Edited By ,Updated: 06 Jul, 2024 05:40 AM
आज की दुनिया में, जब विज्ञान ने हर क्षेत्र में अद्भुत आविष्कारों के माध्यम से मानव जाति की भलाई के लिए काफी प्रगति की है तो युद्धरत देशों के उकसावे के परिणामस्वरूप सभी महाद्वीपों में घातक युद्ध छिड़ गए हैं। इन युद्धों में मिसाइलें, बम और अन्य नए...
आज की दुनिया में, जब विज्ञान ने हर क्षेत्र में अद्भुत आविष्कारों के माध्यम से मानव जाति की भलाई के लिए काफी प्रगति की है तो युद्धरत देशों के उकसावे के परिणामस्वरूप सभी महाद्वीपों में घातक युद्ध छिड़ गए हैं। इन युद्धों में मिसाइलें, बम और अन्य नए हथियार शामिल हैं। घातक हथियारों के माध्यम से अधिक से अधिक निर्दोष लोगों, विशेषकर महिलाओं और मासूम बच्चों को मारने की ‘योजनाएं’ बनाई जा रही हैं। यही नहीं मानवता के हत्यारे दुनिया के अस्तित्व के लिए खतरा बन चुके अपने जानलेवा कृत्यों पर भी गर्व कर रहे हैं।
विज्ञान की खोजों से मनुष्य को विभिन्न असाध्य रोगों तथा अन्य अनेक प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिली है तथा प्रकृति की अभेद्य परतों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जानने-समझने का अवसर मिला है। हालांकि जो लोग दुनिया को गुलाम बनाना चाहते हैं उन्होंने विज्ञान की इन खोजों का दुरुपयोग करके पूरी मानवता को नष्ट करने की योजना भी बनाई है। यह सब सिर्फ मुनाफे के भूखे मुट्ठी भर लोगों की अधिक से अधिक पूंजी जमा करके बड़ा बनने की चाह के कारण हो रहा है। दुनिया में अलग-अलग देशों के बीच चल रहे युद्धों से जहां लाखों निर्दोष लोग हमेशा के लिए सो रहे हैं, वहीं गंभीर रूप से घायल लोग भी हैं जो मौत से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। घावों से बिलबिलाते और भूख से तड़पते गाजा के मासूम बच्चों की तस्वीरें देखकर हर संवेदनशील व्यक्ति का दिल पिघल जाता है। इन्हीं अराजक परिस्थितियों में उपजे प्रयासों के परिणामस्वरूप विकसित पूंजीवादी देशों, विशेषकर अमरीका में, अवसाद के शिकार, मानसिक रोगी, दर्जनों स्कूली बच्चों या अन्य मासूमों को सुइयां मारकर मार डालने जैसे मामले दैनिक जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
आर्थिक रूप से गरीब एवं पिछड़े देशों की आम जनता गरीबी-बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव से पीड़ित है। सरकारें आंख मूंद कर अपने अमीर आकाओं की रक्षा कर रही हैं। कुछ दिन पहले ही भारत की सत्ताधारी पार्टी के मुखिया के तौर पर नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। वे भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाकर ‘विश्व गुरु’ बनाने का दिखावा कर रहे हैं, जबकि देश की आधी से ज्यादा आबादी यानी 80 करोड़ लोग 5 किलो आटा-दाल-चावल देने की सरकारी योजना के दायरे में हैं। अगर सरकार इस योजना की शर्तों में ढील दे तो शायद इस श्रेणी में और भी करोड़ों लोग शामिल हो जाएंगे। देश पर विदेशी कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है। शिक्षा की दुर्गति को नीट परीक्षा के पेपर लीक होने से 25 लाख से अधिक बच्चों के भविष्य के साथ हुए खिलवाड़ से ही समझा जा सकता है। शिक्षा के महंगा होने के कारण करोड़ों बच्चे स्कूल-कॉलेजों में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं।
आर्थिक विकास का जो मॉडल दिखाकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है वह पूरी तरह से जनविरोधी है। वास्तविक आर्थिक विकास जी.डी.पी. भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वृद्धि से नहीं मापा जा सकता। इसका वास्तविक पैमाना देश की कुल आबादी को उपलब्ध सामाजिक-आर्थिक सुविधाओं की मात्रा से तय किया जाना है। सच तो यह है कि 1947 के बाद देश की हर सरकार द्वारा पूंजीवादी तर्ज पर आॢथक विकास किया गया है। लेकिन यदि कोई शासक दिन-रात यह चिल्लाता रहे कि देश का आर्थिक विकास उसके किसी व्यक्तिगत बलिदान का परिणाम है या उसकी किसी अलौकिक शक्ति के कारण है, तो यह शुद्ध पाखंड है। हवाई, समुद्री और सड़क परिवहन सुविधाओं का विकास, आधुनिक अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान, नई तकनीक से सुसज्जित औद्योगिक परियोजनाएं, नई और महंगी कारें, आसमान छूती आवासीय इमारतें बेशक आर्थिक विकास के दायरे में आती हैं, लेकिन इन सबका सच क्या है? इससे ज्यादातर उच्च वर्ग के मुट्ठी भर लोगों को लाभ होता है और आबादी का बड़ा हिस्सा इस विकास मॉडल में भाग लेने से लाभान्वित होने से वंचित रह जाता है।
गरीबी और भुखमरी से जूझ रहे अधिकांश भारतीय लोगों का एक बड़ा हिस्सा अपनी पेट की भूख मिटाने के लिए नशीली दवाओं के व्यापार, डकैती, जबरन वसूली आदि जैसी असामाजिक गतिविधियों में शामिल है और उनमें से कुछ पाने की चाहत में फंसे हुए हैं। आर.एस.एस. और भाजपा नेता उन मुद्दों को उठाकर एक अलग तरह का उत्तेजक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो उनकी ओर ध्यान आकर्षित करेंगे। पिछले 10 वर्षों के दौरान मोदी सरकार द्वारा थोपी गई असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, सांप्रदायिक और पक्षपातपूर्ण नीतियों का कार्यान्वयन 100 प्रतिशत तथ्यों पर आधारित है। वामपंथी दलों को एकजुट होकर धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे की रक्षा के लिए एक तरफ कॉर्पो समर्थक नवउदारवादी आर्थिक नीतियों और दूसरी तरफ हिंदुत्ववादी, सांप्रदायिक-फासीवादी ताकतों के खिलाफ पूरी गति और ताकत से संघर्ष तेज करना होगा।-मंगत राम पासला