Edited By ,Updated: 03 Nov, 2024 03:22 AM
आर.बी.आई. का मौद्रिक नीति वक्तव्य एक कारण से सुॢखयों में रहता है- नीतिगत रेपो दर। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक (आर.बी.आई.) वाणिज्यिक बैंकों को प्रतिभूतियों के बदले में धन उधार देगा, इस वादे के साथ कि वह बाद में प्रतिभूतियों को फिर से...
आर.बी.आई. का मौद्रिक नीति वक्तव्य एक कारण से सुॢखयों में रहता है- नीतिगत रेपो दर। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक (आर.बी.आई.) वाणिज्यिक बैंकों को प्रतिभूतियों के बदले में धन उधार देगा, इस वादे के साथ कि वह बाद में प्रतिभूतियों को फिर से खरीद लेगा। अगर रेपो दर कम हो जाती है तो उधारकत्र्ता खुश होते हैं। क्योंकि इसका मतलब है कि बैंक कम दर पर उधार ले सकते हैं और परिणामस्वरूप कम दर पर उधार दे सकते हैं। मुद्रास्फीति पर नजर रखने वाले खुश होते हैं, अगर रेपो दर बढ़ाई जाती है, क्योंकि माना जाता है कि यह दर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का साधन है। यदि रेपो दर अपरिवर्तित रहती है, तो यह सभी हितधारकों को अनुमान लगाने पर मजबूर कर देगी।
गवर्नर और रेपो दर : 27 मार्च, 2020 को रेपो दर 5.0 प्रतिशत से घटाकर 4.0 प्रतिशत कर दी गई। यह एक बड़ी कटौती थी और इस आधार पर उचित ठहराई गई थी कि कोविड-प्रभावित अर्थव्यवस्था को मंदी का खतरा था। यह 26 महीनों तक 4.0 प्रतिशत पर बनी रही। जब कोविड का प्रकोप कम हुआ और अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखे, तो मई 2022 में रेपो दर में भारी वृद्धि कर इसे 4.40 प्रतिशत कर दिया गया। जाहिर तौर पर मुद्रास्फीति की आशंकाओं को काबू में करने के लिए।
फरवरी 2023 तक यह लगातार 6.50 प्रतिशत पर पहुंच गई, जहां यह 20 महीने तक बनी रही। मई 2022 से, गवर्नर श्री शक्तिकांत दास मुद्रास्फीति-योद्धा रहे हैं, लेकिन अपरिवर्तित रेपो दर का मतलब है कि आर.बी.आई. अभी तक मुद्रास्फीति को काबू में करने में सफल नहीं हुआ। कोई भी गवर्नर सभी हितधारकों को खुश नहीं कर सकता। यू.पी.ए. सरकार ने गवर्नर का बोझ सांझा करने के लिए एक मौद्रिक नीति समिति (एम.पी.सी.) का गठन किया, लेकिन अंतिम निर्णय अभी भी गवर्नर का है।
गवर्नर को विकास और मुद्रास्फीति को संतुलित करना और निर्णय लेना होता है। मुद्रास्फीति अभी भी 4 प्रतिशत की लक्ष्य दर की ओर नहीं बढ़ रही। खाद्य और ईंधन की कीमतें मामले को जटिल बनाती हैं। दोनों ही ब्याज दरों में बदलाव का जवाब नहीं देतींं। गवर्नर ने तर्क दिया कि रेपो दर को अपरिवर्तित रखने का औचित्य था। इसके विपरीत तर्क यह है कि उच्च रेपो दर अर्थव्यवस्था की विकास दर को कम करने का प्रभाव डालती है।
विकास और मुद्रास्फीति : विकास और मुद्रास्फीति आर.बी.आई. के साथ-साथ सरकार की दो प्राथमिक ङ्क्षचताएं हैं। श्री शक्तिकांत दास ने चालू वर्ष में 7.5 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर की सराहना की, लेकिन मुद्रास्फीति को भी चिन्हित किया, जिसके 4.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। मुद्रास्फीति अभी तक उस स्तर तक नहीं पहुंची- सितंबर 2024 में मुद्रास्फीति दर 5.49 प्रतिशत अधिक थी। अखिल भारतीय उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक 9.24 प्रतिशत रहा।
अक्तूबर 2024 में जारी आर.बी.आई. की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में दोनों विषयों पर और अधिक कहा गया है। रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों को पढऩे के बाद ‘विकास के दृष्टिकोण’ पर कहा गया है- ‘अनिश्चित वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण, भू-राजनीतिक संघर्ष, आपूॢत शृंखला पर बढ़ते दबाव और अस्थिर वैश्विक वित्तीय स्थितियां, हालांकि नकारात्मक पक्ष के दृष्टिकोण पर भारी असर डालती हैं।’’ रिपोर्ट में अन्य कारकों, जैसे ‘भू-आॢथक विखंडन, वैश्विक मांग में कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार मौसम संबंधी गड़बड़ी’ को भी चिन्हित किया गया है।
‘मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण’ पर रिपोर्ट में जोखिमों की पहचान ‘बढ़ते वैश्विक आपूॢत दबाव, प्रतिकूल मौसम की घटनाएं, वर्षा का असमान वितरण, लंबे समय तक भू-राजनीतिक संघर्ष और उसके परिणामस्वरूप आपूॢत शृंखला में व्यवधान, खाद्य और धातु की कीमतों में उछाल, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और प्रतिकूल मौसम की घटनाओं’ के रूप में की गई है। ये 10 अलग-अलग नकारात्मक जोखिम हैं।
प्रतिकूल परिस्थितियां : वित्त मंत्रालय की मासिक आॢथक समीक्षा में एक स्पष्ट आकलन है। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को ‘संतोषजनक’ बताया, लेकिन चेतावनी दी कि ‘अंतॢनहित मांग स्थितियों पर नजर रखने की जरूरत है। इसके अलावा, भू-राजनीतिक संघर्षों में वृद्धि, आॢथक विखंडन में वृद्धि और कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय बाजारों में उच्च मूल्यांकन से विकास के लिए जोखिम उत्पन्न होते हैं।
एन.सी.ए.ई.आर. की मासिक आॢथक समीक्षा संतुलित है। सकारात्मक पहलुओं को उजागर करने के बाद, समीक्षा ने नकारात्मक पहलुओं की ओर इशारा किया- बैंक ऋण में कमी; व्यक्तिगत ऋण, सेवाओं, कृषि और उद्योग में मंदी; रुपए का अवमूल्यन और एफ.पी.आई. प्रवाह में कमी।
मेरे विचार में, पक्षी की नजर से देखने का तरीका कीड़े की नजऱ से बहुत अलग है। जबकि पूर्व में मैक्रो-इकोनॉमी को देखने के लिए महत्वपूर्ण है, यह बाद वाला है जो आम लोगों के लाभ और दर्द को दर्शाता है। लोगों की ङ्क्षचताएं हैं बेरोजगारी, उच्च मुद्रास्फीति, स्थिर वेतन, अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता, अत्यधिक विनियमन, जी.एस.टी. और कठोर जी.एस.टी. प्रशासन, शिक्षा की खराब गुणवत्ता, महंगी चिकित्सा सेवाएं, बेपरवाह नौकरशाही और सार्वजनिक व्यय, जो अमीरों का पक्ष लेते हैं और गरीबों को निचोड़ते हैं।
उपरोक्त के साथ-साथ, कई अन्य चीजें भी गलत हो सकती हैं: मध्य-पूर्व में क्रूर युद्ध और भी देशों को अपनी चपेट में ले सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध में नाटो देश भी शामिल हो सकते हैं। मणिपुर में फिर से आग लग सकती है। महाराष्ट्र के चुनाव में कोई आश्चर्य हो सकता है। चीन-ताइवान या दक्षिण कोरिया-उत्तर कोरिया हॉटस्पॉट बन सकते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति चुने जा सकते हैं। इसलिए, कृपया अपनी सीट बैल्ट बांध लें, आगे उथल-पुथल है। -पी. चिदम्बरम