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भारतीय चुनाव व राजनीति में विदेशी हाथ

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2025 05:57 AM

foreign hand in indian elections and politics

भारत  में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर यू.एस.एड या यूनाइटेड स्टेट एजैंसी फॉर इंटरनैशनल डिवैल्पमैंट के माध्यम से 21 मिलियन डालर यानी 182 करोड़ रुपए आने की सूचना ने पूरे देश में खलबली पैदा की है। ट्रम्प प्रशासन के अंदर नव-निर्मित डिपार्टमैंट ऑफ...

भारत  में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर यू.एस.एड या यूनाइटेड स्टेट एजैंसी फॉर इंटरनैशनल डिवैल्पमैंट के माध्यम से 21 मिलियन डालर यानी 182 करोड़ रुपए आने की सूचना ने पूरे देश में खलबली पैदा की है। ट्रम्प प्रशासन के अंदर नव-निर्मित डिपार्टमैंट ऑफ गवर्नमैंट एफिशिएंसी डोजे यानी सरकारी दक्षता विभाग ने उसकी जानकारी देते हुए सूची जारी की। आरंभ में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे रोकने की घोषणा की और कहा कि भारत के पास स्वयं काफी रुपया है तो हम क्यों दें। उस समय ऐसा लगा मानो भारत द्वारा अमरीकी सामग्रियों पर लगने वाले आयात शुल्क के विरुद्ध कदम उठाए जा रहे हैं। फिर उन्होंने मियामी और उसके बाद वाशिंगटन डी.सी. के आयोजनों में कहा कि हमें भारत में मतदान बढ़ाने पर 21 मिलियन खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारत सरकार को बताना होगा। 

क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डालर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है। भारत सरकार की ओर से सूचना है कि जानकारियों के आधार पर जांच आरंभ हो गई है। हमारे देश की समस्या है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र व भाजपा की राज्य सरकारों के रहते जब भी ऐसी खबर आती है तो सोशल मीडिया और मीडिया पर प्रभाव रखने वाला बड़ा वर्ग इसे गलत साबित करने पर तुल जाता है।अमरीकी राष्ट्रपति ऐसा कह रहे हैं तो उसे खारिज नहीं किया जा सकता। हमारे पास भारतीय चुनाव में हस्तक्षेप को साबित करने के लिए सटीक प्रमाण नहीं हैं। कुछ तथ्यों के आधार पर इसकी विवेचना की जा सकती है। डोजे द्वारा यू.एस.एड की जारी सूची में 15 तरह के कार्यक्रम के लिए धन देने की बात है। इनमें एक दुनिया भर में चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण के लिए 48.6 करोड़ डालर यानी 4200 करोड़ का अनुदान था। इसी में भारत की हिस्सेदारी 182 करोड़ रुपए की है। बंगलादेश को मिलने वाले 251 करोड़ रुपए बंगलादेश में राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए दिए जा रहे थे। विश्व में चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया के सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता अमरीकी प्रशासन को क्यों महसूस हुई? बंगलादेश में राजनीतिक सुधारों के लिए अमरीकी सहायता राशि की जरूरत क्यों थी?  

सच है कि सन् 2012 में भारत के चुनाव आयोग ने इंटरनैशनल फाऊंडेशन फॉर इलैक्टोरल सिस्टम्स के साथ एम.ओ.यू. यानी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया था। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने इन आरोपों और समाचारों को निराधार बताया है  कि आई.एफ.एस.सी. से धन आयोग को स्थानांतरित हुआ था।  कहीं नहीं कहा गया है कि इसने सीधे चुनाव आयोग को पैसा दिया। इस एजैंसी को यू.एस.एड से धन मिलता था और इसका जार्ज सोरोस की ओपन सोसायटी फाऊंडेशन के साथ संबंध है। ऐसी संस्थाएं किसी माध्यम से अपनी भूमिका को वैधानिकता का आवरण देने की दृष्टि से समझौते करती हैं और फिर अपने अनुसार कार्य करती हैं। ध्यान रखिए 2012 में  महत्वपूर्ण गुजरात विधानसभा चुनाव था तथा उसके पहले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर का। 2013 में पहले कर्नाटक उसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का। भारतीय चुनावों और राजनीति में विदेशी भूमिका की बात पहली बार नहीं आई है। नरेंद्र मोदी सरकार गठित होने के बाद से इसका चरित्र और व्यवहार बदला है किंतु हमारे देश में यह बीमारी लंबे समय से है। जब देश के नेता नौकरशाही, बुद्धिजीवी, पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि छोटे-छोटे लाभ के लिए खिलौना बनने को तैयार हो जाएं तो कुछ भी हो सकता है। 

शीतयुद्ध काल में सोवियत संघ और अमरीका के बीच प्रतिस्पर्धाएं थीं। दोनों अपने प्रभाव के लिए हस्तक्षेप करते थे। भारत में 1967, 77, 80 के चुनाव में विदेशी भूमिका की सबसे ज्यादा चर्चा हुई। सोवियत संघ के विघटन के बाद मित्रोखिन पेपर नाम से ऐसी जानकारियां आईं जिनसे पढऩे वाले भौंचक्के रह गए थे। भारत में अमरीका के राजदूत रह चुके डेनियल मोयनिहान ने पुस्तक ‘ए डेंजरस प्लेस’ में लिखा है कि भारत में कम्युनिस्टों के विस्तार को रोकने के लिए अमरीका ने भारतीय नेताओं को धन दिया। सन् 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से अनेक ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे संदेह बढ़ा। 2019 में दोबारा उनके सत्ता में लौटने के बाद अलग तरह के स्वरूपों में आंदोलन हुए।

विदेशी हस्तक्षेप की बातें भारत के अलावा दूसरे देशों और नेताओं द्वारा भी कही जा रही हैं। विश्व के अनेक देशों की चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में विदेशी शक्तियों और संस्थाओं की भूमिका सामने आती रही है। माइक्रोसाफ्ट ने डीपफेक और ए.आई. के माध्यम से भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों पर चेतावनी दी थी। जांच रिपोर्ट में अगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे राष्ट्रीय हित प्रभावित होते हों तो भले उन्हें सार्वजनिक न किया जाए किंतु भविष्य में ऐसी खतरनाक भूमिकाओं को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिएं।-अवधेश कुमार
 

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