Edited By ,Updated: 16 Nov, 2022 05:10 AM
राजा राव तुलाराम बहादुर का जन्म रेवाड़ी के शासक राजा राव पूर्ण सिंह की महारानी ज्ञान कंवर की कोख से 9 दिसम्बर, 1825 को रामपुरा महल में हुआ था। प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 में राव तुला राम ने
राजा राव तुलाराम बहादुर का जन्म रेवाड़ी के शासक राजा राव पूर्ण सिंह की महारानी ज्ञान कंवर की कोख से 9 दिसम्बर, 1825 को रामपुरा महल में हुआ था। प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 में राव तुला राम ने भारतीय राजवंशों से गुप्त मंत्रणा करके अपने चाचा व मेरठ के कोतवाल राव कृष्ण सिंह उर्फ कृष्ण गोपाल द्वारा सेनाओं और पुलिस के जवानों को क्रांति करने के लिए तैयार कर लिया। राव कृष्ण सिंह ने मेरठ छावनी को क्रांति का गुप्त केन्द्र बनाकर 90 सैनिक छावनियों में क्रांतिकारियों की गुप्त समितियों का गठन कर दिया तथा क्रांति उद्घोष करने का निश्चय कर लिया और उचित अवसर की प्रतिज्ञा करने लगे।
राजा राव तुला राम ने फरवरी 1857 में रेवाड़ी से गांव-गांव रोटियां बंटवानी आरंभ कर दीं, जो क्रांति करने का गुप्त संकेत थीं। मार्च 1857 में भारतीय अंग्रेजी सेनाओं में नवीन इनफिल्ड राइफल में प्रयोग होने वाले कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी के इस्तेमाल और आटे में पिसी हुई गाय और सूअर की हड्डियों की अफवाहों ने गहरा असंतोष फैला दिया था और 19वीं बंगाल नैटिव इन्फैंटरी के ब्राह्मण जवान मंगल पांडे को कारतूसों के इस्तेमाल न करने पर फांसी दे देने के कारण सेना को क्रांति करने का अवसर मिल गया और जनता में भी ब्राह्मण को फांसी देने का भारी असंतोष व आक्रोश पैदा हो गया।
10 मई, 1857 को राव कृष्ण सिंह ने पुलिस और सेना के जवानों से मेरठ में क्रांति उद्घोष करके 11 मई को दिल्ली पर अधिकार करके बहादुर शाह जफर को भारत सम्राट के पद पर सुशोभित कर दिया। बहादुर शाह जफर ने शाही फरमान जारी करके अंग्रेजों को भारत से भगाने और मारने का आदेश पारित कर दिया।
राजा राव तुला राम ने तुरन्त 7-8 हजार की संख्या में सेना में भर्ती की जिसमें हिन्दू और मुसलमानों के सभी वर्गों को सम्मिलित किया गया। राव राजा तुला राम के पास कुछ तोपें पूर्वजों के जमाने की मौजूद थीं और उन्होंने नवीन तथा नई विशुद्ध तांबे की तोपें ढालने, बन्दूक तथा बारूद बनाने के लिए किला रामपुरा और किला गोकुलगढ़ में कारखाने स्थापित किए।
स्वाधीन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को अंग्रेजों ने पंजाबी, गोरखा व कश्मीरी शासकों की सहायता से 14 सितम्बर, 1857 को पुन: अधीन कर लिया और 20 सितम्बर, 1857 को सम्राट बहादुर शाह को कैद करके लाल किला में कैद कर दिया, जिन्हें बाद में रंगून भेज दिया गया। उनके शहजादों सिपहसालार मिर्जा मुगल, कर्नल अबूबकर, कर्नल खिजर सुल्लतान को सरे आम कत्ल कर दिया और 20 अन्य शहजादों को कतार में खड़ा करके यमुना की रेत पर गोलियों से उड़ा दिया। इस पर भी राजा राव तुलाराम ने साहस और बुद्धिमत्ता का दामन नहीं छोड़ा।
अंग्रेजों ने 2 अक्तूबर, 1857 को ब्रिगेडियर शार्वस के नेतृत्व में पटौदी के मार्ग से रेवाड़ी रामपुरा किला पर आक्रमण किया। 7 अक्तूबर को अंग्रेजों द्वारा तिहरा घेरा डालने के बावजूद भी किले को सुरक्षित रखा और गुरिल्ला युद्ध प्रणाली द्वारा अंग्रेजी सेना को पीछे हटा दिया तथा सेना, खजाना और राज परिवार को सुरक्षित निकाल कर शेखावटी के किला मलसीसर में पहुंच गए। राजा राव साहब ने शेखावटी में क्रांतिकारियों को संगठित करके 1 नवम्बर, 1857 को नारनौल और 5 नवम्बर, 1857 को रेवाड़ी पर पुन: अधिकार कर लिया और नारनौल को राजधानी घोषित करने के पश्चात किला कानोड़ (महेन्द्रगढ़) को घेर लिया।
राजा राव तुला राम की असाधारण सफलता और वीरता ने अंग्रेजों का दिल्ली विजय का उत्साह कुंठित कर दिया। अत: उन्होंने अपने सबसे अनुभवी सेना नायक कर्नल जेरार्ड को दिल्ली से मेजर स्टाफोर्ड को हांसी हिसार से तथा लैफ्टिनैंट लारेन्स को रोहतक से सेना देकर और जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, पटियाला, नाभा, जीन्द, कश्मीर, नेपाल तथा खेतड़ी, सीकर व अलवर के शासकों की सहायक सेनाओं सहित राजा राव तुला राम पर आक्रमण करने हेतु नारनौल की ओर भेजा। यद्यपि राजपूत शासक गुप्त रूप से राजा राव तुला राम के मित्र थे, तथापि प्रत्यक्ष रूप से वे अंग्रेजों का साथ दे रहे थे।
16 नवम्बर 1857 को राजा राव तुला राम और अंग्रेजों व उनके सहायक राजाओं की सेनाओं का भीषण घमासान का युद्ध नारनौल के निकट नसीबपुर मैदान में हुआ जिसमें राजा राव साहब के सेनापति राव कृष्ण सिंह व राव राम लाल शौर्यपूर्वक युद्ध करके अंग्रेजी सेनापति कर्नल जेरार्ड, कैप्टन वानकोर्ट, कैप्टन वोलस, लैफ्टिनैंट टिम्ले, लैफ्टिनैंट वैल्जली करज आदि 27 उच्च सैन्य अधिकरियों को मार कर अपने 5000 रणबांकुरों सहित वीरगति को प्राप्त हुए और अंग्रेजों के बाहरी तोपखाने को नष्ट कर दिया। भारत के महान शूरवीर राजा राव तुला राम ने कभी भी आशा और साहस का दामन नहीं छोड़ा। राजा राव तुला राम साहब ने सन् 1863 में अमीर दोस्त मुहम्मद के सहयोग से कंधार में पहली आजाद हिन्द फौज का गठन किया, जिसमें 5000 हिन्दुस्तानी सैनिक थे।
राजा राव साहब का सुदृढ़ शरीर दीर्घ और संकटपूर्ण यात्रा तथा परिवर्तित जलवायु से दस्तों की बीमारी से ग्रसित हो गया और काबुल में 23 सितम्बर 1863 को केवल 38 वर्ष की युवा अवस्था में वह दिवंगत हो गए। उनकी वीर गाथा सदियों तक संसार को स्वतंत्रता का संदेश देती रहेगी।-ओम प्रकाश यादव(सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री, हरियाणा)