हो जाती हैं। इसे कम करने के लिए खेतों के निकट फूड प्रोसैसिंग ईकाइयों को कोल्ड सप्लाई चेन से जोडऩे व भारतीय कंपनियों के ग्लोबल कंपनियों के...
खेत से खाने की थाली तक पहुंचने से पहले ही करीब 90,000 करोड़ रुपए की फसलें रखरखाव के अभाव में सालभर में बर्बाद हो जाती हैं। इसे कम करने के लिए खेतों के निकट फूड प्रोसैसिंग ईकाइयों को कोल्ड सप्लाई चेन से जोडऩे व भारतीय कंपनियों के ग्लोबल कंपनियों के साथ गठजोड़ से किसानों को बेहतर लाभ सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय फूड प्रोसैसिंग इंडस्ट्रीज मंत्रालय 19 से 22 सितंबर को दिल्ली में ‘वल्र्ड फूड इंडिया’ की मेजबानी करेगा।
केंद्रीय बजट में भी 1.52 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान जलवायु संकट से निपटने, कृषि उत्पादन में वृद्धि व प्रोसैस्ड फूड का एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए किया गया है। बीते एक साल में कृषि उत्पादों के एक्सपोर्ट में 8 प्रतिशत की गिरावट ने खेती व संबंधित कारोबार से जुड़े लोगों की चिंता बढ़ा दी है। 2022-23 में 53.2 बिलियन डॉलर कृषि उत्पाद एक्सपोर्ट 2023-24 में 48.9 बिलियन डॉलर रहा। 2014 से 2023 के दौरान एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट की औसत वार्षिक बढ़ोतरी केवल 2 प्रतिशत रही। मुख्यरूप से चावल, गेहूं, मांस, मसाले, चीनी, चाय व कॉफी का एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट में 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है, इसमें भी कई बार घरेलू मांग व सप्लाई में संतुलन साधने और महंगाई पर लगाम के नाम पर एक्सपोर्ट रोक दिया जाता है। बीते एक दशक से देश से कृषि उत्पादों के एक्सपोर्ट में प्रोसैस्ड फूड का हिस्सा केवल 25 प्रतिशत रहा है। टैक्नोलॉजी आधारित बढ़ी उत्पादन क्षमता से अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करके ही ग्लोबल बाजार में प्रोसैस्ड फूड का कारोबार बढ़ाया जा सकता है।
स्विट्जरलैंड की नैस्ले जैसी फूड प्रोसैसिंग व पेय पदार्थ निर्माता कंपनी ने टैक्नोलॉजी व रिसर्च की मदद से सालाना 111 बिलियन अमरीकी डॉलर का कारोबार स्थापित किया है, जबकि 9 बिलियन डॉलर के कारोबार से भारत की अमूल अपनी उत्पादन क्षमता व अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में पीछे रहने की वजह से घरेलू बाजार तक ही सीमित रह गई।
फूड प्रोसैसिंग में 17वें नंबर पर : प्रोसैस्ड कृषि उत्पादों के सालाना करीब 1 ट्रिलियन डॉलर के ग्लोबल एक्सपोर्ट कारोबार में जर्मनी (63 बिलियन डॉलर) नंबर एक पर है। अमरीका (58 बिलियन डॉलर), नीदरलैंड्स (57 बिलियन डॉलर), चीन (53 बिलियन डॉलर) और फ्रांस का प्रोसैस्ड फूड कारोबार 50 बिलियन डॉलर का है। दक्षिण-इंडोनेशिया, मलेशिया व थाईलैंड जैसे पूर्वी एशियाई देश भी प्रोसैस्ड कृषि उत्पादों के बड़े एक्सपोर्टर्स हैं। एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट पॉलिसी लागू किए जाने के 5 वर्षों के बाद भी भारत का प्रोसैस्ड फूड एक्सपोर्ट में मात्र 6.5 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी से 15 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट कारोबार हुआ है। प्रोसैस्ड फूड के ग्लोबल बाजार में भले ही भारत की रैंकिंग 21वें से 17वें नंबर पर आ गई है, पर फसलों की बर्बादी कम करने के लिए प्रोसैसिंग बढ़ाने की जरूरत है।
90 हजार करोड़ रुपए की फसलें बर्बाद : हाल ही में जारी 2023-24 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक चीन के बाद भारत सालाना औसत 300 मिलियन टन उत्पादन के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फल व सब्जी उत्पादक देश होने के बावजूद यहां केवल 2.7 प्रतिशत सब्जियों की व 4.5 प्रतिशत फलों की प्रोसैसिंग होती है। जबकि दूध 21.1 प्रतिशत, मांस 34.2 प्रतिशत व 15.4 प्रतिशत मछली की प्रोसैसिंग के मुकाबले चीन में 25.30 प्रतिशत व पश्चिमी देशों में 60.80 प्रतिशत प्रोसैसिंग होती है। हाईटैक प्रोसैसिंग क्षमता की कमी के कारण हमारी फसलें बर्बाद हो रही हैं। कटाई के बाद करीब 18 से 25 प्रतिशत फसलों का नुकसान होता है, जबकि करीब 45 प्रतिशत फल व सब्जियां खाने की प्लेट तक पहुंचने से पहले ही खराब हो रही हैं। नीति आयोग ने सालाना करीब 90,000 करोड़ रुपए की फसलों के नुकसान का अनुमान लगाया है। इससे उभरने के लिए खेतों के निकट फसलों की छंटाई व ग्रेङ्क्षडग के अलावा प्रोसैसिंग क्षमता बढ़ाने का सुझाव आयोग ने दिया है।
किसान प्रोत्साहित किए जाएं : खेतों में फसलों की बर्बादी घटाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना जरूरी है। 2020 में केंद्र सरकार ने खेतों के निकट कोल्ड स्टोरेज चेन व कटाई के बाद फसलों के रखरखाव के बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए एक ट्रिलियन रुपए के एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड से किसानों व उद्यमियों को आसान कर्ज का प्रावधान किया गया। हाल ही में जारी फूड प्रोसैसिंग पॉलिसी में तमिलनाडु ने फसलों की बर्बादी कम करने व कृषि उपज मूल्य बढ़ाने की दिशा में कदम उठाया है। यह पॉलिसी किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओ.) और फूड प्रोसैसिंग उद्योगों को केंद्रीय योजनाओं से वित्तीय सहायता पाने के लिए प्रोत्साहित करती है। फूड प्रोसैसिंग को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्य ने भी ‘एग्रीबिजनैस एंड फूड प्रोसैसिंग पॉलिसी’ लागू की है, जबकि पंजाब में ऐसी पहल का किसानों को इंतजार है।
पी.एल.आई. स्कीम में सुधार हो : फूड प्रोसैसिंग उद्योग के लिए वर्ष 2021-22 से 2026-27 तक 10,900 करोड़ रुपए की प्रोडक्शन लिक्ड इंसैंटिव (पी.एल.आई.) स्कीम का लक्ष्य बड़ी ग्लोबल कंपनियों को भारत से उत्पादन व एक्सपोर्ट के लिए आकर्षित करना है। मई 2024 तक उत्पादन प्रोत्साहन योजना के 90 प्रतिशत फंड का उपयोग नहीं हो पाया है। केवल 158 छोटे व मझोले उद्यमियों (एस.एम.ईज) लाभार्थियों को 1073 करोड़ रुपए जारी हो पाए, जबकि स्कीम की समय सीमा आधी से भी अधिक बीत चुकी है। स्कीम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए नीतिगत दखल की जरूरत है। पी.एल.आई. स्कीम की मदद से ग्लोबल बाजार में एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए हमारे एस.एम.ईज का हाईटैक ‘ग्लोबल एंकर’ कंपनियों के साथ सरकार को गठजोड़ स्थापित कराना होगा। फूड प्रोसैसिंग में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) की अनुमति के बावजूद बीते एक दशक के दौरान भारत में 500 अरब रुपए की एफ.डी.आई. आई, जिसे अधिक बढ़ाने की जरूरत है।
आगे की राह : फूड प्रोसैसिंग सैक्टर खेती में बड़ा बदलाव ला सकता है। ग्लोबल कंपनियों की अत्याधुनिक फूड प्रोसैसिंग टैक्नोलॉजी की मदद से अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच बढ़ाई जा सकती है। ग्लोबल कंपनियों की किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओ.) और एस.एम.ईज के साथ सांझेदारी कराने के लिए केंद्रीय फूड प्रोसैसिंग इंडस्ट्रीज मंत्रालय कारगर पहल करे।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)